Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-390



राधाजीने  श्रीकृष्ण को तोता देते हुआ कहा,यह तोता मुझे बहुत पसंद है। इस तरह राधाजी शुकदेवजी के गुरु है। जो परमात्मा के साथ सम्बन्ध जुड़ाता है  वह है महाप्रभु। उसका नाम प्रकट रूप से कैसे लिया जाए।
भागवत में शुकदेवजी ने राधाजी का प्रकट रूप से नाम लिया नहीं है।
राधाजी के नाम की  भाँति किसी गोपी का नाम भी बताया गया नहीं  है।
शुकदेवजी ने सारी रासलीला की कथा बड़े विवेक से की है। गोपी-प्रेमकी बातें अधिकतर अप्रकट की है।

राजा परीक्षित को सात ही दिनों में मोक्ष देना है।
वह,जो,राधे-राधे करने लग जाये तो शुकदेवजी समाधिस्थ हो जायेंगे तो राजा का क्या होगा?
बाते,कथा,विवरण वियोगावस्था में ही अधिक हो सकते है,पूर्ण सयोंगावस्था में नहीं।

रासलीला अंतरंग लीला है। .स्त्री -पुरुष के मिलन  की कथा नहीं है।
भागवत परमहंस संहिता है। इसमें काम को तुच्छ माना है।
जरा  सोचो तो समझोगे- गंगा का पवित्र तट है ऋषि-मुनि कथा सुनने बैठे है। शुकदजी की ब्रह्मदृष्टि है।
शुकदेवजी केवल महाज्ञानी नहीं पर जगत को ब्रह्मभाव से देखते है।
जिनके मन में यह स्त्री है,यह पुरुष है ऐसा भेदभाव  नहीं है ,ऐसे महापुरुष(परमहंस) कथा कर रहे है।

कई लोग ऐसे होते है कि "गोपी"शब्द सुनते ही उन्हें स्त्री-शरीर दिखता है। "गोपी"कोई स्त्री नहीं है।
गोपी तो शुध्ध जीवका नाम है। शुध्ध ह्रदय का भाव,प्रेमभाव ही गोपी है।
देहभान भूलकर,प्रत्येक इंद्रिय से भक्तिरस का पान करने वाला विशुध्द जिव ही गोपी।

"गोपीभाव" सर्वोच्च भाव है। जिसका मन मरता है उसमे गोपी भाव जागता है।
स्थूल शरीर का नाश होता है परन्तु सूक्ष्म शरीर का नाश नहीं होता। उसका नाश मुक्ति के समय होता है।
सत्रह तत्व के सूक्ष्म  शरीर में "मन" मुख्य है। और यह मन के मरने के बाद गोपीभाव जगता है।
"गोपी"उसे कहते है जिसके "मन" में श्रीकृष्ण (ईश्वर) के सिवा और कुछ नहीं है।

हमारे  शरीर में खून,माँस और हड्डियाँ  है। श्रीकृष्ण के "श्री" अंग में यह सब कुछ नहीं है
इसलिए श्रीकृष्ण में केवल आनंद है। श्रीकृष्ण आनंद है और आनंद श्रीकृष्ण है।
"निराकार"आनंद ही "नराकर" श्रीकृष्ण का स्वरुप है।
ऐसे स्वयं आनंद-रूप और आनंद से भरे श्रीकृष्ण को कभी  सुख भुगतने की इच्छा कैसे हो?

लौकिक दृष्टिसे देखो -तो रासलीला में काम संभव ही नहीं है
क्योकि श्रीकृष्ण की उम्र उस समय मात्र आठ साल की थी। आठ साल के बालक में कामभाव कैसे हो सकता है?
इसलिए रासलीला में साधारण स्त्री-पुरुष का मिलन नहीं है।
और-अगर होता तो शुकदेवजी रासलीला की कथा नहीं करते।

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