Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-30



गोकर्ण बाद में घर लौटा  और उसे घरमें किसी के रोने की आवाज़  सुनाई दी।  
मनुष्य पाप हँसते  हुआ करता है पर पाप का दंड जब भुगतना पड़ता है तब वह रोता है।  
एक ही माता-पिता के पुत्र होने पर भी गोकर्ण देव बना और धुंधुकारी प्रेत बना।  
देव और प्रेत होना तुम्हारे हाथ में है।  

गोकर्ण ने पूछा की तू कौन है ? और तेरी ये दशा कैसे हुई।? क्यॉ  तू  भूत,पिशाच या राक्षस है?
प्रेत ने कहा की  मै  तुम्हारा भाई धुंधुकारी हूँ।  बहुत पाप करने से मेरी ये हालत हुई और मझे प्रेतयोनि मिलि।
गोकर्ण ने पूछा की मैंने गया में पिंडदान किया फिर भी तू प्रेतयोनि से मुक्त क्यों नहीं हुआ?
प्रेत ने कहा-”गया शतेनापि मुक्तिर्मे न भविष्यति। "
चाहे कितने भी गया श्राध्द  करो फिर भी मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।”केवल श्राध्द  मात्र उध्धार  नहीं सकता।  

गोकर्ण ने पूछा-”तुझे सद्गति कैसे मिलेगी?क्या करू?”
फिर सोचकर कहता है की मैं  कल सूर्यनारायण से पूछुंगा।  
दूसरे दिन गोकर्ण ने सूर्यनारायण का अर्ध्य दिया और उनसे कहा-”महाराज जरा रुकिये।”
सूर्यनारायण रुक गए।  यह त्रिकाल संध्या का फल है।
त्रिकालसंध्या करने वाला कभी मुर्ख और दरिद्र नहीं रहता।  
सूर्यनारायण ने पूछा-”क्या काम है मेरा?”
गोकर्ण ने कहा की मेरे भाई के उध्धार  का कोई उपाय बताइये।  
सूर्यनारायण ने कहा -”अपने भाई की सद्गति दिलाने की इच्छा हो तो भागवत की विधिपूर्वक कथा कर। “
श्राध्दसे भी जिस आत्मा की मुक्ति नहीं होती है,उसे भागवत मुक्ति दिलाता है। भागवतशास्त्र मुक्तिशास्त्र है।

धुंधुकारी को पाप से मुक्त कराने के लिए गोकर्ण ने भागवत-सप्ताह का आयोजन किया।
धुंधुकारी वहाँ  आया किन्तु उसे बैठने के लिए जगह न मिली तो सात गांठो  वाले बांस में प्रविष्ट हुआ।
रोज एक के बाद एक गांठ टूटती गई।  सातवें  दिन परीक्षित-मोक्ष की कथा हुई।  बाँस  से दिव्य पुरुष बहार निकला।  गोकर्ण को प्रणाम करके वह बोला-”भाई ! प्रेत योनि से तूने मुझे मुक्त किया। “
धन्य है भागवत कथा।  

जड़ बांस की गाँठ  टूटती  है तो फिर चेतन की क्यों न टूटे? विवाह में दो व्यक्तियों के दामन बंधे जाते है। पति-पत्नी का स्नेह ही ग्रंथि है। इस ग्रंथि का छूटना कठिन है।  परमात्मा की सेवा करने के लिए एक-दूजे का साथ मिला है,ऐसा सोचें  तो पति-पत्नी सुखी हो सकते है।  

बाँस  में अर्थात वासनाओ में धुंधुकारी रहा था।बाँस  की सात गांठ अर्थात वासनाओं  की सात गांठ।  
वासना ही पुनर्जन्म का कारण  है।  अतः वासना को नष्ट करो।  
वासना पर विजय पाना ही सुखी होने का उपाय और मार्ग है।  मनुष्य मोह को नहीं छोड़ सकता।  

वासना अर्थात आसक्ति सात प्रकार की होती है-
(१) नारी की आसक्ति(पति-पत्नी की आसक्ति) (२) पुत्र की आसक्ति (पिता-पुत्र की आसक्ति)
(३) व्यावसायिक आसक्ति,(४) द्रव्य की आसक्ति,(५) परिवार की आसक्ति, (६) घरबार की आसक्ति,
(७) गाँव की आसक्ति।  इन सभी आसक्तियों का त्याग करो।  

शास्त्र में काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद, मत्सर और अविध्या   को सात गाँठ कहा गया है।

इनमे जीव बंधा हुआ है,जिसे मुक्त करने का प्रयत्न करना है।  



   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE