Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-307



वसुदेव कारागृह में से बाहर आए। दाऊजी दौड़ते हुए आये है। शेष-नाग के रूप में बालकृष्ण पर छत्र धारण किया। यमुनाजी को अत्यन्त आनन्द हुआ। प्रभु से मिलना है। यमुना में जल बढ़ने लगा।
प्रभु ने लीला की। टोकरी  में से अपने पाँव बाहर की ओर बढ़ा दिए।
यमुनाजी ने चरणस्पर्श किया और कमल भेट दिया।
प्रभुने प्रथम दर्शन और मिलन का आनंद यमुनाजी को दिया।
यमुनाजी का पानी धीरे-धीरे कम हो गया,जैसे जलमे जमुनाजीने प्रभु के लिए,खुल्ला रास्ता बना दिया.

वसुदेव गोकुल में आये है। योगमायाके आवरण से सारा गाँव सो रहा है।
वसुदेव ने श्रीकृष्ण को यशोदा के पास रखा और  योगमाया को लेकर वापस लौटे।
मार्ग में वसुदेव सोच रहे है- कि अभी भी उनका प्रारब्ध कर्म बाकी रह गया है,
तभी तो वे भगवान को छोड़कर माया को लेकर वापस जा रहा हूँ।

वसुदेव योगमाया को टोकरी में बिठाकर वापस कारागृह में आ पँहुचे।
माया को लेकर वापस आए इसलिए हाथ-पाँव के बंधन वापस आ गए। कारागृह के दरवाज़े बंध हो गए।
भगवान की आज्ञा से वसुदेव ने बंधन स्वीकार किया है।

योगमाया रोने लगी। कंस को खबर पहुँचाई गई। कंस दौड़ता हुआ आया है। "कहाँ है मेरा काल? मुझे दो।"
कंस योगमाया के पाँव पकड़कर उन्हें पत्थर पर पीटने लगा किन्तु माया किसी के हाथ में नहीं आती।
योगमाया कंस के हाथ से निकल गई और जाते-जाते कंस के सिर पर लात मारी।
अष्टभुजा,जगदम्बा,भद्रकाली-आकाश में प्रगट हुई है।
योगमाया ने कहा -बिना कारण तू बालकों की हत्या करता है पर तुझे मारने वाले बालक का जन्म हो गया है।

इस तरफ जन्माष्टमी के दिन -नंदबाबा ने जगराता किया है। शांडिल्य ऋषि ने नंदबाबा से कहा -बाबा अब आप सो जाओ,आप के जागने से सब जागेंगे। सुबह आनन्द के समाचार मिलेंगे।
शांडिल्य के कहने पर सभी सो गए थे। बालकृष्ण जब नंदजी के घरमें आए  नंदबाबा सोए थे।
नंदबाबा ने स्वप्न में देखा कि कई बड़े-बड़े ऋषि-मुनि उनके आँगन में  पधारे हुए है,यशोदाजी ने श्रृंगार किया है
और गोद में एक सुन्दर बालक खेल रहा है। उस बालक को मै निहार रहा हूँ।

नंदबाबा प्रातःकाल जागृत होने पर मन में कई संकल्प-विकल्प करते हुए गौशाला में आए।
वे स्वयं गौसेवा करते थे। गायों की जो प्रेम से सेवा करता है,उसका वंश नष्ट नहीं होता।

नंदबाबा ने प्रार्थना की-हे नारायण ! दया करो। मेरे घर गायोंके सेवक गोपालकृष्ण का जन्म हो।
उसी समय बालकृष्ण ने लीला की।
पीला चोला पहने हुए,मस्तक पर कस्तूरी का तिलक वाले बालकृष्ण घुटनों के बल बढ़ते हुए गौशाला में आये।
इस बालक को नंदजी ने देखा तो उनके मन में हुआ-अरे,यह तो वही बालक है जिसे मैंने स्वप्न में आज ही देखा है। बालकृष्ण ने नंदबाबा से कहा -बाबा,मै आपकी गायों की सेवा करने के लिए आया हूँ।

गौशाला में आये हुए कन्हैया को नंदजी प्रेम से निहारते हुए स्तब्ध से हो गए। उन्हें होश नहीं रहा। बालकृष्ण के दर्शन से वे समाधिस्थ से हो गए। उन्हें कुछ ज्ञात ही नहीं रहा था कि वे जाग रहे है या सो रहे है।

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