Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-315



यशोदाजी कहती है -महाराज,आप हमेशा के लिए यहीं रहो। मेरे लाला का भविष्य बताओ।
शिवजी ने सोचा कि यदि बालकृष्ण मेरी गोद में आ जाये तो बड़ा आनंद होगा।
शिवजी बोले -आप उसका भविष्य देखने को कहती हो पर वे मेरी गोद में आये तो-
मै उसके हाथों की रेखा को अच्छी तरह से देख सकू।

यशोदाजी ने बालकृष्ण को शिवजी की गोद में रख दिया शिवजी समाधि में डूब गए।
बातें द्वैत (दो) में होती है अद्वैत (एक) में नहीं हो पाती।
जब हरि और हर एक हो जाए (अद्वैत हो जाए) तो वहाँ कौन क्या बोलेगा?
शिवजी ने कहा -माँ,तेरा बेटा तो सम्राट होने वाला है,राक्षस मारने आयेंगे पर उसे कुछ नहीं होगा।
सोने की नगरी बनायेगा और सोलह हज़ार रानियों का पति होगा।

सूरदासजी ने वर्णन किया है- लाला को खुश करने -शिवजी ने जटा छोड़कर तांडव नृत्य किया है।
अति आंनद में सामान्य जीव नाचता है,पर यहाँ तो शिवजी के हाथ में लालाजी आये है।

शिवजी का तांडव नृत्य पूरा होने पर यशोदाजी ने उन्हें आसान पर बिठाया है।
यशोदाजी ने दासी को आज्ञा दी-मुझे इनकी पूजा करनी है। वस्त्र और  आभूषण मंगाये है।
शिवजी वह सब लेनेसे मना  करते है और कहा- मै जब यहाँ आऊ तब लाला को मेरी गोद में देना।
बालकृष्ण का स्वरुप ह्रदय में रखकर शिवजी कैलाशधाम पधारे है।

नंदबाबा प्रति वर्ष कंस को कर देते थे। इस बार भी कर देने का समय आया।
वे कंस के दरबार में आये और कर देने के बाद सोने की थाली और पांच रत्न भेंट दी।
कंस ने कहा -कर तो मिल गया,यह भेंट किस लिए है?
नंदबाबा बोले -ढलती आयु में पुत्र का जन्म हुआ है। आप मेरे बेटे को आशीर्वाद दो।

कंस क्या जाने कि कन्हैया ही उसका काल है। उसने सोचा कि इस भेंट के परिमाण के अनुसार आशीर्वाद भी देने पड़ेंगे।कंस ने अनेक प्रकार के आशीर्वाद दिए है-”आपका बालक बड़ा राजा बने,उसकी जयजयकार हो,उसके शत्रुओं का शीघ्र ही विनाश हो। उसने अंजाने में कृष्ण की जयजयकार की और आशीष दी।

नन्द फिर वसुदेव को मिलने गए। श्रीकृष्ण के प्राकट्य के बाद यह उनका प्रथम मिलन है।
वसुदेव को बड़ा आनंद हुआ। दोनों ने एक दूसरे का कुशल-मंगल पूछा।
किसी मित्र से मिलन होने पर अपने सुख की बात न करो किन्तु उसके दुःख की बात जान कर उसे आश्वासन दो।

नंदजी वसुदेव से सुख-दुःख की बात पूछने लगे। कंस दुष्ट है,बिना कारण आपको दुःख दे रहा है।
सुना है,आपके घर अनेक बालकों  का जन्म हुआ था और कंस ने उनकी हत्या की। इस बार भी पुत्री का जन्म होने पर वह हत्या करने आया था। आकाश में जाकर वह कन्या देवी हुई -ऐसा भी सुना था।

वसुदेव ने कहा -यह बात सच है। इसमें कंस का कोई दोष नहीं है। परन्तु मेरे कर्म का दोष है। बाबा,मै किसी को दोष नहीं देता। यह सब मेरा पाप का फल है जिससे मेरे संतान मर गए। किन्तु आपके घर कन्हैया का जन्म हुआ तो मैंने मान लिया कि -नंदबाबा का बेटा वह मेरा ही बेटा है। मथुरा में भी मेरा मन आपके कन्हैया में ही है।

नंदबाबा भोले है। वे मानते है कि वसुदेव दुःखी है। हम दोनों में वर्षो से सम्बन्ध है इसलिए उन्होंने मेरे बेटे को उनका मान लिया तो क्या बुरा है?उन्हें भले सुख मिले। उन्होंने कहा -हाँ,मेरा बेटा आपका ही है,

वसुदेव मन में कह रहे थे,कन्हैया मेरा ही है। मै ही उसे आपके घर उस रात छोड़ गया था किन्तु नंदजी इस गूढ़ार्थ-भरी बात को समझ नहीं पाये।

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