Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-52



व्यासजी ने सोचा कलियुग के लोग विलासी होंगे। मनुष्य बुध्दिहीन  होंगे ।
और वेद-शास्त्रो का अध्ययन  नहीं होगा। इसलिए वेदो के चार विभाग किए। फिर उन्होंने सोचा कि-
वेदों  का कभी अध्ययन कर भी ले परन्तु वेद के तत्व का ज्ञान,उसका तात्पर्य  कलियुग के  मनुष्य को
नहीं होगा। इसलिए उन्होंने सत्रह पुराणों  की रचना की। पुराण  वेदों का भाष्य है।

जो वेद श्रवण के अधिकारी नहीं है,उन  सबका कल्याण हो ऐसा सोचकर महाभारत -पुराण की रचना की।
महाभारत समाजशास्त्र है और पाँचवा  वेद है। भा  का अर्थ है ज्ञान,रत अर्थात रचना।
ज्ञान और भक्ति में खेलनेवाली कला जिसमे बताई गई है वह ग्रन्थ है महाभारत।
धर्म और अधर्म का इसमें युध्ध  होता है।

और भी पुराणो के  ग्रंथों की रचना करने पर भी व्यासजी के मन को शान्ति नहीं मिली।

ज्ञानी पुरुष अशान्ति का कारण  अपने अन्दर  ढूंढ़ते  है। अज्ञानी अशांति का कारण बाहर  ढूंढ़ते  है।
दुःख और अशांति का कारण  बाहर  नहीं है-अपने अंदर है। ज्ञान -अभिमान दुःख के कारण  है।

ऐसे ही,व्यासजी अशान्ति  का कारण ढूँढ़ते  है। "क्या मैंने कोई पाप किया है ?"
(क्योंकि -पाप के बिना अशान्ति  नहीं होती)
व्यासजी और आगे सोचते है-
"नहीं- मै निष्पापी  हूँ। पर मेरे मन में कुछ खटकता है। मेरा कोई कार्य अधूरा है। मेरी कोई भूल हुई है।
मुझे कोई संत मिले तो मेरी भूल बताए। "

सत्संग के बिना मनुष्य को अपनी भूल की समझ नहीं आती।
व्यासजी के संकल्प से परमात्मा ने नारदजी को उनके पास जाने की प्रेरणा दी।
कीर्तन करते-करते नारदजी वहाँ  पहुँचे।
व्यासजी ने उन्हें बैठने के लिए दर्भ का आसन  दिया और उनकी पूजा की।

नाराजी ने व्यासजी से कुशलता के समाचार पूछे। और फिर कहा कि आपको चिंता में देखकर आश्चर्य हो रहा है। आप आनंद में नहीं है।

व्यासजी ने कहा-मैंने कोई पाप नहीं किया है-वह बात सच है। फिर भी मेरा मन अशांत है,
मुझे लगता है कि-मेरी कोई भूल हुई है -परन्तु मेरी वह भूल समझ में नहीं आ रही है।
कृपा करके आप मुझे मेरी भूल समझाए। मै  आपका उपकार मानूँगा

"खुद ने भूल हुई  है" ऐसा स्वीकार करनेवाले  -व्यासजी का विवेक देखकर नारदजी को आनन्द  हुआ।
नारदजी ने कहा कि -महाराज आप तो नारायण का अवतार हो। आपसे क्या भूल हो सकती है?
आपसे कोई भूल नहीं हुई है. फिर भी आप आग्रह करते है तो एक बात कहता हूँ।

आपने ब्रह्मसूत्र में वेदांत की खूब चर्चा की है। आत्मा अनात्मा का खूब विचार किया हैं।
योगसूत्र  के भाष्य में योग की बहुत चर्चा की है। समाधि के भेदो  का वर्णन किया है।
परन्तु धर्म, ज्ञान और योग के आधार श्रीकृष्ण है,इन सब की आत्मा श्रीकृष्ण है।
उनकी कथा का आपने प्रेमपूर्वक वर्णन नहीं किया है।
मै मानता हूँ  कि जिससे भगवान प्रसन्न न हो,वह शास्त्र और ज्ञान अपूर्ण है।
कलियुग के जीवो का उध्धार  के लिए आपका जन्म हुआ है।
आपके इस अवतार का कार्य अभी तक आपके हाथ से पूर्ण नहीं हुआ है। इसलिए आपके मनमे अशांति है। "


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