Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-53



नारदजी कहते है -कि-
"ज्ञानी पुरुष भी परमात्मा के प्रेम में पागल न हो तब तक उसको आनन्द  नहीं मिलता।
प्रभु प्रेम के लिए जो आतुर नहीं होता उसका ज्ञान किस काम का?
मुझे लगता है कि कलियुग का भोगी मनुष्य योगाभ्यास नहीं कर सकेगा।
और शायद करेगा तो भी रोगी होगा। कलियुग का भोगी मनुष्य -ब्रह्मसूत्र-वगेरे नहीं समझेगा।
वह विलासी मनुष्य तुम्हारे गहन सिध्धान्तो को कैसे समझेगा?
आपने तो योग आदि की खूब चर्चा की है
परन्तु भगवान की लीलाओं  और कथाओं का आपने प्रेम से विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया है। "

प्रेम रहित ज्ञान की शोभा नहीं है। परमात्मा जिसे अपना मानते है उसी को अपना असली रूप दिखाते है।
जब परमात्मा के प्यारे भक्त उनकी बहुत भक्ति करते है तब वह अपना स्वरूप प्रगट करते है।
मनुष्य परमात्मा के साथ प्रेम नहीं करता इसलिए वह प्रभु का अनुभव नहीं  कर पाता।

नारदजी -व्यासजी को समझा रहे है कि-
"श्रीकृष्ण की लीलाओं का आपने प्रेम से गान नहीं किया इसलिए आपको दुःख होता है।
यही तुम्हारी अशान्ति  का कारण  है। ज्ञान की शोभा प्रेम से है,
जो सर्व में भगवत-भाव न जागे तो यह ज्ञान किस काम का?
श्री कृष्ण प्रेम में पागल बनोगे तो शान्ति  मिलेगी।
आपने प्रेम में पागल होकर कृष्ण  कथा का परिपूर्ण वर्णन नहीं किया है।

जीव से ईश्वर दूसरा कुछ नहीं मांगता,केवल प्रेम चाहता है। तो अब आप ऐसी कथा करो कि -
जिससे सबको प्रभु के प्रति प्रेम जागे। ऐसी दिव्या कथा करो,ऐसा प्रेम-शास्त्र रचो कि -
जिससे सब कृष्णा प्रेम में  पागल बने। कथा सुनने वालो को कन्हैया प्यारा लगे।
ऐसी कथा आप करेंगे तो आपको शान्ति मिलेगी।
कलियुग में कृष्ण-कथा और कृष्ण -कीर्तन के सिवा  दूसरा कोई उपाय नहीं है।
परमात्मा की लीला का वर्णन आप अति प्रेमपूर्वक करो। सब साधनों  का फल प्रभु प्रेम है।
आप तो ज्ञानी है। महाराज मै आपको अपनी कथा सुनाता हूँ। मै  कैसा था और कैसा हो गया। "

व्यासजी को विश्वास दिलाने के लिए नारदजी अपना ही दृष्टांत देते है।
अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाते  है। कथा श्रवण और सत्संग का फल बताते है।

नारदजी कहते है-
मै  सात-आठ साल का था कि  मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई। पिता तो मुझे बहुत याद नहीं है
पर मेरी  माता  एक ब्राह्मण के घर में दासी का काम करती थी। मै  भील के बच्चो के साथ खेलता था।
मेरे पूर्वजन्म के पुण्य के उदय होने से -एकबार -हम जो गाँव  में रहते थे वहाँ  घूमते-घूमते साधु आये।
गाँव  के लोगो ने उन्हें चातुर्मास ठहरने के लिया कहा।
और संतो को कहा कि  हम इस बालक को आपकी सेवा में सौंपते  है।
वो आपके लिए कपडे बर्तन करेगा और पूजा के फूल लाएगा। दूसरे काम भी करेगा।
गरीब विधवा का बेटा है। प्रसाद भी आपके साथ लेगा।


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