Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-306


धरती- भूदेवी को आनंद हुआ है। कृष्णावतार में भूदेवी खुद पृथ्वी पर उतर आये  है।
जल- प्रसन्न हुए है। सावन मास में जमुनाजी का जल शुद्ध हुआ है। जलतत्व की शुध्धि हुई है।
मन - को भी आनंद हुआ है। “अब मुझे कोई नहीं मारेगा”मन कहता है कि अब भक्त मुझे प्रभु के पास ले जायेंगे। मै प्रभु के सन्मुख रहूँगा। (भक्त और संतो के मन शांत और प्रसन्न होते है। )
बादल- को आनंद हुआ है। वे कहते है कि कन्हैया का मित्र मै हूँ। मेरा रंग कन्हैया जैसा नीला है।
बादल आनंद में गड़गड़ाहट करते है।

इस प्रकार परम शोभायमान और सर्वगुण-संपन्न घड़ी आई,चन्द्र रोहिणी नक्षत्र में आया,दिशाएँ स्वच्छ हुई,
आकाश निर्मल हुआ,नदी का नीर निर्मल हुआ,वन में पंछी और भँवरे गुनगुनाने लगे,शीतल,सुगन्धित-पवित्र हवा बहने लगी,महात्माओं के मन प्रसन्न हुए,स्वर्ग में दुदुंभी बजने लगी,मुनि और देवगण आनंद से पुष्पवृष्टि करने लगे और परम पवित्र समय आ पँहुचा।

श्रावण मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि का समय संपन्न हुआ और
कमलनयन चतुर्भुज नारायण भगवान बालक का रूप लेकर वसुदेव -देवकी के समक्ष प्रकट हुए।

भगवान ने अपने हाथ में शंख,चक्र,गदा और पद्म धारण किये है। चारों तरफ प्रकाश फैला है।
संतति और सम्पति के नाश होने पर भी अति दीन  होकर वसुदेव -देवकी ने नारायण का आराधन किया है। इसलिए प्रभु ने सबसे पहले चतुर्भुज स्वरुप के दर्शन उन्हें दिए है। चार हाथ में चक्र,शंख गदा और पद्म है।
प्रभु ने कहा है -”मेरे स्वरुप के दर्शन करो और ग्यारह वर्ष ध्यान करो,फिर मै आपके पास आऊँगा।”

यह बताता है कि प्रभु के दर्शन होने पर भी ध्यान करने  की जरुरत है।
ज्ञानदीप प्रकट होने के बाद भी,एकाध इन्द्रिय-द्वार खुला रह जाने पर विषयरूपी हवा प्रविष्ट होकर,
ज्ञानदीप को बुझा देता है। इस ज्ञान-मार्ग में कई बाधाएँ आती रहती है। पर-भक्तिमार्ग सरल है।
प्रत्येक इन्द्रिय को भक्तिरस में भिगो दो। फिर विषयरूपी हवा सता नहीं पाएगी।

जब ग्यारह इन्द्रियाँ ध्यान में एकाग्र हो जाती आहे ,तब प्रभु का साक्षात्कार होता है।
इसी कारण से गीताजी में भी ग्याहरवें अध्याय में अर्जुन को विश्वरूप के दर्शन होते है।
भगवान ने इसलिए वसुदेव -देवकी को ग्यारह वर्ष ध्यान करने का कहा है।

चतुर्भुज स्वरुप के दर्शन देने के बाद वह स्वरुप अदृश्य हो गया और दो हाथों वाला बाल -कन्हैया प्रगट हुआ।
-----बाल कन्हैयालाल की जय-----
प्रभु ने कहा -”मुझे जल्दी गोकुल में ले जाओ।”वसुदेव ने उन्हें टोकरी में बिठाया,पर बाहर कैसे ले जाए?
कारागृह के द्वार बंध है और वसुदेव के  हाथ-पैर में ज़ंजीरो के बंधन  है !!
किन्तु जैसे ही वसुदेव ने टोकरी सिर पर उठाई,सारे बंधन टूट गए।

मस्तक में बुध्धि है। जब बुध्धि ईश्वर का अनुभव करती है,तब संसार के सारे बंधन टूट जाते है।
जो भगवान को अपने मस्तक पर विराजमान करता है,
उनके लिए कारागृह तो क्या  मोक्ष के द्वार भी खुल जाते है।
मात्र घर में ही नहीं,मन में,आँख में,बुध्धि में बालकृष्ण को रखने से बंधन टूट जाते है।
अन्यथा यह सारा संसार मोह-रूप कारागृह में सोया हुआ है।

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