Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-310



नंदमहोत्सव की तैयारी करनी पड़ती है।
अपने शरीर को मथुरा और ह्रदय को गोकुल बनाओ फिर नंदमहोत्सव मनाओगे
तभी ह्रदय-गोकुल में परमात्मा प्रकट होंगे।
“गो”का अर्थ है इन्द्रियाँ और कुल का अर्थ है समूह। गोकुल का अर्थ है-इन्द्रियों का समूह अर्थात ह्रदय।

शरीर मथुरा है और ह्रदय गोकुल। नन्द जीव है।
ह्रदय-गोकुल में बालकृष्ण को रखकर,मन को आसक्ति से बचने से शरीर पवित्र(मथुरा)बनता है।  
परमात्मा की सेवा-स्मरण करते ह्रदय पिघले,तब ह्रदय गोकुल बनता है और आनंद प्रगट होता है।

महाप्रभुजी कहते है - मथुरा और मधुरा एक है। कामसुख और सम्पति मध है।
इन दो मधसे जो अपने को बचाता है,उसी का शरीर मथुरा (मधुरा) बन सकता है।
इन दो चीजों (काम और संपत्ति) में मन फँसा हुआ है। मात्र तनसे ही नहीं,किन्तु मनसे भी उससे बचना है।

मनुष्य कई बार तन से कामसुख का त्याग करता है किन्तु मन से नहीं करता है।
तन से त्याग करे किन्तु मन  करे तो वह त्याग दम्भ मात्र है।
इन दो वस्तु  (काम-और संपत्ति) में माया है। इसीलिए तन और मनसे भी उससे बचना चाहिए.

दो वस्तुओं को प्रभु ने आसक्तिपूर्ण बनाया है -स्त्री और धन। इन दो आसक्तियों में मध-सा आकर्षण है।
इन दोनों से हमे -तन और मनसे भी बचना होगा। सम्पत्ति,शक्ति और भोग की उपस्थिति होने पर भी-
अपने तन (शरीर) को -तन के साथसाथ मनसे भी,बचाए रखना ही सच्चा संयम है।

इस शरीर को मथुरा(मधुरा)  बनाओ। ऊपर कहे गए मधसे,तन और  मन को दूर रखोगे तो शरीर मथुरा बनेगा।
उस मद से मन को बचाने का उपाय क्या है?
मथुरा शब्द को उलटने से “राथुम”शब्द बनेगा और बीच में से “थ”अक्षर निकाल दोगे तो “राम”रह जायेगा।
जिसके मुख में हमेशा राम शब्द बसा रहता है उसी का शरीर मथुरा बन पाता है।
यदि परमात्मा से हमेशा सम्बन्ध बना रहेगा तो “राम”रहेगा, नहीं तो “थु”ही रह जायेगा
और उसके पर,सभी यमदूत “थू -थू”करेंगे।

हम तीर्थयात्रा करे,वह तो ठीक है किन्तु शरीरको ही तीर्थ-सा पवित्र बनाओ और ह्रदय को गोकुल बनाओ।

“गो”शब्द के कई अर्थ है। “गो”का अर्थ है इन्द्रिय,भक्ति,गाय,उपनिषद आदि।
इन्द्रियों (गो) को विषयों की ओर बढ़ने देने की अपेक्षा प्रभु की ओर मोड़ दो क्योंकि उनके स्वामी प्रभु ही है।
भक्ति (गो) आँखों से भी हो सकती है और कानों से भी।
आँखों से भक्ति करने का अर्थ है,आँखों में प्रभु को बसाकर जगत को देखना।
इस प्रकार देखने से जगत कृष्ण-रूप दिखाई देगा।

ह्रदयमे मनसे भी  हमेशा भगवद-स्मरण करते रहो। ह्रदय,गोकुल बनते ही कन्हैया आ जायेगा।
एक-एक इन्द्रिय को भक्तिरस में डूबा दो। जिसकी प्रत्येक इन्द्रिय भक्ति करती है,उसी का ह्रदय गोकुल बनता है। कई लोग कान से और आँख से भक्ति करते है पर मन से नहीं करते। वह ठीक नहीं है.
प्रत्येक इन्द्रिय से श्रीकृष्ण-रसका पान करो।तभी ह्रदय गोकुल बनेगा और अंतमें परमानन्द का प्राकट्य होगा।

जो अपनी प्रत्येक इन्द्रिय से श्रीकृष्ण-रस का पान करती है,वही गोपी है। वही भक्ति है और वोही भक्त है.
ज्ञानी -लोग,अपनी इन्द्रियोंका निरोध करके
प्राण को ब्रह्मरंध्र में स्थिर करके ललाट में ब्रह्मज्योति का दर्शन करते है।
जब कि-वैष्णवजन (भक्त) अपने ह्रदय सिंहासन पर बालकृष्ण को विराजित करते है।
वे अपने ह्रदय में प्रभु के दिव्य प्रकाश को निहारते है।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE