Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-16


ज्ञान का अनुभव करो,मुक्त होने के लिए ज्ञान का उपयोग है।  कथा जीवन को सुधरती है।  जीवन को पलट देती है।  कथा सुनने पर जीवन पलट न जाय तो मानो कि  कथा बराबर सुनी नहीं है।  कथा मुक्ति देती है यह बात बिलकुल सच है।  रोज मृत्यु को एक बार याद करते रहो।  शायद आज ही मुझे यमदूत लेने आ जाए  तो मेरी क्या दशा होगी? यदि ऐसा आप रोज सोचेंगे तो पाप नहीं होगा।  
मनुष्य मरण का विचार तो रोज करता ही नहीं है,परन्तु भोजन का विचार रोज करता है।  

इस भागवतशास्त्र की महिमा का वर्णन दूसरे बहुत से पुराणों  में किया गया है।  परन्तु सामान्यतः पद्मपुराण  के अंतर्गत महात्मय का वर्णन करते है।  अब श्रीभागवत की महिमा का वर्णन करना है।  
महात्मय एक बार सनत्कुमारों  ने श्रीनारदजी को कह सुनाया था।  
महात्मय में ऐसा लिखा था कि  बड़े -बड़े  ऋषि और देवता  छोड़ के विशालक्षेत्र  को  लिए आय थे।  
इस कथा में जो आनंद मिलता है वो ब्रह्मानंद  से भी श्रेष्ठ है।  अर्थात  योगी  तो केवल अपना ही  उद्धार  करता है जबकि सत्संगी  अपने साथ  आए  हुए सभी का  उद्धार करता है।  
बद्रिकाश्रम में सनत्कुमार पधारे है।  जिसे लोग बद्रिकाश्रम कहते है वो ही विशालक्षेत्र है।  
 
स्कन्धपुराण  में कथा आती है कि  बद्रीनारायण-- विशाल राजा के लिए पधारे थे।  
पुंडलिक  के लिए विट्ठलनाथ आये थे।  जिस भक्त के लिए भगवान आए  वह धन्य है।  

बद्रीनारायण  तप -ध्यान का आदर्श जगत को बताते है।  वे कहते है की मै  भी तप  करता हूँ  ध्यान लगाता हूँ।  तपश्चर्या के बिना शान्ति नहीं मिलती।  
जीव कठिन तपश्चर्या नहीं कर सकता है,अतः श्रीभगवान आदर्श बताते है।  बालक जब दवाई नहीं खाता तब माँ स्वयं उसे (दवाई) खाकर बताती है, जिससे बालक समझे कि  दवाई भी खाने की चीज है।  

श्रीबद्रीनारायण के  मंदिर में लक्ष्मीजी की मूर्ति मंदिर के बाहर  है।  
स्त्री और बालक का संग तपश्चर्या में विघ्नरूप है,इसमें स्त्री की  निंदा नहीं  है परन्तु काम की निंदा है।  
इसी तरह तपस्वनी स्त्री के लिए भी पुरुष का संग त्याज्य है।  
आजकल किसी को भी  पत्नी और बालकों  का त्याग नहीं करना है,इसलिए कहना पड़ता है कि  
पत्नी और बच्चो के साथ रहकरके भी अनाशक्त -होकर  भगवान का का भजन  करो।

विशालपुरी में जहाँ सनत्कुमार विराजते थे वहाँ एक दिन नारदजी घूमते हुए आ गए।
वहाँ  सनकादि ऋषियों  नारदजी का मिलन हुआ।  नारदजी का मुख उदास देखकर सनकादि ने  उनकी
उदासीनता का कारण पूछा कि - आप चिंता में क्यों हो?आप हरिदास है।  श्रीकृष्ण का दास कभी न हो उदास।  वैष्णव तो सदा प्रसन्न रहता है।  जो चिंता न करे वाही तो वैष्णव है।  वैष्णव तो प्रभु का चिंतन करता है।
फिर भी आप प्रसन्न क्यों नहीं हों?

नारदजी ने कहा कि  मेरा देश दुखी है।  सत्य,तप ,दान,दया रहे नही हैं।  मनुष्य बोलता है कुछ,उसके मन में कुछ और होता है और करता भी कुछ और ही है। और  क्या कहुँ ?
"उदरम्भरिनों  जीवाः।"   जीव केवल अपने अपने पेट भरने वाले और स्वार्थी हो गए है।  
समाज में किसी को भी सुख-शांति रही नहीं है।  मैंने अनेको  स्थानो का परिब्रह्मण  किया है।  फिर भी मुझे शांति देखने नहीं मिली।  आज सारा देश दुखी क्यों  हो रहा है?

नारदजी ने इसके कई कारण  बताए  है।  
धर्म और ईश्वर में  तक आस्थावान नहीं बने, तब तक देश सुखी नहीं हो सकता।  जिसके जीवन में धर्म का स्थान प्रधान नहीं है उसे जीवन में कभी शांति नहीं मिलती।  धर्म और ईश्वर को भूलनेवाला कभी सुखी नहीं होता।  जगत में अब धर्म रहा ही कहाँ  है?

नारदजी ने यह दुःख से कहा है कि  अब इस जगत में सत्य नहीं रहा है। "सत्यम नास्ति।"


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE