Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-49


"ज्ञानमार्ग" में इन्द्रियों का निरोध करना पड़ता है। जब कि-
"भक्तिमार्ग" में इन्द्रियों को प्रभु-मार्ग में ले जाना पड़ता है।

लौकिक व्यवहार के ज्ञान में द्वैत है,ईश्वर के स्वरूप सम्बन्धी ज्ञान में अद्वैत है।
व्यवहार  के स्वरूपका ज्ञान द्वैतभाव से भरा हुआ है। व्यवहारिक ज्ञान में ज्ञाता और ज्ञेय भिन्न-भिन्न  है। परमात्मा का ज्ञान होने पर ज्ञाता (ज्ञान को जानने वाला-मनुष्य) और ज्ञेय (परमात्मा) एक बनते है।
ईश्वर का अपरोक्ष साक्षात्कार होता है। जिससे जीव ईश्वर में मिल जाता है।

गोपी सब में श्रीकृष्ण को देखकर जीव भाव भूल गई थी।
 लाली मेरे लालकी, जीत देख़ो तित लाल।
 लाली देखन  मैं  गई,मै  भी हो गई लाल।

श्रीकृष्ण के स्वरूप का जिसे अच्छी तरह ज्ञान होता है,वह ईश्वर से अलग नहीं रह सकता।
सबमे ईश्वर के दर्शन करने वाला स्वयं ही ईश्वर बन जाता है।
जीव का जीवभाव न जाये तब तक अपरोक्षानुभव (अद्वैत) नहीं होता ,

शुध्ध ब्रह्म (एक परमात्मा) माया के संसर्ग के बिना अवतार नहीं ले सकता।
सौ टच सोना नरम होता है।  उसमे से जेवर बनाने के लिए दूसरी धातु मिलानी  पड़ती है।
ऐसे ही - परमात्मा भी माया का आश्रय लेकर प्रकट होते है,परन्तु ईश्वर को यह माया बाधक नहीं होती।
जीवको बाधक होती है। योगी जिसे परमात्मा कहते है उस परमात्मा से जो मिलता है वह कृतार्थ होता है।

धर्म की स्थापना और जीव का उध्धार  करने के लिये परमात्मा अवतार लेते है।
भगवान के अवतारों की कथा सुनने से जीवन सुधरता है।

तीसरे अध्याय में २४ अवतारों की कथा संक्षेप में कही है।
पहला अवतार सनतकमुारो का है। वे ब्रह्मचर्य का प्रतिक है। सब धर्मो में ब्रह्मचर्य पहला आता है।
ब्रह्मचर्य से मन,बुध्धि ,चित्त,अहंकार पवित्र होते है। उसका पालन करने से अंतःकरण शुध्ध  होता है।

दूसरा अवतार वराह का है। वराह अर्थात श्रेष्ठ दिन और संतोष-
जिस दिन सत्कर्म हो वह श्रेष्ठ दिन। प्राप्त स्थिति और प्रभु जिस स्थिति में रखे उसे श्रेष्ठ मानो।
यह वराह अवतार का रहस्य है।
तीसरा अवतार है नारदजी का। यह भक्ति का अवतार है। ब्रह्मचर्य का पालन करे और
प्राप्त स्थिति में संतोष माने,उसे नारद अर्थात भक्ति मिलेगी।  नारदजी भक्ति के आचार्य है।

चौथा अवतार नर-नारायण का है। भक्ति मिले तो उसे भगवान का साक्षात्कार होता है।
भक्ति ज्ञान और वैराग्य सहित होनी चाहिए। भक्ति में ज्ञान और वैराग्य की जरुरत है। इसलिए
पाँचवा  अवतार कपिलदेव का है।
ज्ञान और वैराग्य का। ज्ञान और वैराग्य के साथ भक्ति  आएगी  तो स्थिर रहेगी।

छठा अवतार है दत्तात्रेयजी का। ऊपर बताये पाँच  गुण  ब्रह्मचर्य,संतोष,ज्ञान,भक्ति और वैराग्य
आप में आयेंगे  तो आप गुणातीत और अत्रि होंगे तो भगवान आपके यहाँ आयेंगे।  


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE