संग का रंग मन को भी लगता है। मनुष्य जन्म से ख़राब नहीं होता। जन्म के समय तो वह शुध्ध होता है।
बड़े होने पर वह जिसके संग रहता है,उसी का रंग उस पर लगता है।
जैसा संग होगा वैसे ही तुम बनोगे। सत्संग से जीवन उजागर होता है और कुसंग से भ्रष्ट होता है।
विलासी का संग होगा तो मनुष्य विलासी हो जायेगा और विरक्त का संग होगा तो विरक्त।
चाहे सब कुछ बिगड़ जाए किन्तु मन-बुध्धि को मत बिगड़ने दो।
श्रीकृष्ण के जाने के बाद विदुरजी ने सोचा -प्रभु ने धृतराष्ट्र के घर का पानी भी नहीं पिया।
इसलिए अब कौरवों का विनाश होगा। कुछ भी हो वह मेरा भाई है। मै फिर एक बार उन्हें समझाता हूँ।
विदुरजी मध्यरात्रि में धृतराष्ट्र को मिलने गए।
उपदेश देकर समझाने का प्रयत्न किया-फिर भी वे नहीं माने।
यह उपदेश महाभारत के उध्ध्योगपर्व में - विदुरनीति के नाम से जाना जाता है।
जो औरो के धन का हरण करता है,वही धृतराष्ट्र है।
जिसकी आँखे केवल रुपया-पैसा ही देखती है,वह आँखे होते हुए भी अँधा ही है।
पापी पुत्र पर प्रेम रखनेवाला पिता धृतराष्ट्र है। उस युग में तो एक ही धृतराष्ट्र था, पर आज तो हजारों -लाखों है।
विदुरजी - धृतराष्ट्र को बहुत समझाकर अपने घर आये।
सवेरे सेवकों ने दुर्योधन को समाचार दिए कि विदुर चाचा आये थे।
वे पांडवो की तारीफ कर रहे थे और आपकी निंदा।
दुर्योधन आग -बबूला हो गया और तुरंत ही उसने विदुरचाचा को सभा में बुलाकर उनका अपमान किया और कहा-तुम दासीपुत्र हो। मेरा अन्न खाकर मेरी ही निन्दा करते हो? मेरे ही विरुध्ध काम करते हो।
सभा में दुर्योधन के अपमान से विदुरजी को न तो दुःख हुआ न ग्लानि और ना तो क्रोध ।
विदुरजी ने बारह साल सिर्फ भाजी (सात्विक भोजन) ही तो खायी थी न? भक्तिसे उन्हें शक्ति मिली थी
शक्तिशाली और समर्थ होते हुए भी -"जो अपमान सहे वह संत है । "
विदुरजी में इतनी तो शक्ति थी कि एक दृष्टिपात से दुर्योधन को जलाकर भस्मीभूत कर दे,
किन्तु विदुरजी ने अपनी शक्ति का उपयोग नहीं किया।
दुःख और क्रोध को पी जाने की शक्ति,सात्विक आहार से प्राप्त होती है।
सुखी होना है तो कम खाओ और गम खाओ।
मनुष्य सब कुछ खाता है,किन्तु गम नहीं खा सकता,क्रोध नहीं पचा सकता।
आहार में सयंम हो,सात्विक भोजन हो तो सत्वगुण और सहनशक्ति बढ़ती है।
गम खाने से निंदा सहन करने की शक्ति आती है।
विदुरजी ने सोचा कि दुर्योधन मेरी निंदा नहीं कर रहा है,अपितु उसके अंदर बसे हुए नारायण मुझे
कौरवों का कुसंग छोड़ने का आदेश दे रहे है। कौरवों का कुसंग छोड़ने की यह प्रभु-प्रेरणा है।
विदुरजी की भाँति बारह वर्ष तप करोगे तो सहनशक्ति आएगी। सात्विक आहार करने वाला ही सहनशक्ति प्राप्त कर सकता है। विदुरजी ने बारह वर्ष भाजी भोजन किया।
तुम कम से कम बारह महीने भाजी पर रहोगे तो सहनशक्ति पाओगे।
तेल-मिर्ची अधिक खाने वाले का स्वभाव भी मिर्च जैसा हो जाता है।
सहन करोगे तो सुखी होगे। सहनशक्ति तब आती है जब आहार-विहार सात्विक हो।
पर, इस जीव का स्वभाव ही ऐसा है कि उसे जो मिला है उतने से वह संतुष्ट नहीं होता।
विदुरजी ने केवल भाजी में ही संतुष्ट मन रखा और ईश्वर की आराधना करते रहे।