प्रभु ने सोये हुए पांडवो को जगा दिया और कहा कि मेरे साथ गंगा किनारे चलो।
पांडवो को श्रीकृष्ण पर कितना विश्वास!
द्वारकानाथ जो कहते थे वे करते थे। वे प्रभु के आधीन थे।
पांडवो को लेकर श्रीकृष्ण गंगा किनारे जाते है। पर,प्रभु के कहने पर भी द्रौपदी नहीं गई थी ।
उसने कहा- आपको तो नींद नहीं आती पर हमको तो सोना है।
परिणाम यह हुआ कि अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पाँचो पुत्रो को मार दिया।
द्रौपदी बहुत आँसु बहाती है, बहुत दुखी है, दुःख में समझदारी आती है।
पर,आज कृष्ण निष्ठुर बने है। द्रौपदी के आँसुओ को भी नहीं देखते।
आज द्रौपदी रो रही है,परन्तु द्वारकानाथ को दया नहीं आती है।
नहीं तो द्रौपदी का रुदन श्रीकृष्ण से सहन नहीं होता था। पहले तो जब-जब जरुरत पड़ी तब-तब द्रौपदी के
आँसू पोंछने दौड़े चले आते थे।
यह जीव सब प्रकार से सुखी हो यह योग्य नहीं है।
सुख में सान -भान नहीं भूले इसलिए यह दुःख पांडवो को दिया है।
परमात्मा ने सोचा कि -पांडवो को पृथ्वी का राज मिला है,सम्पति भी भरपूर है। सब प्रकार से पांडव सुखी हो
वह ठीक नहीं है। पांडवो को अति सुख में शायद अभिमान हुआ तो पतन हो जायेगा।
ऐसे शुभ हेतु से ठाकुरजी कभी-कभी निष्ठुर हो जाते है। सुख में पांडव भगवान को न भूले इसलिए उनको यह दुःख दिया है। फिर भी-भगवान दुःख में जीव की गुप्तरीती से सहायता करते तो है ही ।
अश्वत्थामा और अर्जुन का युध्ध हो रहा है। अर्जुन ने अश्वत्थामा को मारने की प्रतिज्ञा ली थी।
परन्तु मारने की हिम्मत नहीं हो रही थी। गुरुपुत्र गुरु का स्वरुप है। फिर,अश्वत्थामा को बांधकर द्रौपदी के
पास लाया गया। पुत्र शोक में रोती द्रौपदी अश्वत्थामा की यह दशा देख कर कहती है-
"मेरा आँगन में आये ब्राह्मण का अपमान मत करो। उसे मत मारो"
अपने पाँच बालकों की हत्या करने वाले को द्रौपदी वंदन करती है। यह कोई साधारण वैरी नहीं है।
पाँच बालको की हत्या करने वाला आँगन में आया है,फिर भी यह ब्राह्मण है इसलिए प्रणाम करती है।
आपका वैरी क्या आपके घर के आँगन में आया हो तो क्या आप "जय श्रीकृष्ण" करोगे?
भागवत की कथा सुनकर जीवन को सुधारो। वैर की शान्ति निर्वैर से होती है। वैष्णव वह है जो वैर का बदला प्रेम से देता है। "जय श्रीकृष्ण" का अर्थ है की मुझे जो दीखता है वह सब कृष्णमय है।
अश्वत्थामा सोचते है कि सचमुच द्रौपदी वंदनीय है। वह कहते है-द्रौपदी,लोग जो तुम्हारी प्रशंसा करते है
वह बहुत कम है। तुम वैर का बड़ा प्रेम से देती हो। द्रौपदी के गुणों से आज व्यासजी भी तन्मय बने है।
द्रौपदी को उद्देश्कर कहते है,”वामस्वभावा”कोमल स्वभाववाली,सुन्दर स्वभाववाली।
जिसका स्वाभाव अति सुन्दर हो वही भगवान को प्यारा लगता है। स्वभाव सुन्दर कब बनता है?
अपकार का बदला भी उपकार में देंगे तब। द्रौपदी बोल उठी कि उनको छोड़ दो। उन्हें मारो नहीं,वह गुरुपुत्र है।
जो विध्या गुरु द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र को नहीं दी वह आपको दी है। क्या आप ये सब भूल गए है?
ब्राह्मण परमात्मा का स्वरुप है।