शुकदेवजी ने व्यासजी को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया।
व्यासजी ने शुकदेवजी को छाती से लगाया और माथा चूमा।
शुकदेवजी ने कहा -पिताजी ये श्लोक मुझे पढ़ाओ। शुकदेवजी कथा सुनते है और कृतार्थ होते है।
व्यासजी ने शुकदेवजी को भागवत का अध्ययन कराया।
और इस प्रकार व्यासजी की चिंता का अंत आया कि भागवतशास्त्र का प्रचार कैसे होगा।
इस भागवत-ग्रन्थ का सच्चा अधिकारी "आत्माराम" है,कारण कि श्रीकृष्ण सबकी आत्मा रूप है।
"विषयाराम" को इस ग्रन्थ को सुनने की इच्छा नहीं होती है।
सूतजी कहते है,
शौनकजी-आश्चर्य मत करो। भगवान के गुण ऐसे मधुर है कि सबको वह अपनी ओर खींच लेते है। फिर इनसे शुकदेवजी का मन आकर्षित हुआ इसमें क्या नई बात है?
जो ज्ञानी है,जिनकी अविद्या की गाँठ खुल गई है,और जो सदा आत्मा में ही रमण करते है,
वह भी भगवान की हेतु रहित (निष्काम) भक्ति करते है।
भगवान के कथामृत का पान करते भूख और प्यास भी भूल जाती है।
इसलिए तो दसवें स्कंध के पहले अध्याय में राजा परीक्षित भी कहते है कि -
"पहले मुझे भूख और प्यास लगती थी,परन्तु भगवान के कथामृत का पान करते-करते अब मेरी भूख अद्रश्य
हो गई है। मैने पानी भी छोड़ दिया फिर भी आपके मुख से निकलते श्री हरिकथा रूपी अमृत का पान कर रहा हूँ। इसलिए यह दुःसह भूख भी मुझे पीड़ा नहीं देती है। "
सूतजी वर्णन करते है-
इसके बाद यह कथा शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सुनाई। मेरे गुरुदेव भी वहाँ थे। उन्होंने यह कथा मुझे सुनाई। अब मै यह कथा तुम्हे सुनाता हूँ।
अब मै परीक्षित के जन्म,कर्म और मोक्ष की कथा तथा पांडवो के स्वर्गारोहण की कथा कहता हूँ।
पवित्र पांडवो के वंश में परीक्षित का जन्म हुआ है।
पाँच प्रकार की शुध्धि बताने के लिए पंचाध्यायिनी कथा शुरू करते है।
पितृशुध्धि,मातृशुध्धि,वंशशुध्धि,अन्नशुध्धि और आत्मशुध्धि। जिनके ये पाँच शुद्ध होते है
उन्ही में प्रभु दर्शन की आतुरता जागती है। आतुरता के बिना ईश्वर दर्शन नहीं होते।
परीक्षित में ये पांचों शुध्धियाँ मौजूद थी। यह बात दिखलाने के लिये यह कथा बताई है।
७ से ११ अध्यायों में”बीज”शुद्धि की कथा है। बारहवें अध्याय में परीक्षित के जन्म की कथा है।
वंशका इतिहास - बताने के लिए -पांडव और कौरवों और उन के युध्ध की थोड़ी कथा कही है।
कौरव और पांडवो का युध्ध समाप्त हुआ है।
अश्वत्थामा ने विचार किया कि -मै पांडवो को कपट से मारूँगा। पांडव जब सो जायेंगे तब मारूंगा।