किन्तु कृष्णप्रेम से जड़ शरीर भी चेतन बनता है और चेतन में विलीन हो जाता है।
प्रयाण और मरण में भेद है।
अंतिम श्वास तक नित्यकर्म,भक्ति ,सेवा-पूजा करता-करता आनंद में हसता हुआ जाये -वह प्रयाण।
पर अंतिम दिन तक स्नान नहीं,संध्या नहीं,ऐसी अपवित्र मलिन अवस्था में जाये वह मरण।
पांडवो के मरण की यह कथा नहीं है। उनके प्रयाण की कथा है।
धर्मराजा का मरण सुधरा क्योंकि उनका जीवन शुध्ध -धर्ममय था।
अब परीक्षित राज करने लगे। उन्होंने धर्म से प्रजापालन किया। तीन अश्वमेध भी किये।
अश्वमेध यज्ञ के समय घोड़े को मुक्त से विचरण कराया जाता है। वासना ही घोडा है।
वासना कहीं बंधती नहीं है। आत्मस्वरूप में विलीन होने पर ही वह अंकुशित होती है।
किसी विषय में वासना फंस न जाय इसका ध्यान रखना जरुरी है।
इन्द्रिय,शरीर और मनोगत वासना का नाश ही तीन यज्ञ है।
परीक्षित ने यह तीन यज्ञ किये। चौथा यज्ञ बाकी था। बुध्धिगत वासना का नाश तो
शुकदेवजी जैसे ब्रह्मनिष्ठ गुरु की कृपा से ही होता है। अतः चौथा यज्ञ अभी तक हुआ नहीं था।
परीक्षित दिग्विजय करने निकले है। घूमते-फिरते वे सरस्वती नदी के किनारे पर आये।
वहाँ गाय -बैलों को एक काला पुरुष लकड़ी से पिट रहा था।
बैल धर्म का स्वरुप है और गाय पृथ्वी का स्वरुप है। गाय की आँखों से आँसू बह रहे थे। दोनों दुखी है.
परीक्षितने पृथ्वी-रूप गाय से - उसके दुःख का कारण पूछा ।
तब-पृथ्वी कहती है कि-श्रीकृष्ण ने इस पृथ्वीलोक से अपनी लीला समेट ली है,
सो यह संसार पापमय कलियुग की कुदृष्टि का शिकार हुआ है।
धर्म के चार अंग मुख्य हैं -(१) सत्य (२) तप (३) पवित्रता और (४) दया।
इन चारों अंगों पर जब धर्म आधारित था तब सतयुग था। तीन अंगों पर आधारित था तब त्रेता युग आया,
दो अंगों पर ही आधारित रहा तब द्वापर युग आया और
एक ही अंग पर धर्म आधारित रह गया तो कलियुग आया।
"सत्य" ही परमात्मा है। सत्य और परमात्मा भिन्न नहीं है। जहाँ सत्य है वही परमात्मा है।
जो असत्य बोलता है उसके पुण्यों का क्षय होता है। सत्य के सहारे नर नारायण के पास जा सकता है।
तप -तप करो। हर प्रकार के सुखों का उपभोग न करो। थोड़ी सी तपश्चर्या रोज करो जो हरेक प्रकार के लौकिक सुखों का उपभोग करता है उस पर परमात्मा कृपादृष्टि नहीं करते।
दुःख सहकर परमात्मा की आराधना करना ही तप है। दुःख सहता हुआ भजन करे वही श्रेष्ठ है।
कुछ सहन करना भी सीखो।भगवान के लिए कष्ट सहना,दुःख सहना ही तप है।
वाणी और वर्तन में सयंम और तप होने ही चाहिए।