Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-305


विचार,वाणी,वर्तन,सदाचार से जो अन्य को आनन्द देता है,उसी के घर भगवान पधारते है।
जो सभी को आनन्द देता है,उसी को परमानंद मिलता है।
नंदबाबा ने सभी को आनन्द दिया सो उनके घर परमानंद प्रभु आए।

इधर,व्रज के सभी गोवाल शांडिल्य ऋषि के पास गए औए कहा -
महाराज,आप ऐसा कुछ कीजिए जिससे नंदबाबा के घर पुत्र का जन्म हो।
शांडिल्य ऋषि ने कहा -मै,बारह सालसे गोपालजीका जप कर रहा हूँ,उसका पुण्य नंदबाबाको दूँगा।
नंदजीके भाग्यमें पुत्र योग है पर मंगलके कारण पुत्र नहीं होता।

गोवालों ने कहा -महाराज,हम क्या पुण्य कर्म करें?
शांडिल्य ने कहा -तुम सब एकादशी का व्रत करो और उसका पुण्य नंदजी को दो।
उनके कहने पर सब गोवाल-एकादशीका व्रत करते है। एकादशी महान व्रत है।

जिनका जीवन सरल है,जिनके घर गायों की सेवा होती है,जिनके घर गरीबों का सन्मान होता है,
वहाँ परमात्मा आते है।
व्रजवासी भोले है,वे कपट नहीं करते,इसलिए बालकृष्ण को गोकुल पसंद है और वे व्रज में आए है।

सभी बालक भी व्रत करते है और कहते है -कि-हमने एकादशी की इसलिए कन्हैया आया है।
गोपियाँ मानती है कि हमने मन्नतें रखी इसलिए कन्हैया आया।
ब्राह्मण समझते है कि हमने जप किया इसलिए कन्हैया आया। सभी को ऐसा है कि कन्हैया मेरा है।
इसलिए कन्हैया के लिए सब तप करते है। इसलिए नन्द महोत्सव में पूरा गाँव नाचता है।

शुकदेवजी वर्णन करते है -
इस तरफ देवकी ने आठवा गर्भ धारण किया तो उधर कंस ने सेवकों को सावधान किया कि मेरा काल आ रहा है। सेवको ने कहा -हम तो सदा जागते ही रहते है। बालक का जन्म होते ही आपको खबर देंगे।

देवकीने अपने गर्भकी रक्षा के लिए-सभी देव और नारायण को प्रार्थना की। देवों ने देवकी को आश्वासन दिया है। मन,बुद्धि,पंचप्राण वगेरे सब की शुध्धि होने पर परमात्मा को मिलने की आतुरता होती है। ईश्वर दर्शन के बिना चैन नहीं आता अतः जीव तड़पता है और अति आतुर होने पर परमात्मा अवतार धारण करते है।

समष्टि की शुध्धि,प्रकृति की शुध्धि होने पर परमात्मा का प्रागट्य जगत में होता है। जब अंतःकरण की शुध्धि होती है तब परमात्मा शरीर के अंदर(ह्रदय) में प्रकट होते है। ज्ञानीओ का अंतःकरण अति शुद्ध होता है। इसलिए वे जहॉ  होते है वहाँ  ह्रदय के भीतर परमात्मा के दर्शन करते है।

आज तो परमात्मा बाहर प्रगट होने वाले है इसलिए अष्टधा प्रकृति और समष्टि की शुध्धि बताई है।
काल- (समय)प्रसन्न है। “आज मेरे मालिक मेरे अंदर (समय) मर्यादा में आये है।
दिशाओ-के देवों को कंस ने कैद में रखा है।
दिशाएं आज प्रसन्न है,परमात्मा हमारे पतियों को कंस के कारागृह में से मुक्त करेंगे।
वायुदेव- को आनंद हुआ है। वायु को रामावतार में सेवा का लाभ नहीं मिला है। वायुपुत्र हनुमान ने सेवा की थी। कृष्णावतार में वायुदेव स्वयं सेवा करने आये है।
अग्नि - को आनंद हुआ है। रामावतार में उन्हें सेवा का लाभ नहीं मिला था।
कृष्णावतार में श्रीकृष्ण दावाग्नि का पान करते है।

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