Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-77



युधिष्ठिर का राज्य तिलक करके श्रीकृष्ण द्वारिका गए,वहाँ  की जनता ने  रथयात्रा का दर्शन किया। द्वारिकाधीश ने द्वारिका में प्रवेश किया। नगरजन कहते है कि  आपकी कृपा से सब ठीक था। एकमात्र दुःख यही था कि आपके दर्शन नहीं कर सकते थे। सभी को कृष्ण-दर्शन की आतुरता है।

ग्यारहवे अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारिका पधारे उसकी कथा है। बारहवें  अध्याय में परीक्षित के जन्म की कथा है। पवित्र समय में उत्तरा  ने बालक को जन्म दिया। वह चारों  ओर  देखने लगा।
"माता के उदर  में मुझे चतुर्भुज स्वरुप जो पुरुष दीखता था वह कहाँ  है?"
परीक्षित भाग्यशाली थे कि  उनको  माता के गर्भ में ही भगवान के दर्शन हुए।
यही कारण है कि वह उत्तम श्रोता है।

युधिष्ठिर ने ब्राह्मणो से पूछा कि -यह बालक कैसा होगा?  ब्राह्मणों  ने कहा -
वैसे तो सभी गृह दिव्य है किन्तु मृत्यु स्थान की कुछ गड़बड़ी है। उसकी मृत्यु सर्पदंश से होगी।
यह सुनकर धर्मराज को दुःख हुआ। " मेरे वंश का पुत्र सर्पदंश से मरे यह ठीक नहीं है। "
ब्राह्मणों  ने उनको आश्वस्त किया। "चाहे सर्पदंश से उसकी मृत्यु हो किन्तु उसे सद्गति मिलेगी।
उसके अन्य गृह शुभ है। इन ग्रहो को देखकर ऐसा लगता है कि इस जीवात्मा का यह अंतिम जन्म है। "

परीक्षित दिनों-दिन बडे  हो रहे है। चौदहवें  और पन्द्रहवें अध्याय में धृतराष्ट्र -पांडव मोक्ष की कथा है।
सोलहवें  अध्याय से परीक्षित चरित्र का आरम्भ होता है।

इस तरफ विदुरजी तीर्थयात्रा करते हुए प्रभास-क्षेत्र में आए।
उन्हें खबर मिली कि - सभी कौरवों  का विनाश हुआ है और धर्मराज सिंहासन  पर बैठे है।
केवल मेरा भाई धृतराष्ट्र ही धर्मराज के यहाँ मुट्ठी भर खाने के लिए रह गया है।
विदुरजी आए। धर्मराज ने उनका स्वागत किया। विदुरजी सन्मान मांगने नहीं आये थे।
अपने बंधु  को बंधनमुक्त करने के लिए आये थे।

उन्होंने छत्तीस वर्ष तीर्थयात्रा की।
संत तीर्थो को पावन  करते है। देवी भागवत  में लिखा है कि  -
घर की अपेक्षा अधिक सत्कर्म  तीर्थयात्रा में न हो सके तो वह तीर्थयात्रा व्यर्थ ही  है।
विदुरजी ने छत्तीस वर्ष तक यात्रा की फिर भी बात तो अति संक्षेप में ही कही।

आजकल तो लोग "हमने इतनी यात्रा की" ऐसी बात बार-बार करते है।
अपने हाथो से जो पुण्य कार्य हो उसे भूल जाओ और जो पाप हो उसे याद रखो। सुखी होने का यह मार्ग है।
किन्तु मनुष्य पुण्य को याद रखता है किन्तु पाप को भूल जाता है।

मध्यरात्रि के समय विदुरजी धृतराष्ट्र के पास गए। वे जाग ही रहे थे।
विदुरजी ने पूछा कि- नींद नहीं आ रही क्यॉ ? जिस भीम को तुमने विषभरे लड्डू खिलाये उसी घर में
तुम अब मीठे लड्डू खा रहे हो। धिक्कार है तुम्हे! पांडवो को तुमने दुःख दिया। तुम ऐसे दुष्ट हो कि
राजसभा में द्रौपदी को बुलाने की तुमने सम्मति दी थी। पांडवो को छोड़कर अब यात्रा करो।प्रभु  स्मरण करो।

धृतराष्ट्र कहते है कि मेरे भतीजे बड़े अच्छे है। मेरी खूब सेवा करते है। उन्हें छोड़कर जाने को  दिल नहीं होता।

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