Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-32


कथा सुनकर उसका मनन करोगे और जीवन में उतारोगे  तो कथा श्रवण सार्थक होगा।
कथा सुनकर जीवन में एक लक्ष्य निश्चित किया जाये।
कथा का कोई एक शब्द भी मन में आ गया-  तो जीवन का उध्दार  हो जायगा।
कथा का मनन करो तो उत्तम है और अगर न करे तो भी लाभ है।

इसके पश्चात्त गोकर्ण ने श्रावण  मास  में दूसरी बार कथा कराई  और सबका उध्दार हुआ।
उस समय महारानी भक्ति वहाँ  ज्ञान और वैराग्य के साथ वहां आई।
ज्ञान और वैराग्य के साथ भक्ति बढे तो मुक्ति मिले।
भक्ति महारानी खुश होकर ज्ञान और वैराग्य के साथ नृत्य करने लगी।

मूर्छित और क्षीण ज्ञान को फिर से पुष्ट करके जागृत करने के लिए यह भागवत  कथा है।  
गोकर्ण के सभा मंडप में भगवान  प्रगट हुए और प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहा।
उस समय गोकर्ण कहते है कि  
जो मनुष्य श्रीकृष्ण की कथा-कीर्तन करे ऐसे भक्त के ह्रदय में आप विराजमान हों।

सबको सद्गति मिली है।  
वैकुंठ  में जो आनंद मिलता है,वही आनन्द श्रीभागवत कथा के श्रवण से मिलता है।
इसीलिए मनुष्य को  प्रेमपूर्वक कथा का श्रवण करना चाहिए।
श्रीभागवत मृत्यु के पहले ही मुक्ति दिलाता है।  
भागवत  मुक्ति प्राप्त करने का शास्त्र है।  
वेदान्त  के दिव्य  सिध्धान्त व्यासजी ने इस महात्मय में भर दिए है।

छठा अध्याय विधि बताने के लिए है।
सत्कर्म विधिपूर्वक किया जाये तो दिव्य  बनता है। सत्कर्म काल से अबाधित है।
सत्यनारायण की कथा में भी कहा है -सत्कर्म करने में देर न करो।

एकबार,धर्मराजा युधिष्ठिरके पास आकर एक याचक ने दान माँगा।
धर्मराज ने उसे अगले दिन आने को कहा।
भीमसेन ने इस बातचीत को सुनते ही विजयदुंदुंभि   बजानी शुरू कर दी।
सबने सोचा की भीमसेन कहीं  पागल तो नहीं हो गया क्योकि विजयदुंदुंभि विजय के समय ही बजाई  जाती है।

भीमसेन ने इसका कारण  यह बताया कि  आज हमारे भाई ने काल को भी नियंत्रण में कर लिया।
वे जान गए है की वे अगले दिन भी जीने वाले है।
धर्मराज के इस काल-विजय के उपलक्ष्य में यह दुंदुंभी बजा रहा हूँ।
धर्मराज को अपनी इस भूल का तुरन्त ज्ञान हो गया।

कहा गया  है की जानकीनाथ भगवान  श्रीराम भी नहीं जान सके कि  कल प्रातःकाल क्या होगा।
धर्मराज ने याचक को तुरन्त  बुलाया और यथायोग्य दान दिया।  
सत्कर्म तत्काल करो।

भवरोग की औषधि है भागवत  कथा।
जीव मात्र रोगी है। जीवका सबसे दुःखदायी रोग है--जीव से ईश्वर का वियोग।
इस रोग के निवारण के लिए श्रीभागवत का आश्रय लो।
श्रीकृष्ण से विरहरूपी रोग को दूर करने की औषधि यह भागवतशास्त्र  है।

जैसे रोग की परिचर्या के समय आहार-विहार आदि के कुछ नियम हमे मानने पड़ते है,
वैसा ही कुछ इस कथा के लिए भी जरूरी है

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