Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-312



यदि एक ही स्वरुप का ध्यान न किया जाए तो कृष्णलीला का कीर्तन करो।
कीर्तन में ऐसे लीन हो जाओ कि देहभान और देश-काल का भी ज्ञात न रहे।
नंदबाबा का गोकुल शुध्ध प्रेम-भूमि है। उसमे स्वयं सुख पाने का नहीं पर औरो को सुखी करने की भावना है।
स्वयं सुखी होने की और अन्य को सुखी न करने की भावना होगी तो सुख तुम्हारा ही त्याग करेगा।
औरो को सुखी करने की इच्छा करने वाले कभी दुःखी नहीं होते।

नंदमहोत्सव का आरंभ प्रातःकाल चार बजे हुआ था। अतः उसे ब्रह्ममुहूर्त में ही मनाया जाए।
ध्यान-धारणा का सर्वोत्तम समय ब्रह्ममुहूर्त(सुबह ४ बजे) का है।
प्रातःकाल जप,ध्यान,प्रार्थना करने से तुम्हारा पूरा दिन आनंद में जाएगा।
भक्ति बढे ऐसी इच्छा हो तो सुबह चार बजे उठकर ध्यान-जप करना चाहिए।
बारह वर्ष नियमपूर्वकजप (भक्ति) ध्यान-करने से-परमात्मा का  “अनुभव” होता है।
सुबह बालकृष्ण की सेवा करते समय जो ह्रदय पिघले और आँख में से आँसू निकले तो मन शुध्ध होता है।

भागवत के अठारह हज़ार श्लोक है। उसका सार नन्द महोत्सव के अठारह श्लोक में है।
पाँचवे अध्याय में १-१८ श्लोक नन्द महोत्सव के है। इन श्लोको का  पाठ करना न आता हो तो-
आँखे बंद कर नन्द महोत्सव की कथा का चिंतन करने से मन शुध्ध होता है।
यहाँ नन्द महोत्सव की दिव्य कथा और उसका तात्पर्य संक्षेप में बताया।

श्रावन वद नवमी - जन्माष्टमी के दिन नन्द महोत्सव हुआ। द्वादशी के दिन भगवान शंकर गोकुल में पधारे।
शंकर योगीश्वर है और कृष्ण योगेश्वर। योगीश्वर और योगेश्वर का मिलन हुआ।
भगवान शंकर निवृत्ति धर्म का आदर्श बताते है तो श्रीकृष्ण प्रवृत्ति धर्म का।

श्रीकृष्ण कहते है -निरपेक्ष (अपेक्षा बिना) होकर प्रवृत्ति करो। निष्काम से करो।
प्रवृत्ति करो पर उसमे आसक्ति मत रखो। तो वह प्रवृत्ति निवृत्ति समान है।
भगवान शंकर कहते है -जिसे ब्रह्मानन्द -भजनानन्द लेना है उसे विषयानन्द छोड़ना पड़ेगा।
उसे थोड़ी निवृत्ति तो लेनी ही पड़ेगी। प्रवृत्ति बाधक है,इसलिए निवृत्ति लेकर प्रभु का ध्यान करो।

एक किसान के दो बेटी थी। उसमे से एक का किसान के साथ और दूसरी का कुंभार के साथ विवाह किया था।
एक बार पिता किसान के घर आकर बेटी को कुशल-मंगल पूछा।
बेटी ने कहा-जमीन तैयार है पर बारिश नहीं आई है। बारिश आये तो सब अच्छा है।
फिर  किसान दूसरी बेटी के घर आया और उसे हालचाल पूछा।
बेटी ने कहा -मिट्टी के बर्तन तैयार है और अब भठ्ठी में पकाना है।
एक बार बर्तन पक जाए फिर बारिश आये तो अच्छा। मै प्रार्थन करती हूँ की अभी बारिश नहीं आये।
बारिश पड़े तो एक बेटी दुःखी होगी और अगर न पड़े तो दूसरी बेटी दुखी होगी।

यह बाप-बेटी की कथा नहीं है। जीव मात्र की प्रवृति और निवृत्ती की दो कन्याएँ है।
यह दो कन्या (प्रवृत्ति  और निवृत्ति )एक साथ सुखी नहीं हो सकती।
निवृत्ति का आनन्द लेना हो तो प्रवृत्ति छोड़नी पड़ेगी।
मनुष्य को दोनों कन्याओं (प्रवृत्ति और निवृत्ति ) दोनों को आनंद में रखना है। मनुष्यको दोनों आनंद साथ चाहिए।
प्रवृत्ति छोड़नी नहीं है और निवृत्ति का आनन्द लेना है।

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