Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-69



भक्ति मार्ग में भगवत-वियोग सहन नहीं होता। वैष्णव वह है जो प्रभु के विरह में जलता है।
द्वारिकानाथ द्वारिका जाने को तैयार हुए,कुंती का दिल भर आया।
उनकी अभिलाषा है कि-
"चौबीस घंटे श्रीकृष्ण को निहारा करू। मेरे श्रीकृष्ण मुझसे कही दूर न जाये। "
जिस मार्ग से भगवान का रथ जानेवाला था वही  कुंती आयी और हाथ जोड़कर रास्ते में खड़ी हो गयी।

प्रभु ने दारुक  सारथि से रथ रुकवाया और कुंती से कहा कि -
फ़ूफ़ीजी, आप मार्ग में क्यों खड़ी  है ? वे रथ से निचे उतरे। कुन्तीजी ने वंदन किया।

वंदन से प्रभु बंधन में आते है। वंदन के समय अपने सारे पापोंको याद करो। ह्रदय दीन और नम्र  होगा।

सूतजी वर्णन करते है -
नियम तो ऐसा है कि रोज भगवान कुन्तीजो को वंदन करते है। किन्तु आज कुंती भगवान को वंदन
कर रही है। भगवान ने कहा कि - यह आप क्या कर रही है?मै तुम्हारा भतीजा हूँ।
तुम मुझे प्रणाम करो  यह शोभास्पद नहीं है।

कुंती कहती है कि - मै आज तक आपको अपना भतीजा मानती थी। किन्तु आज समझ में आया कि  
आप ईश्वर है। योगीजन आपका ही ध्यान करते है। आप सबके पिता है।

कुंती की भक्ति दास्यमिश्रित वात्सल्यभक्ति है। हनुमानजी के भक्ति दास्यभक्ति है।
दास्यभक्ति के आचार्य हनुमानजी है।दास्यभाव  से ह्रदय दीन  बनता है।
दास्यभक्ति में दृष्टि  चरणो में स्थिर करनी होती है। बिना भाव के भक्ति स्थिर नहीं होती।

मर्यादा-भक्ति से दास्यभाव मुख्य है। कुंती दास्यभाव से कृष्ण का मुख निहारती है।
मेरे भाई का पुत्र,यही वात्सल्यभाव हुआ। मेरे भगवान है-यह भी दास्यभाव है।
चरण दर्शन से (दास्यभक्तिसे) तृप्ति नहीं हुई सो मुख देख रही है। कुंती भगवान की स्तुति करती है।

"जिनकी नाभि से ब्रह्मा का जन्म स्थान कमल प्रगट हुआ है,जिन्होंने कमल की माला धारण की है,
जिनके नेत्र कमल के समान विशाल और कोमल है और जिनके चरणों में कमल चिन्ह है
ऐसे,हे कृष्ण,आपको बार-बार वंदन।"

भगवान की स्तुति रोज तीन बार करो-सुबह,दोपहर  और रात में।
इसके अलावा  सुख, दुःख और अंतकाल में भी स्तुति करो।
कुन्ती  सुख में स्तुति करती है और भीष्म अन्तकाल  में स्तुति करते है।
सुख में जो स्तुतुि करते है वे फिर दुःखी  नहीं होते। सुख में भगवान का उपकार मानो।
भगवान की स्तुति करो और कहो - नहीं पर प्रभु आपकी कृपा से मै सुखी हूँ।

दुःख में भी प्रभु  के स्तुति करो और उनका उपकार मानो। दुःख और सुख एक चक्र है जो आता है और जाता है।  
सामान्य मनुष्य अति सुख में भगवान को भूल जाता है। जीव मात्र पर भगवान अनेक उपकार करते है।
हम जब बीमारी से अच्छे होते है तो ऐसा मानते है कि दवाई और डॉक्टर से ठीक हुए।
किन्तु भगवान ने बचाया ऐसा नहीं मानते। भगवान का उपकार नहीं मानते।

डॉक्टर के पास जो बचाने  की शक्ति होती तो उसके खुद के घर से कोई भी अंतिम यात्रा नहीं निकलती।


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