Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-50



सातवाँ  अवतार है यज्ञ का। आठवाँ  अवतार है हृषभदेव का। नौवां  अवतार पृथराजा का।  
दसवाँ  मत्स्य नारायण का। यह चार अवतार क्षत्रियों  के लिए है। धर्म का आदेश बताने के लिए है।

ग्यारहवां  अवतार कर्म का है। बारहवां  अवतार धन्वन्तरि का। तेरवा अवतार मोहिनी नारायण का।
यह अवतार वैश्यों के लिए है।

चौदहवाँ अवतार नरसिंह स्वामी का है। नरसिंह अवतार पुष्टि का है। भक्त प्रह्लाद पर कृपा करने के लिए यह अवतार हुआ है। प्रह्लाद जैसी दृष्टि से देखोगे तो स्तम्भ में भी भगवान के दर्शन होंगे।
ईश्वर सर्वव्यापक है,ऐसा बोलो नहीं उसका अनुभव करो। फिर तुमसे पाप नहीं होगा।
ईश्वर को मनुष्य मन शक्ति या बुध्धि  शक्ति से नहीं जीत सका,केवल प्रेम से ही जीत सका है।  

बालक के प्रेम के सामने माता का बल दुर्बल हो जाता है। प्रेम के सामने शक्ति दुर्बक हो जाती है।
आप भी परमात्मा पर खूब प्रेम बढ़ाओ,भगवान दुर्बल होका आपके पास आएंगे।

पन्द्रहवां अवतार वामन भगवान  का है जो पूर्ण निष्काम है,जिसके ऊपर भक्ति और नीति का छत्र  है
और जिसने धर्म का कवच पहन है। उसे भगवान  भी नहीं मार सके। यह है वामन चरित्र का रहस्य।
परमात्मा सबसे बड़े है -फिर भी बलिराजा के आगे वामन अर्थात छोटे बनते है।

सोलहवाँ  अवतार है परशुराम का। यह आवेश का अवतार है।
सत्रहवाँ अवतार व्यास नारायण का ज्ञान अवतार है।
अठारहवाँ रामजी का अवतार है। यह मर्यादा-पुरुषोत्तम का अवतार है।
राम की मर्यादा का पालन करो जिससे तुम्हारा काम मिटेगा और कन्हैया मिलेगा।

उन्नीसवाँ अवतार श्रीकृष्ण का है।
“कृष्णास्तु भगवान  स्वयं” श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान है। राम और कृष्ण एक है।
रामजी के मर्यादा का पालन करो तो श्रीकृष्ण  कृपा करेंगे।

संत एकनाथजी ने दोनों अवतारों की सुन्दर तुलना की है।
रामजी राजमहल में पधारे और श्रीकृष्ण कारागृह में।
एक के नाम के अक्षर सरल और दूसरे के जुड़े हुए है।
ये दोनों साक्षात पूर्ण पुरुषोत्तम के  पूर्ण -अवतार है। बाकी के सब अवतार अंशावतार है।

अल्पकाल के लिए अल्प जीवो के उद्धार के लिए जो अवतार होता है वह अंशावतार है
और अनंतकाल के लिए तथा अनंत जीवो के कल्याण के लिए जो अवतार होता है वह पूर्णावतार है।
ऐसा संत मानते है।

भागवत में मुख्य-कथा कृष्ण की है ,
परन्तु क्रम-क्रम से दूसरे अवतारों की कथा सुनाकर,
जब,मनुष्यको अधिकार प्राप्त हो जाए -तब कन्हैया  आता है।
कृष्णावतार के बाद मे हरि ,कल्कि,बुद्ध आदि अवतार हुए है। कुल मिलकर २४ अवतार हुए है।
ब्रह्माण्ड भी ईश्वर का ही अवतार है। कोई ब्रह्माण्ड में ईश्वर को देखते है।
कोई संसार के पदार्थो में भगवत स्वरूप का दर्शन करते है।

सबका द्रष्टा परमात्मा माया के कारण  ही "दृश्य" (जगत) जैसा दीखता है।


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