Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-308


इधर यशोदाजी जागी  है। यशोदा और बालकृष्णकी  चार आँखे मिली है। परमानन्द हुआ है।
नंदबाबा की छोटी बहन सुनंदा ने जागकर देखा तो यशोदाजी की गोद में सुन्दर बालक है।
चारों तरफ प्रकाश फैला है। वह दौड़ती हुई गौशाला में भाई  को खबर देने आई। "भैया,लाला भयो है।"

व्रजवासी आनंद में है। नंदजी ने यमुना में स्नान किया।उनको सुवर्ण के आसान पर बिठाया गया।
शांडिल्य ऋषि ने उनको दान करने को कहा। नंदबाबा  ने बड़ी उदारता से दान किया।
दान से धन को शुध्धि होती है। नंदबाबा ने दो लाख गायों का दान किया।
ब्राह्मणों को इतना सारा दान किया कि एक ब्राह्मणने कहा -
बाबा आप अपने लाला के लिए कुछ नहीं रखोगे? इसमें से-आप थोडा,उनके लिए रखो.
तब,नंदबाबा ने कहा -दान,आपके के लिए है,दिया हुआ वह दान मै वापस नहीं ले सकता। आप आशीर्वाद दो.
ब्राह्मण ने आशीर्वाद दिए और कहा -बाबा आपका लाला बड़ा राजा बनेगा,यज्ञ कराएगा,
सोने की नगरी बनाएगा। बड़े-बड़े ऋषि उसको वंदन करेंगे। सोलह हज़ार रानियों का पति होगा।

नंदबाबा सुनकर घबरा गए। एक,दो नहीं और सोलह हजार रानियाँ?
इतनी सारी  रानियाँ मेरे बेटे को तकलीफ देगी और घर में झगड़ा होगा।
ब्राह्मण ने कहा -बाबा आपका कन्हैया कौन है वह आप नहीं जानते।

गाँव में  गोपियोंको यशोदा के यहाँ बालकृष्ण  के जन्म की बात फैल गई तो वे सब दौड़ती हुई,लालाके लिए कुछ  लेकर-लालाके दर्शन के लिए जा रही है। मानो नवधा भक्ति दौड़ती हुई ईश्वर से मिलने के लिए जा रही हो। गोपियों का एक-एक अंग कृष्ण-मिलन और कृष्ण-स्पर्श के लिए आंदोलित हो रहा था।
उनकी आँखे कहने लगी-हम जैसा भाग्यवान कोई नहीं है।,हमे ही कृष्ण-दर्शन का आनंद मिलेगा।
उनके हाथों ने कहा -हमही भाग्यशाली है,हम तो प्रभु को भेट देंगे।

गोपियों के कान कहने लगे -हमारे ही कारण तुम सब  भाग्यशाली हुए हो क्योंकि कृष्ण प्राकट्य की खबर हमने सबसे पहली जानी है।हम तो कन्हैया की बांसुरी भी सुनेंगे।
तो ह्रदय ने कहा - जब तक मै पिघलता नहीं हूँ,आनंद नहीं आता है।
पाँव बोल पड़े -हजारों जन्मो से हम यौवन-सुख औए धन-संपत्ति के पीछे भागते हुए आये है और आज प्रभु दर्शन के लिए दौड़ पड़े है। अब जन्म मृत्यु के दुःख से छुटकारा होगा। सभी को आनन्दानुभव हो रहा था।

गोपियोंके माथेकी बेनीसे फूल नीचे गिर रहे थे और जैसे कह रहे थे -तुम कृष्णदर्शन के लिए आतुरता से दौड़ रही हो। तुम भाग्यशाली हो। तुम्हारे सिर पर रहने के लिए हम योग्य नहीं है।
हम तो तुम्हारे चरणों में गिरकर तुम्हारी चरणरज के स्पर्शसे पावन हो जायेंगे।

यशोदा की गोद में खेलते हुए सर्वांग सुन्दर बालकृष्णका गोपियाँ दही से अभिषेक करने लगी।
कृष्ण दर्शन होने पर आनंदावेश  से वे अपने को भी भूल गयी और स्वयं को ही दूध-दही से नहलाने लगी।
सभी गोपियों का मन कन्हैया ने आकर्षित कर लिया है। गोपियाँ के ह्रदयमें आनंद की कोई सीमा नहीं है।
यशोदाजी ने निश्चय किया है- गोपिया जितना लेकर आई, है उससे दश गुना मुझे उनको वापस देना है।
चाहे,घर का सर्वस्व लूट जाए किन्तु सभीके आशीर्वाद पाना है, शुभेच्छा पानी है।
गोपियोंने जो माँगा है,यशोदाजी ने दिया है। किसी को चाँदी की थाली,तो किसी को चन्द्रहार।
वापस जाते समय एक गोपी ने दूसरी गोपी को कहा कि यशोदाजी मुझे भी,चन्द्रहार दे रही थी पर मैंने नहीं लिया। मैंने कहा- मुझे तो बाल-कन्हैया चाहिए। तब यशोदाजी ने बाल कन्हैया को मेरी गोद में दिया।
अरी सखी,तू क्या मूर्ख है? कि कन्हैया को गोदमे लेने के बजाय,चन्द्रहार लेकर आ गई ?

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