Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-309


तब,वह,गोपी चन्द्रहार लेकर वापस गई और यशोदाजी के गले में वापस पहनाया और कहा कि-
मेरी भूल हो गई। मुझे चन्द्रहार नहीं चाहिए। यशोदाजी ने पूछा- तुझे क्या चाहिए?
गोपी ने कहा - कन्हैया को मेरी गोद में दो। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
यशोदाजी ने गोपी को बैठाकर उसकी गोद में कन्हैया को दिया।
लालाके स्पर्श होने से-गोपी झूम उठी और  आनंद में गोपी कन्हैया का जयजयकार करती है।

हजारों जन्मो से बिछड़ा हुआ जीव आज प्रभु से मिला है। ईश्वर से मिलन होने पर जीव आनंद से झूम उठता है।

गोपियोंका चन्द्रहार और कन्हैयाकी सरल कहानी के पीछे का सिध्धान्त दिव्य है।
हार,वस्त्र,चाँदी की थाली वगेरे लौकिक सुख के प्रतिक है। जो लौकिक सुख को छोड़े उसे ही कन्हैया मिलता है।
जो लौकिक सुख में आनंद माने उसे परमानन्द नहीं मिलता। परमात्मा परमानन्द का स्वरुप है।
जो आनंद हमेशा के लिए रहे वह परमानन्द है। विषयानन्द एक-दो क्षण से ज्यादा नहीं रहता।

गोपियाँ यशोदाजी के घर में आकर कन्हैया को गोद में बिठाकर नाच रही है। पुरुष (अहंकार) सब बाहर रह गए है।
जो गोपी की तरह नम्र बने उसे ईश्वर के दरबार में प्रवेश मिलता है।
स्त्री नम्रता का प्रतिक है और पुरुष अहंकार का प्रतिक है। अहंकारीको ईश्वर के दरबार में प्रवेश नहीं मिलता।

नंदबाबा सभी को निस्वार्थ भाव से प्रेम करते है इसलिए उनके यहाँ ईश्वर पधारे है।
सभी के आशीर्वाद प्राप्त करोगे तो तुम्हारे घर सर्वेश्वर आएंगे।
सभी का आशीर्वाद लेना वैसे तो दुष्कर काम है किन्तु किसी के निःश्वास तो कभी न लो।
किसी की भी बददुआ नहीं लोगे तो तुम नंद के समान हो सकोगे।

वाणी,वर्तन,व्यवहार और विचार से जो भी आनंद देता है,वही नन्द है। नंदबाबा सदा सर्वदा आनन्द में रहते थे
और औरों को भी आनंद देते थे। ऐसे नन्द के घर ही परमानन्द-परमात्मा पधारते है।
उत्तम में उत्तम दान मानदान है। सभी जीव शिव स्वरुप है ऐसा समझकर सबको मान दो। सबको आनंद दो.
संत सदा सावधान रहते है कि -जिससे  उनके वर्तन से किसी को दुःख,अशांति न पहुँचे।

गोकुल में सर्वत्र महोत्सव का वातावरण है। “नन्द घर आनंद भयो-जय कन्हैया लालकी”
लोग साल में एक बार नन्द महोत्सव करते है। पर नन्द महोत्सव तो रोज़ करना चाहिए।
रोज प्रातःकाल चार बजे से साढ़े पाँच बजे तक नन्द महोत्सव करना चाहिए। यह समय बहुत पवित्र है।
अपने शास्त्र में लिखा है कि रात को दश बजे के बाद राक्षस जागते है और सुबह चार बजे सो जाते है।

“उत” का अर्थ है ईश्वर औए “सव”का अर्थ  है प्राकट्य। ईश्वर का प्राकट्य ही उत्सव है।
उत्सव में धन या भोगादि नहीं प्रेम मुख्य है। मंदिर में नहीं,अपने घर में ही नन्द महोत्सव मनाया जाए।
जीवात्मा (आत्मा) का घर हमारा शरीर ही है।

नंदमहोत्सव का अर्थ मिठाई बाँटना ? नहीं यह तो आनंद का अतिरेक है। उत्सव तो ह्रदयमें होना चाहिए।
ईश्वर का प्राकट्य होने पर,मनुष्य को देह में रहते हुए भी देह का ख्याल नहीं रह पाता।
देह धर्म भूलने पर ही उत्सव सफल होता है।
जो हररोज नंदमहोत्सव मनाता है,उसका सारा दिन आनंद में बीत जाता है।

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