Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-20


सनकादि मुनि कहते है की तुम्हारी भावना दिव्य है।  भक्ति का प्रचार करने की तुम्हारी इच्छा है।
आप भागवत ज्ञानमार्ग का पारायण कीजिए।  तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।  
तुम भागवत ज्ञानयज्ञ करो और भागवत का प्रहार करो।  इसी से लोगो का कल्याण होगा।  
इस कथा से ज्ञान और वैराग्य की जाग्रति होगी।   
श्रीभागवत की कथा ज्ञान ,भक्ति और वैराग्य को बढ़ाने वाली है।  
वेदों  का पारायण करना अच्छा है।  उससे आपकी इच्छा पूर्ण होगी।  परन्तु वेदों  के अर्थ जल्दी समझ में नहीं आते। इसलिए सर्व वेदों  के साररूप इस भागवत का ज्ञानयज्ञ करो।  

श्रीभागवत कथा का अमृत पाने के लिए वे वह वहाँ  से गंगा किनारे गये।  शुध्ध  भूमि में सात्विक भाव जागते है।  भूमि का प्रभाव सुक्ष्म रीती से मन पर अवश्य पड़ता है।  भोगभूमि भक्ति  में बाधक है।  
श्रीगंगाजी का तट  ज्ञानभूमि है।  
श्रीनारदजी सनत्कुमारो के साथ आनंदवन व्यासाश्रम में आए  है।  नारदजी हाथ जोड़े बैठे है।  
वहाँ  ऋषिमुनि भी श्रीभागवत कथा का पान करने आए  है।  
जो नहीं आये थे,उन सभी के घर भृगु ऋषि जाते है  विनीत भाव से वंदन करके उनको  कथा में में ले आते है।  

सत्कर्म में दूसरों  को प्रेरणा दे, उसे  भी  पुण्य मिलता है।  

कथा के आरम्भ में भगवान का जयजयकार करते है,और “हरये नमः “का शुध्धोचार  करते है।  
यह हरये नमः का महामंत्र है।  

सारी  प्रवृतियों को छोड़कर मनुष्य ध्यान में बैठता है।  वहाँ  भी माया विघ्न करती है।  
अनादिकाल से मनुष्य का माया के साथ  युध्ध  होता आया आया है।  
जीव ईश्वर के पास जाता है तो माया को यह अप्रिय लगता है।  

माया का कोई एक रूप नहीं है।  ईश्वर जिस प्रकार व्यापक है उसी प्रकार माया भी  ऐसी ही -व्यापक जैसी है।  
और वो -जीव  और ईश्वर के मिलने में विघ्न करती है।
माया मन को चंचल बनाती है।  माया मनुष्य को समझाती है कि  स्त्री बालक और धन-सम्पति आदि में ही सुख है।  इसका कारण  यह है कि  मनुष्य प्रभु को जय-जयकार करता नहीं है।  
कथा ,भजन में प्रेम से ईश्वर का जय-जयकार करना चाहिए जिससे माया की हार होगी और तुम्हारी जीत हो।  
प्रभु का जय-जयकार करोगे तो तुम्हारी जीत और जय-जयकार होगी।  

भूख और तृष्णा को  भूलोगे नहीं तो पाप होते ही रहेंगे।  भूख और प्यास को सहन करने की आदत होनी चाहिए। आगे कथा आएगी की राजा परीक्षितजी की बुध्धि  भूख और प्यास के कारण ही बिगड़ी थी।

सूतजी सावधान करते है।  
हे राजन, नारदजी आज श्रोता बनकर बैठे है और सनकादि आसन  पर  विराजमान है।  
अतः जय-जयकार शुध्ध  होने लगा है।  

यह भागवत की कथा अति दिव्य  है।  इस कथा को जो प्रेम से सुनेगा उसके कान में से परमात्मा ह्रदय में उतरेंगे।  
नेत्र और श्रोत को जो पवित्र रखते है उनके ह्रदय में परमात्मा  आते है।  
परमात्मा श्रीकृष्ण कान में से,आँख में से मन में आते है।  

बार बार जो श्रीकृष्ण की कथा सुनते है उनके ह्रदय में श्रीकृष्ण पधारते है।


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