Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-47



ईश्वर  के लिए,मनुष्य कोई,साधन (जैसे-भक्ति) नहीं करता है,पर पूरी जिंदगी पाप करता है,
और जब मृत्यु आती है तो उससे डरता है।
ईश्वरने जब मनुष्य शरीर का जीवन दिया है तो- ईश्वर को यह अपेक्षा भी होती है कि -
मनुष्य को  दी गई बुध्धि और मन का उसने क्या किया? मृत्यु के समय वो हिसाब मांगता है।

जीव को मृत्यु के दिन अर्थात हिसाब देने के दिन भय लगता है।
किन्तु-जिसका जीवन साफ़ है, उसका हिसाब भी साफ़ है।

जिस दिन इन्कमटैक्स  का अधिकारी किसी गृहस्थ से लाख-दो-लाख रूपये का हिसाब मांगता है
तो वह गृहस्थ डर  जाता है।
तो फिर जब ईश्वर सारे  जीवन का हिसाब मांगता है तो क्या दशा होगी? क्या इसका भी कभी सोचा है?

किये हुआ पापों की याद अन्तकालमें आती है तो जीव भयभीत हो जाता है।
जब तक मृत्यु (काल) का भय है,तब तक जीव को शांति नहीं मिलेगी।

पर, भगवान जब जीव को अपना लेते है,तब काल (मृत्यु) जीव का कुछ बिगाड़  नहीं सकता।
उपनिषद्  में कहा है -
जीव और ईश्वर साथ-साथ बैठे है, फिर भी जीव ईश्वर को पहचानता नहीं है।
जीव यदि प्रयत्न करें- तो वह अन्तर्यामी को पहचान सकता  है।  

इसके लिए एक दृष्टांत है-
एक व्यक्ति को पता चला कि  गंगा किनारे रहने वाले संत के पास पारसमणि है।
पारसमणि पाने की इच्छा से वह संत की सेवा करने लगा। एक दिन उसने संत के पास पारसमणि माँगा।
संत ने कहा -कि मै  गंगास्नान करने जा रहा हूँ। वापस आकर तुझे पारसमणि दूंगा।

अब इस व्यक्ति की पारसमणि पाने की इच्छा बढ़ती गई।
उसने संत की पूरी झोंपड़ी  छान  डाली,परन्तु पारसमणि हाथ न लगी।
संत ने वापस  आकर कहा कि -तेरे में इतनी भी धीरज नहीं थी? पारसमणि तो मैंने उस डिबिया में रखी है।
ऐसा कहकर उन्होंने डिबिया निकाली। वह डिबिया लोहे की थी।

उस व्यक्ति ने सोचा कि  यह कैसा  पारसमणि है कि उसने डिबिया को सोने की नहीं  बनाई।
उसने संत से पूछा कि -क्या यह पारसमणि असली है ?
क्योकि पारसमणि के स्पर्श से डिबिया सोने की क्यों नहीं बनी ?
संत ने बताया कि  पारसमणि एक कपड़े में लपेटकर रखी  थी,
कपडे के आवरण से डिबिया सोने की बन न पायी।

इस प्रकार ईश्वर और जीव ह्रदय में एक ही स्थान में रहते है परन्तु दोनों के बीच वासना का पर्दा है
और फलतः दोनों का मिलन  नहीं हो पाता  
जीवात्मा  डिबिया है और ईश्वर पारसमणि। दोनों के बीच का पर्दा हटाना आवश्यक है।
ऐसे मनुष्य को- अहम और ममता रूपी -कपडा- दूर करना है। तो ईश्वर से मिलन होगा।

जीव साधक है,सेवा-स्मरण साधन है। श्रीकृष्ण साध्य  है।
कई लोग मानते है कि भक्ति -मार्गका साधन - बिलकुल आसान है।

सुबहमें  भगवान की पूजा की और पूरा दिन भगवान को भूले रखना। यह भक्ति नहीं है।

चौबीस घंटे ईश्वर का स्मरण रहे,यही भक्ति है। मनुष्य केवल शरीर से भक्ति करता है,मन से नहीं।


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