Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-09


काम की,काल की मार से छूटना हो तो परमात्मा के साथ अतिशय प्रेम करना होगा।  
ईश्वर से प्रेम किए  बिना ये काम,क्रोध आदि विकार जाते नहीं है।  
परमात्मा के साथ प्रेम करेंगे तो काल का भय लगेगा ही नहीं,
ध्रुवजी मृत्यु के सिर  पर पांव रखकर वैंकुठ धाम में गए थे।  

काल ही तक्षक नाग का स्वरूप है। काल-तक्षक किसी को नहीं छोड़ता।  किसी पर भी इस काल को दया नहीं आती।  अतः इसी जन्म में ई इस काल पर विजय प्राप्त करो।  
जब जन्म होता है, उसी समय ही मृत्युकाल और मृत्युकरण निश्चित किए  जाते हैं।  

पाप करने में मनुष्य जितना सावधान (होशियार ) रहता है उतना पुण्य करने में ही नहीं रहता है।  
पाप प्रगट हो गया तो जगत में अप्रतिष्ठित हूँगा ऐसा सोचकर पाप को एकाग्र  चित्त  होकर वह करता है.
और इसी कारण से अंतकाल में उसे पापों  की याद आती हैं।  
इसी से अंतकाल में जी घबराता है. उसे अपने किए हुए  पाप प्रत्यक्ष दीखते है।  
तब -वह समझता है कि मैंने  मरने की कोई तैयारी की ही नहीं।  मेरा अब क्या होगा?

मनुष्य और तो सभी कामों  के लिये तैयारी करता है,परन्तु मरने की तैयारी  करता नहीं है।  
जिस प्रकार शादी की तैयारी  करते हो उसी प्रकार (खुशी से) धीरे धीरे मरने की भी तैयारी  करो।  
मौत के लिए  सदा सावधान रहो।  मृत्यु अर्थात परमात्मा के बीते हुए जीवन का हिसाब देने का पवित्र दिन।  

श्रीभगवान पूछेंगे -मैने  तुम्हे आँखे दी थीं ,तुमने उनसे क्या किया? कान दिए  थे,तुमने उनका क्या उपयोग किया?तुम्हे तन और मन दिए  थे तो उनका तुमने क्या किया ?
इस हिसाब में जो गड़बड़ होगी तो घबराहट  होगी ही।  
साधारण इन्कमटैक्स ऑफिसर  को हिसाब देना होता है तो भी मनुष्य को घबराहट होती है और वो ठाकोरजी  को प्रार्थना करता है कि  हे प्रभु,मैंने तो अलग अलग हिसाबी बुक बना रखी  है, परन्तु तुम मेरा ध्यान रखना।  
एक वर्ष के हिसाब देने में इतनी घबराहट होती है तो फिर सरे जीवन का हिसाब देते समय क्या दशा होगी ?  
प्रभु ने जो हमे दिया है उसका हिसाब देना ही पड़ेगा।  

मृत्यु को उज्जवल करना हो तो प्रतिक्षण को उजागर करो।  आँख का सदुपयोग करो,धन क सदुपयोग करो,वाणी का  सदुपयोग करो तो मृत्यु उज्जवल होगी।  प्रतिक्षण जो ईश्वर का स्मरण करता है उसी की मृत्यु सुधरती है।  श्रीभागवत मृत्यु सुधारती  है।  

वैराग्य के विचार के लिये-रोज स्मशान जाने की जरूरत नहीं है,
परन्तु स्मशान को रोज याद करने की जरूरत है।  
श्रीशंकर स्मशान में विराजते हैं  .वे  ज्ञान के देवता होने से स्मशान में विराजते हैं।  स्मशान तो ज्ञानभूमि है।  स्मशान में समभाव  जागते है, अतः ज्ञान प्रगट होता है।  इसलिए स्मशान ज्ञानभूमि है।  जहाँ  समभाव  जागे उसी का नाम स्मशान।  समभाव  का अर्थ है असम भाव का अभाव  . समभाव  ही ईश्वर भाव है।  

मनुष्य सबमे समभाव  रखकर व्यहवार करे तो उसका मरण सुधरता है।  सर्व में(समभाव ) ईश्वरभाव जगे तो जीव दीन  बने (दैन्यभाव आए ) परमात्मा को प्रसन्न करने का एक साधन -दैन्य (भाव) भी है।  

श्रीमद्भागवत की कथा अमर है।  अमरकथा का जो आश्रय लेता है वह अमर हो जाता है।  राजा परीक्षित और शुकदेवजी अमर है।  श्रीभागवत की कथा आपको अमर बनाती  है और भक्तिरस का दान  करती है।  
भक्ति से ही मीराबाई द्वारिकाधीश में और गौरांग प्रभु  जगदीश में सदेह समां गए  और अमर हो गए।  
श्रीभागवत क कथा सुनो तो अनायास ही समाधि  लग जाती है।  
योग और तप  के बिना श्रीभगवान  से मिलने  का कोई साधन है तो वह है भागवतशास्त्र .


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE