अगले दिन विदुर और सुलभा बालकृष्ण की सेवा करते है। बालकृष्ण स्मित कर रहे है।
सुलभा का ह्रदय द्रवित हुआ।
दोनों पति-पत्नी -रथारूढ़ द्वारिकानाथ के दर्शन करने गए है। भगवान रथ मे बैठकर जा रहे थे।
विदुरजी सोचते है कि मेरी ऐसी तो पात्रता नहीं है कि भगवान मेरे घर आये किन्तु
क्या एक नज़र मुझे देखेंगे तक नहीं? मै पाप हूँ किन्तु मेरे भगवान तो पापी के उध्धारक है,पतितपावन है।
उनके लिए मैंने सभी विषयों का त्याग कर दिया है। नाथ,आपके लिए मैंने क्या-क्या न सहा?
बारह वर्षो से अन्न नहीं खाया। क्या भगवान मेरी और एक दृष्टी भी नहीं करेंगे?
कृपा कीजिए। हजारों जन्मों से मे आप से जुड़ा रहा हूँ पर आज आपकी शरण में आया हूँ।
लोगों की भीड़ में से रथ आगे बढ़ रहा था,प्रभु की आँखे तो बेचैन होकर देख रही थी।,विदुर-सुलभा ने दर्शन किये।
और भीड़मे श्रीकृष्ण ने भी विदुरचचा को देखा। विदुर कृतार्थ हो गए कि चलो मेरी ओर भी भगवान ने दृष्टी की।
भगवान का दिल भी भर आया। दृष्टी प्रेम से आर्द्र हो गई।
भगवान ने सोचा -कि-मेरे विदुर न जाने कब से मेरी प्रतीक्षा कर रहे है।
सुलभा को लगा कि मेरे प्रभु मेरी ओर देखकर ही हँस रहे थे। मेरे प्रभु ने मेरी ओर देखा।
भगवान जानते है कि मै विदुर की पत्नी हूँ और इसलिए उन्होंने मुझ पर दृष्टिपात किया।
प्रभु ने दृष्टी से ही विदुरजी से कहा कि -
मै आपके घर आऊँगा किन्तु अति आनन्द में दुबे हुए सुलभा-विदुरजी भगवान का संकेत समझ न पाये।
कृष्ण हस्तिनापुर गए। प्रभु ने धृतराष्ट्र-दुर्योधन को बताया कि
मै द्वारिका के राजा की हैसियत से नहीं,अपितु पांडवो का दूत बनकर आया हूँ।
पांडवों का नाम सुनते ही दुर्योधन ने भगवान का अपमान किया।
दुष्ट दुर्योधन ने भगवान का अपमान करते हुए कहा कि भीख मांगने से राज्य नहीं मिलता।
मै युध्ध के लिए तैयार हूँ। उसने कृष्ण की एक न मानी। संधि करने के प्रयत्न में श्रीकृष्ण सफल न हो सके।
धृतराष्ट्र ने भगवान से कहा कि- इन भाइयों के झगडेसे आप दूर ही रहे।
आपके लिए छप्पन भोग तैयार है,आराम से भोजन कीजिए।
श्रीकृष्ण ने कहा कि - तुम्हारे घर का अन्न खाने से तो मेरी भी बुध्धि भ्रष्ट हो जाएगी।
पापी के घर का अन्न खाने से किसी भी व्यक्ति की बुध्धि भ्रष्ट हो सकती है।
श्रीकृष्ण - दूसरे राजाओं ,ब्राह्मणों और द्रोणाचार्य के घर खाने का भी इंकार कर दिया।
भगवान ने सोचा कि विदुरजी दीर्घकाल से मेरी प्रतीक्षा कर रहे है तो मै आज उनके पास ही जाऊँगा।
सारथि को आज्ञा की -विदुरजी की झोपडी के पास ले जाओ।
इस तरफ विदुरजी सोच रहे है कि मै अभी तक अपात्र ही रह गया हूँ। अतः भगवान मेरे घर नहीं आते।
आज सुलभा का ह्रदय भी बड़ी कातरता और आर्द्रता से सेवा कर रहा है। वह भगवान से प्रार्थना कर रही है कि मैंने आपके लिए सर्वस्व त्याग कर दिया है फिर भी आप नहीं आ रहे है। गोपियाँ सच कहती है कि कन्हैया के पीछे जो लग जाता है,उसी को वह रुलाता है। आपके लिए मैंने संसार -सुख को त्याग दिया,सर्वस्व आपके चरणों में रख दिया,फिर भी मेरे घर आपका आगमन क्यों नहीं हो रहा है?