Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-313


प्रवृत्ति में रहकर आत्मानंद-भजनानन्द को पाना अशक्य है।
सभी प्रवृत्तियाँ एक साथ छोड़ना असंभव है किन्तु प्रवृत्ति का ऐसा आयोजन करो कि प्रभु के लिए पर्याप्त समय मिलता रहे। शरीर में शक्ति हो तो विवेक से प्रवृति कम करनी  चाहिए अथवा छोड़नी चाहिए।

महात्माओं कहते है -प्रवृत्ति विवेक से करो और धीरे-धीरे कम करो। प्रवृत्ति करो  पर फलकी अपेक्षा रखे बिना करो। प्रवृत्ति बाधक नहीं है पर फल की आसक्ति  बाधक है।

मनुष्य बातें तो ब्रह्मज्ञान की करे किन्तु प्रेम धन-सम्पत्ति,नारी,जड़ पदार्थो से करे तो वह सच्चा ब्रह्मज्ञानी नहीं है। जगत मिथ्या है,ऐसा बोलने मात्र में नहीं,अनुभव करने से लाभ होता है। व्यवहार मिथ्या है,ऐसा मानकर व्यवहार करो। पर मानव को यह ज्ञान नहीं रहता कि- धन-संपत्ति की दौड़ में वह ईश्वर को भूल रहा है।

भगवान शंकर श्रावन मासके कृष्ण पक्षकी द्वादशी के दिन बालकृष्ण के दर्शन करने आये।

भक्ति में यदि संग अच्छा न हो तो भक्ति कार्यमें विक्षेप होगा। भजन और दर्शन तो अकेले ही किया जाना चाहिए।  औरों को अपने साथ रखने से हम भी रजोगुणी हो जाते है।
भगवान शंकर सोचते है कि किसी को साथ नहीं ले जाना है। पर शंकर के दो विशिष्ट गण श्रृंगी और भृंगी को पता चला है। उन्होंने कहा -महाराज हम तो साथ आयेंगे। शंकरजी ने मना किया और कहा -मै अकेला ही जाउंगा।
तुम आओगे तो ध्यान में विक्षेप होगा।

गणों ने कहा -हम विक्षेप नहीं करेंगे। हमे साथ नहीं ले जाओगे तो हम सभी को बता देंगे कि यह साधु नहीं,
भगवान शंकर है। शिवजी ने उन्हें साथ  लिया है। भगवान शंकर साधू,और श्रृंगी और भृंगी उनके चेले बने है।

आज आए सदाशिव गोकुल में। कई महात्माओं ने इस लीला का वर्णन किया है। आज तक जो निरंजन थे वे आज अपेक्षा वाले बन गए। जो ब्रह्म दुर्लभ और दिखाई नहीं देता था वह श्रीकृष्ण रूप से आज सुलभ हुआ है।

शिवजी महाराज साधु के रूप में आज बालकृष्ण के दर्शन करने यशोदा के आँगन में आए है।
लोग उन्हें देखकर कहते है कि यह साधारण साधु नहीं है। ये तो शिवजी जैसे दीखते है।
शिवजी साधु का वेश लेकर अपने स्वरुप को छुपाये  पर उनका तेज कहाँ छुपे।

यशोदाजीका नियम था कि रोज़ साधु-ब्राह्मणको भिक्षा देकर फिर खाना। दासीके साथ शिवजीको भिक्षा भेजी है। शिवजीके पास दासी आई और कहने लगी,महाराज यशोदाजी ने यह भिक्षा भेजी है। आप इसे स्वीकारो और बालकृष्ण को आशीर्वाद दो।

शिवजी महाराज की आँखे ब्रह्म चिंतन में लीन है। दासी को सुनते ही वे बोले-मुझे भिक्षा नहीं चाहिए।
मुझे किसी भी चीज़ की अपेक्षा नहीं है,मुझे बालकृष्ण के दर्शन करने है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।

दासी ने आकर यशोदाजी के खबर दी कि साधु महाराज कुछ लेना नहीं चाहते। वे तो केवल इतने दूर से लाला के दर्शन करने के लिए आए है।

यशोदाजी को आश्चर्य हुआ कि यह साधु कैसा है कि भिक्षा लेने को मना  करता है। यशोदाजी ने खिड़कीमे से शिवजी के दर्शन किए है। यह कोई साधारण साधु नहीं लगते। गले में सर्प है,व्याघाम्बर पहना है,सुन्दर जटा है। साधु महाराज तो शिवजी जैसे लगते है।

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