पूछने पर लोगों ने बताया कि कल द्वारिका से श्रीकृष्ण आ रहे है।
विदुरजी घर लौटे। वे बड़े आनंदमय दीख रहे थे।
उनकी पत्नी ने पूछा -क्या बात है कि आज आप बड़े खुश दिखाई दे रहे है?
विदुरजी ने कहा -सत्संग में सारी बात कहूँगा। मैंने कथा में सुना था कि जो बारह वर्ष तक सतत सत्कर्म करे,
उस पर भगवान कृपा करते है। बारह वर्ष एक ही स्थान में रहकर ध्यान करने वाले को प्रभु दर्शन देते है।
मुझे लगता है कि द्वारिकानाथ दुर्योधन के लिए नहीं किन्तु मेरे लिए ही आ रहे है।
सुलभा ने कहा कि मुझे स्वप्न में रथयात्रा के दर्शन हुए थे। वह स्वप्न सच होगा।
बारह वर्ष से मैंने अन्न नहीं खाया।
विदुरजी कहते है कि हे देवी!तुम्हारी तपश्चर्या का फल मिलेगा। कल परमात्मा के दर्शन होंगे।
सुलभा ने विदुरजी से पूछा कि -आपका प्रभु के साथ कोई परिचय है ?
विदुरजी ने कहा कि जब मै कृष्ण को वन्दन करता हूँ तो वे मझे ‘चाचा ‘ कहकर पुकारते है।
मै तो उनसे कहता हूँ कि -मै तो अधम हूँ,आपका दासानुदास हूँ। मुझे “चाचा”मत कहो।
जीव जब नम्र होकर प्रभु के शरण में जाता है तो ईश्वर उसका सम्मान करते है।
सुलभा के मन में एक ही भावना है कि ठाकुरजी मेरे घर पर भोजन करे और मे उन्हें प्रत्यक्ष निहारु।
सुलभा कहती है कि वे आपके परिचित है तो उनको हमारे घर पर पधारने का न्योता दीजिये।
मै भावना से तो रोज भगवान को भोग लगाती हूँ।
अब मेरी यह इच्छा है कि मेरी दृष्टी के समक्ष वे प्रत्यक्षरूप से भोजन करे।
विदुरजी कहते है कि मेरे आमंत्रण को अस्वीकार तो वे नहीं करेंगे?
किन्तु इस छोटी सी झोपडी में हम उनका आदर-सत्कार कैसे करेंगे?
उनके आगमन से हमे तो आनंद होगा किन्तु उनको तो कष्ट ही होगा।
मेरे भगवान छप्पन भोगों का प्राशन करते है। धृतराष्ट्र के घर उनका भलीभाँति स्वागत होगा।
मेरे पास तो भाजी के सिवा कुछ नहीं है। मै उन्हें क्या अर्पण करूँगा?
हमारे यहाँ आने से ठाकुरजी को परिश्रम होगा।
अपने सुख के लिए मै भगवान को जरा भी कष्ट नहीं देना चाहता। यही पुष्टि भक्ति है।
सुलभा ने कहा कि मेरे घर में चाहें दूसरी कुछ भी चीज़ भले ही न हो किन्तु मेरे ह्रदय में प्रभु के लिए अपार प्रेम है। वह प्रेम ही मे तो भगवान के चरणों में समर्पित केर दूंगी।
हम जो भाजी खाते है,वही मै ठाकुरजी को प्रेम से खिलाऊँगी।
जीभ के सुधरने पर जीवन भी सुधरता है और जीभ के बिगड़ने पर जीवन भी बिगड़ जाता है।
सीधा-सादा भोजन करनेसे जीवन शुध्ध होता है।
विदुरजी ने कहा - भगवान राजमहल में जायेंगे तो वहाँ रहेंगे। मेरे घर में उनको कष्ट होगा।
इसलिए मै भगवान को यहाँ लाना नहीं चाहता। देवी,हमारे अन्दर अभी भी कुछ पाप बाकी है।
मै तुम्हे कल कृष्ण के दर्शन कराने के लिए ले जाऊँगा,किन्तु ठाकोरजी अपने घर आये,
ऐसी आशा अभी मत कर। वे बाद में कभी हमारे यहाँ आयेंगे अवश्य,पर शायद कल तो नहीं आऐंगे ।