Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-73



भीष्मपितामह ध्यान कर रहे है।
आज द्वारकाधीश का स्वरुप दीखता नहीं है। किन्तु काली कमली,हाथ में दीपक आदि
स्वरुप वाले भगवान दीखते है।
आज द्रौपदी के रक्षक बनकर भगवान आये है।
द्वारपाल ने उनको रोका। कोई भी पुरुष अंदर जा न सके ऐसी आज्ञा थी।
द्रौपदी ने अंदर जाकर प्रणाम किया। दुर्योधन की पत्नी भानुमति आई है ऐसा मानकर
भीष्मपितामह ने आशीर्वाद दिया कि "अखंड सौभाग्यवती भव। "

द्रौपदी ने पूछा-दादाजी आपका आशीर्वाद सच होगा?
भीष्म ने पूछा कि देवी,तू कौन है?द्रौपदी ने उत्तर दिया मै  पांडवपत्नी  द्रौपदी हूँ।
भीष्म ने कहा कि  मैंने तुझे आशीर्वाद दिया है तो वह सच ही होगा।
पांडवो को मारने की प्रतिज्ञा मैंने आवेशवश  की है,सच्चे ह्रदय से नहीं।
तुझे सच्चे ह्रदय  आशीर्वाद दिए है वे सच ही होंगे।

किन्तु मुझे यह तो बता कि तू अकेली यहाँ कैसे आई। तुझे द्वारकानाथ के सिवा और कौन लाया होगा?
भीष्मपितामह दौड़ते हुए बहार आये।
श्रीकृष्ण को उन्होंने कहा कि -आज तो मे आपका ध्यान करता हूँ,
किन्तु अन्तकाल में आपका स्मरण न जाने रहेगा या नहीं।
सो अन्त समय में मेरी लाज रखने के लिए पधारियेगा।

उस समय श्रीकृष्ण ने भीष्मपितामह को वचन दिया की मै  अवश्य आऊंगा।
उनको दिए हुए वचन को पूरा  करने के लिए द्वारकानाथ पधारे थे।

प्रभु से रोज प्रार्थना करो कि  मेरी मृत्यु के समय जरूर आना। शरीर ठीक हो तो ध्यान-जप हो सकता है। अन्तकाल में दुःख से देहानुसन्धान होता है,जिसे परमात्मा का ध्यान करना कठिन है।

भीष्मपिता श्रीकृष्ण की स्तुति करते है -नाथ,कृपा करो। जैसे खड़े है वैसे ही रहना।
श्रीकृष्ण सोचते है कि मुझे बैठने के लिए भी नहीं कहा? पुण्डलिक की सेवा मुझे याद आती है।

तुकाराम ने प्रेम से एक बार पुण्डलिक को उलाहना दिया था कि  मेरे विठ्ठलनाथ तेरे द्वार पर आये तो
तूने उनकी कदर न की। मेर प्रभु को तूने आसन भी नहीं दिया।

श्रीकृष्ण कहते है- दादाजी,इन धर्मराज को लगता है कि - उन्होंने ही सबको मारा है।  
और उन्ही के  कारण ही सबका सर्वनाश हो गया। उन्हें शान्ति मिले ऐसा उपदेश आप करे।

भीष्मपिता कहते है-
रुकिए। धर्मराज की शंका का निवारण मैं  बाद में करूँगा। मेरी एक शंका का समाधान  पहले करे।
मेरे एक प्रश्न का उत्तर आप पहले दें। मेरा जीवन निष्पाप है। मेरा मन पवित्र है,मेरा तन भी पवित्र है,मेरी इन्द्रियाँ  भी शुध्ध  है। मैने पाप किया ही नहीं है तो फिर मुझे यह दण्ड क्यों मिल रहा है।
मुझे बाणशैया पर क्यों सोना पड़ा?मुझे अतिशय वेदना क्यों होती है?
मैं  निष्पाप हूँ फिर भी मुझे क्यों सजा देते है ?


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