Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-471


योगेश्वरकी कथा चल रही है। तीसरे  योगेश्वर अंतरिक्षने मायाके लक्षण बताये।
राजन,मायाका नाश होता है अतः माया सत्य नहीं है। मायाका जीवके साथ सम्बन्ध हुआ वह भी सत्य नहीं है।
जो माया को छोड़ता नहीं है वह उसके स्वरुप को समझ नहीं सकता।
जो माया को छोड़ता है वह ईश्वर के स्वरुप को समझता है।

जो माया को पार करना चाहता है,उसे स्वतंत्र रहने के बदले-
किसी सच्चे संत को गुरु बनाना चाहिए और उसकी आज्ञा में रहना चाहिए।
जो माया से छूटना चाहता है,वह ब्रह्मचर्य का पालन करे-
आँखों से भी और मन से-रोज एकांत में एक ही बैठक में तीन घंटे तक प्रभु नाम का जप करे ।

माया छाया (पड़छाया) जैसी है।
दीये के सामने खड़े रहोगे तो छाया पीछे जाएगी-और अगर दीये के पीछे रखोगे  तो छाया आगे आएगी।
उसी तरह ईश्वर के सामने खड़े रहने से माया पीछे जाएगीऔर हैरान नहीं करेगी।
पर अगर ईश्वर के विमुख होंगे तो माया आगे आकर खड़ी रहेगी और हैरान करेगी।
माया को पार करना है तो किसी का मन,वचन से दिल मत दुभाओ। स्वधर्म में निष्ठां रखो और धर्म पर कुभाव मत रखो। रोज ईश्वर से प्रार्थना करो -नाथ,मै आपका हूँ,मेरे अपराधों की क्षमा करो।

विवेकपूर्वक विचार करने से माया का मोह कम होता है।
वैसे तो माया को पर करने के कई साधन है किन्तु भक्ति अनायास और सहजरूप प्राप्त है।
कलियुग का मनुष्य विलासी है। इसलिए इस युग में योग और ज्ञानमार्ग से ईश्वर को प्राप्त करने की अपेक्षा हरिकीर्तन(नाम) से उनको पाना सरल है।

सभी लोग सिद्धांत जानते है किन्तु पुण्यशाली व्यक्ति ही अपने जीवन में उतारते है।
नामजप सरल है, जीभ तुम्हारे आधीन है।
भगवान का नाम सर्वसुलभ होने पर भी अधिकांश जीव नरकगामी होते है,यह बड़े आश्चर्य की बात है।

महाभारतमें यक्ष-युधिष्ठिर संवाद आता है।
यक्ष,युधिष्ठिर से पूछते है-जगत का सबसे बड़ा आश्चर्य कौन सा है?
युधिष्ठिर उत्तर देते है -
अहन्यहानि भूतानि गछन्ति यममन्दिरम।
शेषः स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्वर्यमतः परम।
मनुष्य प्रतिदिन हजारों जीवों को यम  सदन जाते हुए देखता है,फिर भी स्वयं इस प्रकार व्यवहार करता है कि  
वह अमर है। मनुष्य यहाँ हमेशा के लिए रहना चाहता है। इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है?
दूसरो को मरते देखकर भी स्वयं को अमर मानकर भोग-विलास में डूबा रहना सबसे बड़ा आश्चर्य है।

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