Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-57


नारदजी कहते है-
मुझे हुआ कि मै दौड़ता जाऊ और श्रीकृष्ण के चरणों  में वंदन करू।
मै  जैसे वंदन करने गया तो कृष्ण अंतर्ध्यान  हो गए। मुझे लगा कि मेरे श्रीकृष्ण मुझे छोड़कर चले गए।
वहाँ  मुझे आकाशवाणी से आज्ञा मिली,
"तेरे मन में सुक्ष्म वासना रही है। इस जन्म में अब मेरे दर्शन तुझे नहीं होंगे। यूं तो तेरी भक्ति से प्रसन्न हुआ हूँ, तेरे प्रेम की,भक्ति को पुष्ट करने के लिए तुझे एक और जन्म लेना होगा।
अगले जन्म में तुझे मेरे दर्शन होंगे। सतत भक्ति करना,दृष्टि और मन को सुधार कर
हमेशा सोचना कि मै तेरे साथ हूँ। और जीवन के अन्तिम श्वास तक जप  करना।

भजन बिना का भोजन पाप है। सत्कर्म की समाप्ति नहीं होती।
जिस दिन जीव की समाप्ति उस दिन सत्कर्म की समाप्ति।

नारदजी कहते है -
इसके बाद मै गंगा किनारे रहा। मरने से पहले मुझे अनुभव होने लगा कि इस शरीर से मै जुदा  हूँ।
जड़-चेतन की ग्रंथि छूट  गई। जड़ और चेतन की,शरीर और आत्मा की जो गाँठ लगी है,
यह गाँठ भक्ति के बिना नहीं छूटती। शरीर से आत्मा जुदा  है यह सब जानते है ,ऐसा सबको ज्ञान  है,
पर उसका अनुभव कौन करता है? ज्ञान का अनुभव भक्ति से होता है।

संत तुकाराम कहते है कि "मैंने अपनी आँखों से मौत को देखा है। अपने आत्मस्वरूप को निहारा है। "
सारा जीवन जिसके पीछे गया होगा वही अंतकाल में याद आता है, पर-
मन ईश्वर में लगा हो और ईश्वर स्मरण करते-करते शरीर छूट  जाये तो मुक्ति मिलती है।

मन को ईश्वर का स्मरण करने के लिए जप के बिना और कोई साधन नहीं है।
जब जीभ से जप करो तभी मन से स्मरण करना ही चाहिए।

नारदजी कहते है-
अंतकाल में राधा-कृष्ण का चिंतन करते मैने शरीर का त्याग किया। अपनी मृत्यु मैने प्रत्यक्ष देखी।
मुझे मृत्यु का कष्ट नहीं हुआ।

इसके बाद मेरा जन्म ब्रह्माजी के यहाँ हुआ। पूर्वजन्म के किये हुए भजन  मुझे इस जन्म में मिला।
मेरा नाम नारद रखा गया। पूर्वजन्म के भजन से मेरा मन स्थिर हुआ।
मेरा मन संसार की ओर  नहीं जाता था। अब मेरा मन चंचल नहीं होता था।
अब तो मै सतत परमात्मा का दर्शन करता हूँ।

एक दिन मै गोलोक धाम में गया। वहाँ  मुझे राधा-कृष्णा के दर्शन हुए।  मै कीर्तन में तन्मय हुआ।
प्रसन्न होकर राधाजी ने मेरे लिए प्रभु से सिफारिश की कि -नारदजी को कुछ प्रसाद  दो ।

व्यासजी ने पूछा कि -प्रसाद में प्रभु ने तुम्हे क्या दिया?
नारदजीने कहा  कि  -प्रसाद में प्रभु ने मुझे तम्बूरा  (बीणा ) दिया।
प्रभु ने मुझे कहा -कृष्णा-कीर्तन करते-करते जगत में भ्रमण करो,
और मुझसे  जुदा हुए -संसार के अधिकारी जीवो को हमारे पास  लाओ।
संसार-प्रवाह में बहते हुए जीवों  को हमारी ओर  लाओ।

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