Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-13


शुकदेवजी कहते है-पिताजी, मेरे और आपके अनेक जन्म हुए  है।  पूर्वजन्म याद नहीं रहते वही अच्छा है।  
पिताजी न तो आप मेरे पिता है और न ही मै  आपका पुत्र।  आपके और मेरे  तो सच्चे पिता  श्रीनारायण है।  वास्तव में जीव का सच्चा सम्बन्ध ईश्वर के साथ ही है।  पिताजी मेरे पीछे न पड़ो ,आप अपना जीवन परमात्मा के लिए  बनाइए।  मुझे तो जो आनंद  मिला है वही  आनंद  मै  जगत को देने जा रहा हूँ।  

तब शुकदेवजी वहां  से नर्मदा तट पर आए  हैं।  श्रीशुकदेवजी ने कहा कि  नर्मदा के इस किनारे पर में बैठता हूँ  और सामने किनारे आप विराजिए। पिताजी, आप मेरा ध्यान छोड़ दो। मेरा ध्यान न करो।
दूर से  चाहे आप मुझे देखते रहो परन्तु ध्यान तो आप परमात्मा का करें।  

जो परमात्मा के पीछे पड़ते है वह ज्ञानी है।  पैसे के पीछे मत  पड़ो ,परन्तु परमात्मा  के पीछे पड़ो। भागवत की कथा सुनने के बाद आप भी परमात्मा के पीछे पड़ो।  तभी कथाश्रवण सार्थक होगा।  यह नर जो नारायण के पीछे पड़े तो कृतार्थ होता है।  

व्यासजी अपनी पत्नी को समझाते  है कि  यदि  शुक  (श्रीशुकदेवजी) तुम्हे अति प्रिय है तो उन्हें अन्तर्यामी को अर्पण करो।  जो हमे अति प्रिया लगता हो  वह प्रभु को दें  तो हम भी प्रभु को प्रिय  लगेंगे।  

सूतजी कहते है-कि-ऐसे सर्वभूतहृदय स्वरुप मेरे सद्गुरु  श्रीशुकदेवजीके  चरणों में बार बार  वंदन करता हूँ।  
सूतजी ने श्रीशुकदेवजी को प्रणाम करके इस कथा का आरम्भ किया है।  

एक बार नैमिषारण्य के क्षेत्र में शौनकजी ने सूतजी से कहा कि  आज तक कथाएँ  तो बहुत सुनी है।  
अब  कथा का सारतत्व सुनने की इच्छा हैं।  हमें  अब कथा नहीं  सुननी  है,सब कथाओ का सारभूत क्या है वह सुनना  है।  ऐसी कथा सुनाइए  कि हमारी भगवान श्रीकृष्ण में भक्ति दृढ हो।  हमे श्रीकृष्ण की प्राप्ति हों।  
जैसे  मक्खन  दूधका सार (तत्त्व) है वैसे सबका सार (तत्त्व) श्रीकृष्ण हैं।  

श्रीठाकोरजी को मक्खन  बहुत प्रिय है।  लाला को मक्खन प्रिय है। मक्खन  दूधका सार है और परमात्मा  सारभोगी है।  आजकल लोक  बहुत ग्रन्थ पढ़ते  है।  किन्तु -जिसे परमात्मा को प्राप्त करना है
ऐसे साधक को आज्ञा है कि  वह बहुत ग्रन्थ न पढ़े।  अनेक ग्रन्थ पढ़ने से बुद्धि में विक्षेप खड़ा हो जाता है।  
हमारे भगवान श्रीबालकृष्ण  सारभोगी है।  ऐसे  वैष्णव (भक्त ) को भी सारभोगी  बनना है।  
अतः ऐसे ही आज, सर्वकथाओ का सारतत्व सुनने की शौनकजी की इच्छा हुई है।  

जीव,यदि प्रकृति के भोग छोड़कर,श्रीकृष्ण से मन जोड़े, तो जीव भी शिव बन  जायेगा.
भागवत मक्खन  है।  दूसरे शास्त्र दूध-दही जैसे है।  सारे  शास्त्रो में सारस्वरूप यह श्रीकृष्ण (भागवत) कथा है।  

शौनकजी कहते है कि - ज्ञान और वैराग्य के साथ भक्ति बढे ऐसी सारभूत कथा सुनाओ।  
ज्ञान बढे,भक्ति बढे ऐसा सारतत्व सुनाए  कि  जिससे हम भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन करे।  

ज्ञान वैराग्य के साथ भक्ति बढ़ाने  के  लिए  यह कथा है।  महान भक्तो के,महान पुरुषों  के चरित्र सुनकर हमे ज्ञान होता है।कि  मैंने आत्मा  के उद्धार्थ के लिया कुछ नहीं किया।  
कथा सुनने के बाद यदि अपने पापों  के लिए  पश्चाताप हो और प्रभु के प्रति  अपने ह्रदय में प्रेम जागे तभी कथाश्रवण सार्थक होता है।  संसार के विषयो के प्रति यदि वैराग्य न हों  और प्रभु के प्रति प्रेम न जागे तो ऐसी कथा  कथा नहीं है।  
ब्रह्माजी ने भी नारदजीसे आज्ञा की थी”बेटा,कथा ऐसी कर की जिससे लोगो को मेरे प्रभु के प्रति भक्ति जागे।”

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