विदुरजी कहते है -अब तुम्हे भतीजे प्यारे लग रहे है। याद करो कि तुमने पांडवो को मारने के लिए कितने प्रयत्न किये थे। यह धर्मराज तो धर्म की मूर्ति है सो तुम्हारे अपकार का बदला उपकार से दे रहे है। मुझे लगता है कि कुछ ही दिनों में पांडव प्रयाण करेंगे और तुम्हे सिहांसन पर बिठायेंगे। तुम अब मोह छोड़ो। तुम्हारे सिर पर काल मंडरा रहा है। तुम्हारे मुख पर मुझे मृत्यु के दर्शन हो रहे है। समझकर गृहत्याग करोगे तो कल्याण होगा नहीं तो काल के धक्के के कारण घर छोड़ना पड़ेगा।
धृतराष्ट कहते है-भाई,तेरा कहना ठीक है किन्तु मै अंधा हूँ। अकेला कहाँ जाऊ?
विदुरजी कहते है कि- दिन में तो धर्मराज तुम्हे जाने नहीं देंगे सो मै मध्यरात्रि को तुम्हे ले चल सकूँगा।
धृतराष्ट और गांधारी को लेकर विदुरजी सप्तस्त्रोत तीर्थ गए।
गंगाजी की वहाँ सात धारा है इसलिए उसे सप्तस्त्रोत कहते है।
जब गंगाजी पृथ्वी पर प्रगट हुए तब उनका स्वागत करने के लिए ऋषि-मुनि खड़े थे।
हरेक ने कहा कि हमारे आश्रम में पधारो। गंगाजी ने लीला की। ऋषि-मुनिओ को ख़राब न लगे इसलिए सात स्वरुप धारण करके हरेक के आश्रम में एक साथ गए।
ये सात धारा हरिद्वार के ब्रह्मकुंड में एकत्र होती है। इसलिए हरिद्वार के स्नान का महत्त्व है।
सुबह युधिष्ठिर धृतराष्ट्र के महल में आये। चाचाजी दिखाई नहीं देते। युधिष्ठिर ने सोचा कि -
हमने उनके पुत्रों को मौत के घाट उतारा अतः उन्होंने -क्या आत्महत्या की होगी। पर जब तक उनकी
खबर नहीं मिलती मै पानी नहीं पीऊंगा।
धर्मात्मा व्यथित होता है तो उससे मिलने संत आते है। धर्मराज के पास उस समय नारदजी आये।
धर्मराज ने कहा कि -मेरे पापों के कारण ही चाचाजी चले गए।
नारदजी समझाते है कि धृतराष्ट को तो सद्गति मिलने वाली है। चिंता मत करो।
हर एक जीव मृत्यु के अधीन है जहाँ चाचा जायेंगे वहाँ तुम्हें भी जाना है। आज से पांचवे दिन चाचाजी की सद्गति होगी और फिर तुम्हारी बारी आएगी। चाचा के लिए अब रोना नहीं। अब तुम अपना ही सोचो।
मृत्यु से ग्रसित व्यक्ति वापस नहीं आता।
जीवित अपने लिए ही रोए -तो वह ठीक है। पर यहाँ तो एक की मृत्यु के पीछे दूसरा रोता है।
पर, ऐसे,रोनेवाले को सोचना चाहिए कि- जो वहाँ चला गया है उसके पीछे उसे भी जाना है।
रोज सोचो कि मुझे अपनी मृत्यु उजागर करनी है तुम्हारे लिए अब छः महीने बाकी है।
तुम अपनी मृत्यु की सोचो।
नारदजी कहते है-"तुम्हे मे भगवत प्रेरणा से सावधान करने आया हूँ।
विदुरजी धृतराष्ट्र को सावधान करने आये थे।
छः मास के पश्चात कलियुग का प्रारम्भ होगा अब तुम किसी की भी चिंता मत करो।
तुम अपनी चिंता करो। "
तुम अपनी चिंता करो। "
बादमें -युधिष्ठिर ने कई यज्ञ किये।
यज्ञ में आये हुए -भगवान जब द्वारिका वापस गए तो साथ में अर्जुन को भी ले गए। थे
प्रभु की इच्छा थी कि -यदु कुल का नाश हो तो अच्छा हो और यदुकुल का सर्वनाश हो गया।
एक दिन,युधिष्ठिर ने भीम से कहा कि -नारदजी ने कहा था वह समय (कलियुग)आ रहा है ऐसा लगता है।
मुझे कलियुग की परछाई दिखाई दे रही है। मेरे राज्य में अधर्म बढ़ रहा है। मंदिर में ठाकुरजी का स्वरुप आनंदमय नहीं दीखता है। लोमड़ी और कुत्ते मेरे समक्ष रोते है। अर्जुन द्वारिका से आया नहीं है।
वह आ जाये फिर हम हिमालय की तरफ प्रयाण करते है।