Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-84



राजा समझ गए की वह कठोर पुरुष जो कि गाय-बैलों को सता  रहा है वह "कलि"  है।
यह कलि  ही धर्मको सताता  है।
वे कलि  को मृत्यु-दंड देने तैयार हुए तो कलि शरण में आया और उनके चरणों  को स्पर्श किया।
यही स्पर्श के  कारण  परीक्षित की मति  भ्रष्ट हुई।

परीक्षित राजा को कलिने  स्पर्श दिया तो उनकी बुध्धि में विकार आ गया।
राजा जानते थे कि यह कलि है,अपवित्र है सो उसे दंड देना चाहिए। फिर भी उन्होंने कलि  के प्रति दया जताई। उन्होंने उसे कहा कि -तुझे मारूंगा नहीं किन्तु तू मेरे राज्य की सीमा से बाहर चला जा।
मेरे राज्य में तेरा कोई स्थान नहीं है।

कलि ने राजा से प्रार्थना की और कहा कि मै  कहाँ  जा सकता हूँ ? तो परीक्षित ने उसे चार स्थानों  में  रहने की अनुमति दी। वे स्थान हैं,ध्युत ,मदिरा,नारीसंग  और हिंसा।
इन चारों स्थानो में क्रमशः असत्य,मद,आसक्ति और निर्दयता ये चार "अधर्म" रहते है।
जुए और सट्टे का धन जिसके घर में आता है वहाँ साथ-साथ कलि भी आ जाता है। कई लोगलोग ऐसे भी है जो जुए और सट्टे में कमाते है और फिर उस धन का दान  करते है। वे मानते है कि चलो,दान किया और मेरी शुध्धि हो गई,परन्तु यह सब व्यर्थ ही है यह सब अनीति का धन है,ऐसे धन के दान से कभी जीवन शुध्ध नहीं होता।

इन चारों  स्थानो की प्राप्ति होने पर भी कलि  को संतोष नहीं हुआ। उसने राजा से कहा कि  -
ये चार स्थान तो गंदे है। कोई अच्छा स्थान मुझे रहने को मिले तो ठीक है।
तो परीक्षित ने उसे सुवर्ण में रहने की अनुमति दी।
अशुध्ध साधन से जब सुवर्ण घर में आता है तो कलि  उसके साथ आ जाता है। अनीति और अन्याय से प्राप्त धन में कलि है। अनीति से कमाया हुआ धन कमानेवाले को तो कलि  दुःखी  करता  है ही,
पर जो यह धन अपने वारिस के लिए रखता है वह वारिस भी दुःखी होता है।

असत्य,मद,काल,वैर और रजोगुण यह पाँच  जहाँ  न हो,वहाँ  आज भी सतयुग है। जिसके घर में नित्यप्रभु की सेवा और स्मरण होता है उसके घर में कलि  का प्रवेश कभी नहीं होता।

बैल के तीनों  पाँव परीक्षित ने फिर लगा दिए अर्थात धर्म की फिर स्थापना की।
कलि  ने सोचा कि  राजा ने पाँच स्थान रहने के  लिए दिए है। अब कोई तकलीफ नहीं है।
अब तो-परीक्षित राजा के घर में भी कभी घुस जाऊँगा।

एक दिन परीक्षित को जिज्ञासा हुई कि देखू तो सही कि मेरे दादा ने मेरे लिए घर में क्या -क्या रख छोड़ा  है?
एक पेटी  में सुवर्ण मुकुट मिला। बिना कुछ सोचे ही राजा ने मुकुट पहन लिया। यह मुकुट जरासंघ का था। जरासंघ के पुत्र ने सहदेव से यह मुकुट माँगा था कि  मेरे पिता का मुकुट मुझे दे दो। मुकुट लौटाने  की  सहदेव की इच्छा  नहीं थी। फिर भीम जबरदस्ती से यह मुकुट लाया था। सो यह धन अनीति का था। अनीति का धन उसके कमाने वाले को और वारिस को भी दुःखी  करता है। इसलिए उस मुकुट को  पेटी में बंद करके रखा गया था। मुकुट अधर्म से लाया गया था इसलिए उसके द्वारा कलि ने परीक्षित की बुध्धि में प्रवेश किया।

इस मुकुट को पहनकर परीक्षित राजा वन में शिकार करने गए।
राजा वैसे तो कभी शिकार करने के लिए जाते नहीं थे,किन्तु आज गए है।
अनेक जीवों  की हत्या की। मध्यानकाल  होने पर राजा को भूख और प्यास सताने लगी।
उन्होंने एक ऋषि के आश्रम में प्रवेश किया। वहां शमीक ऋषि समाधि में लीन थे।


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