Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-311



ठाकुरजी के दर्शन करने के बाद -आँखे मूंद कर उनके स्वरुप को अपने भीतर देखो।
श्रीकृष्ण का स्मरण करते समय देह और संसार को भूल जाने पर नन्द महोत्सव सफल होता है।
परमात्मा हृषिकेश है। सबके स्वामी है,इसीलिए अपनी-एक-एक इन्द्रिय का श्रीकृष्ण से विवाह करो।

भागवतमें,भगवानका  कोई  एक स्वरूपकी (जैसे मात्र श्रीकृष्ण का ही) भक्तिका दुराग्रह नहीं है।
किन्तु,कहा है कि-परमात्मा का कोई भी-एक-मात्र स्वरुप में निष्ठा रखने से,और वही परमात्मा का,
एक ही स्वरुप का बार-बार चिंतन करने से मन वहीं -परमात्मा में लग जाता है।

शरीर से नहीं तो मन से रोज गोकुल,मथुरा,वृन्दावन जाओ।
मन में कल्पना और भावना करो कि- यशोदा की गोद में बालकृष्ण खेल रहे है,
उनके दर्शन के लिए गोपियाँ दौड़ रही है। कन्हैया की एक-एक लीलाकी कल्पना में उनका दर्शन करो।
मन्दिर में श्रीकृष्ण के दर्शन करने के बाद आँख मूंद कर उनके स्वरुप का मन-ही-मन दर्शन करते रहो।

ज्ञानमार्ग में भेद का निषेध है। जब कि-भक्त,भक्ति के द्वारा भगवान के साथ एक हो जाता है।
दोनों का ध्येय एक ही है। भक्ति में आरम्भ में भेद है और आगे चलकर प्रभु के साथ भक्त एक ही हो जाता है।

ध्यान में- दर्शन में तन्मयता होने पर-जब देहभान रहता नहीं है-तब- नंदमहोत्सव संपन्न होता है।
जब तक देहको जगतका भान रहता  है तब तक सच्चा आनंद नहीं मिलता।
देहभान भूले बिना दर्शन में सच्चा आनंद नहीं मिलता।
इश्वर के - ध्यान के बिना ईश्वर का साक्षात्कार (दर्शन) नहीं होता।
वसुदेव और देवकी ने ग्यारह साल तक प्रभु का ध्यान किया था।

ध्यान करने वाले को यह भूल जाना चाहिए कि-वह  ध्यान कर रहा है।
अपने आप को और जगत को भूल कर ईश्वरभाव ही शेष रहे,तभी अद्वैत संपन्न होता है।
देह और जगत को भूलकर जो ईश्वर भाव शेष रहता है वही अद्वैत है।

संतोका जीवन पढोगे - तो ज्ञात होगा कि उन्होंने जीवन भर कष्ट सहन किया हे।
सांसारिक व्यवहार से तो वे बड़े दुखी रहे किन्तु उनका मन,उन व्यवहारसे अलिप्त रहता था।
अपनी पत्नी की मृत्यु पर नरसिंह महेता ने कहा -चलो,यह भी अच्छा ही हुआ कि जंजाल नष्ट हो गया।
अब तो बड़े चैन से मै श्रीगोपाल की भक्ति करूँगा।
नरसिंह महेता को एक ऐसा तत्व मिला था कि  जिसके कारण दुःखद अवसर भी उन्हें प्रभावित नहीं कर पाते थे। और वह तत्व यह था-कि-उनके ह्रदय में श्रीकृष्ण विराजमान थे।

वृन्दावन में कई साधु प्रतिदिन नंदमहोत्सव मनाते है।
शरीर चाहे कहीं भी हो किन्तु मन से तो नंदबाबा के घर में ही निवास करो।

भावना करो कि तुम वहाँ सेवा करते हो और बालकृष्ण के दर्शन  कर रहे हो। यशोदा की गोद में कन्हैया खेल रहा है। गोपियाँ आनंद मना रही है। ऐसी कल्पना और स्मरण करने से पूरा दिन आनन्द में गुज़र जायेगा।

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