Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-61



संत होने के लिए ,क्या घर छोड़ना  है? नहीं,घर छोड़ने की जरुरत नहीं है।
घर में रहकर एकनाथ महाराज,गोपियां  आदि ने प्रभु को प्राप्त किया है।
गेरू कपडे पहनने से कोई सन्त  नहीं होता। कपडे बदलने की जरुरत नहीं है।
कलेजा (मन) बदलने की जरुरत है। मन के गुलाम मत बनो। मन को गुलाम बनाओ।
परीक्षित राजा ने मन को सुधारा  इसलिए उन्हें शुकदेवजी मिले।

संसार में जो लक्ष्य को याद रखता है वही  सन्त  है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य है परमात्मा से मिलन।
आत्मा मन का साक्षी है,द्रष्टा  है। जिसने अपने मन को सुधरा वही  संत है।  मन को सुधारने  की जरुरत है। जगत नहीं बिगड़ा,अपना मन बिगड़ा है। मन पर अंकुश रखो,
मन को मृत्यु का भय दिखाओ तो मन सुधरेगा। मृत्यु के स्मरण से मन सुधरता है।
परीक्षित राजा ने जब सुना कि सातवें  दिन मरने वाला हूँ,सुनते ही विलासी जीवन का अन्त आ गया।
उनको मृत्यु का भय लगा,तो उनका जीवन सुधरा। मृत्यु का दुःख भयंकर है।
जीव शरीर छोड़ता है उस समय हजारों  बिच्छू एक साथ डंख मारते हो ऐसी वेदना होती है।

जन्म दुःख है,वृद्धावस्था दुखमय है,और स्त्री पुत्रादि,परिवार-दुःखरूप है,और अंतकाल भी बड़ा दुखद है।
इसलिए जागो और इस अंतकाल को रोज याद करो।
नित्य विचार करो कि आज  यमदूत मुझे पकड़ने आये तो मै कहाँ  जाऊँगा,नरक में,स्वर्ग में,या वैंकुठ में?
मृत्यु का निवारण शक्य  नहीं है तो फिर पाप किस लिए करते हो?
मृत्यु को रोज याद करो,मृत्यु का भय रहेगा तो तुम्हारा पाप दूर होगा।
और जिस दिन पाप दूर होगा तब मान लेना कि तुम सन्त  हो गए।

पाप-पुण्य के अनेक साक्षी है। सूर्य,चंद्र ,धरती,वायुदेव सब साक्षी है। मेरे भगवान के अनेक सेवक है।
वे जहाँ  तुम जाओगे,साथ आते है। पर मनुष्य मानता है कि जो पाप करता हूँ उसे कोई देखता नहीं है।
अरे- तुम्हारे अंदर जो आत्मा-रूप-परमात्मा विराजमान है वह तुम्हे देखता है।

शंकराचार्य स्वामी कहते है कि -
मनुष्य यह जानता है कि एक दिन मरना है,यह सब छोड़कर एक दिन जाना है,
ऐसा जानकार भी वह पाप क्यों करता है? मुझे इसका आश्चर्य होता है।
इसलिए अपने जीवन को संभालो।

परीक्षितका अधिकार सिध्ध  होने पर शुकदेवजी वहाँ  पधारे है। शुकदेवजी को आमंत्रण नहीं देना पड़ा।
राजा का जीवन अब महर्षि हुआ है। राजा जब तक महलों  में विलासी जीवन बिताते थे
तब तक शुकदेवजी नहीं आये, परन्तु तक्षक के भय से संसार छूटा कि तुरन्त ही शुकदेवजी पधारे।
राजा होता और उस समय शुकदेवजी कथा करने गए होते,तो राजा कहते-
”आप आये ठीक किया। एक घंटा कथा करो और विदाय लो। मुझे बहुत काम है।"

परीक्षित राजा को विश्वास हो गया था कि -अब सात दिन के बाद मरना है। 
हमे तो अपनी यह खबर भी नहीं है।
जीवन पानी का बुलबुला है। पानी के बुलबुले को फूटते देर नहीं लगती।
इसी प्रकार जीवन के अंत आने में भी देर नहीं लगती।


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