सात दिनों में उनको मुक्ति मिली,कारण उनके लिए यह निश्चित था की ठीक सातवें दिन उनका काल आनेवाला है। परन्तु हम तो काल को भूल जाते है।
वक्ता शुकदेवजी जैसा अवधूत हो और श्रोता परीक्षितजी जैसा अधिकारी हो तो सात दिन में मुक्ति मिलती है। वक्ता और श्रोता दोनों अधिकारी होने चाहिए। बिजली का प्रवाह और गोला(बल्ब) दोनों ठीक होने चाहिए। वक्त और श्रोता दोनों ही अधिकारी हो तभी यह कथा मुक्ति दिलाती है।
कथा सुनी तो परीक्षित को लेने विमान आया और उनको सद्गति मिली।
परीक्षित महाराज विमान में बैठकर श्रीपरमात्मा के धाम में गए।
आजकल लोग कथा तो बहुत सुनते है परन्तु उनको लेने के लिए विमान क्यों नहीं आते है ?
इसका कारण यह कि वक्ता और श्रोता अधिकारी नहीं मिलते है। मनुष्य जब तक वासनाओं में फँसा है तब तक विमान कैसे आयेंगे? और इससे पहले विमान आ भी जाये तो भी इन पर कोई बैठेगा नही।
शायद स्वर्ग से विमान लेने के लिए आ भी जाये तो भी मनुष्य को जाने की तैयारी कहाँ है?
हम सब विकार और वासनाओं में बंधे हुए है। मनुष्य पत्नी ,पुत्र, धन घर आदि में फँसा है।
जब तक यह आसक्ति छूटेगी नहीं मुक्ति नहीं है।
जिसका मन परमात्मा के रंग में रंग गया है उसके लिए तो वह जहाँ बैठा है वहीं मुक्ति है।
ईश्वर के साथ तन्मयता हो जाये उसीसे ही आनंद मिलता है। उससे बढ़कर आनंद वैकुंठ में भी नहीं है।
भक्त तुकाराम को लेने विमान आया तो तुकाराम पत्नी से कहा कि जीवन में तो तुम्हे कोई सुख दे न सका, परन्तु परमात्मा ने हमारे लिया विमान भेजा है। तो चलो तुम्हे विमान में बिठाकर परमात्मा के धाम ले चलू। परन्तु पत्नी ने न माना। उसने कहा की महाराज,आपको जाना हो तो जाइए। मुझे जगत्त को छोड़कर स्वर्ग में नहीं जाना है। और वह नहीं गई।
संसार का मोह छोड़ना बहुत कठिन है। जब तक वासना अंकुशित न हो जाय तब तक शांति नहीं मिल सकती।
कथा का एकाध सिध्दान्त भी यदि दिल में उतर जाये तो जीवन मधुर बन जाए।
वासनाएँ बढ़ती है,इसी से संसार कटु बन जाता है।
जब तक वासनाएँ क्षीण न हो जाएं तब तक मुक्ति नहीं मिलती।
पूर्वजन्म का शरीर तो चला गया है परन्तु पूर्वजन्म का मन नहीं गया है।
लोग अपने तन की,कपड़ो की खूब चिंता रखते है,
परन्तु मरने के बाद भी जो साथ आता है उस मन की चिंता नहीं रखते है। मरने के बाद जिसे साथ आना है उसी की फिक्र करो। धन,शरीरादि की चिंता मत करो।
मरने के बाद तो जो अँगूठी तुम्हारी ऊँगली में होगी वह भी लोग निकाल लेंगे।
आचार-विचार के बिना मन की शुध्दि नहीं होती है। जब तक मन की शुध्दि न हो तब तक भक्ति नहीं हो सकती। ज्ञान और वैराग्य को दृढ करने के लिए यह भागवत की कथा है।
विवेक से जब तक संसार का अंत न लाये तब तक संसार का अंत आने वाला नहीं है।
जीवन में सयंम और सदाचार जब तक न आए तब तक पुस्तको से मिला ज्ञान किसी काम आएगा नहीं।
केवल ज्ञान भी किस काम का?
एक गृहस्थ के पुत्र का अवसान हुआ। गृहस्थ रोता है। उसके घर कोई ज्ञानी साधु आता है और उसे उपदेश देता है,”आत्मा अमर है,मरण शरीर का होता है,अतः तुम्हे पुत्र का शोक करना अनुचित है।”
कुछ समय के बाद उस साधु की बकरी मर गई जिससे यह रोने लगा। साधु को रोता हुआ देखकर उस गृहस्थ ने साधु से पूछा कि महाराज,आप तो मुझे उपदेश देते थे कि किसी की मृत्यु पर शोक नहीं करते तो फिर आप किस लिए रुदन कर रहे है? साधु ने कहा कि बालक तुम्हारा था और बकरी तो मेरी थी अतः रोता हूँ।
ऐसा ‘परोपदेशे पाण्डित्यम् ' (उपदेश देने के समय पंडित बनना) किस काम का?