Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-105


मस्तक बुध्धिप्रधान  है। इस पर प्रभु को बिठलाने से तुम्हारे मन में कोई विकार नहीं आएगा।
शुकदेवजी कहते है - राजन,उद्धवजी बद्रिकाश्रम जा रहे थे। उनको मार्ग में यमुनाजी और व्रजभूमि के दर्शन हुए। उन्होंने यमुनाजी में स्नान किया। परम आनंद हुआ।

उद्धवजी ने सोचा कि मै  यहाँ कुछ दिन रहूँगा और किसी संत का या वैष्णव का सत्संग करूँगा।
वे निश्चय करते है कि कोई प्रभु का लाडला वैष्णव मिलेगा,तभी मे बोलूँगा अन्यथा मौन रहूँगा।
वृन्दावन में अनेक साधु आज भी राधा-कृष्ण की गुप्त लीलाओं  का दर्शन करते  फिरते है।

यमुना किनारे रमणरेती में विदुरजी बैठे थे। दूर से उध्धवजी ने उन्हें देखकर सोचा कि कोई वैष्णव बैठा हुआ है और उसका ह्रदय कृष्णप्रेम से भरा हुआ है। समीप जाने पर उद्धवजी ने पहचान लिया कि  भागवतभक्त विदुरजी है और उन्होंने विदुरजी को वंदन किया। उसी समय विदुरजी ने आँखे खोली और उद्धवजी से कहा कि  यह ठीक नहीं है कि आप मुझे वन्दन  करे। विदुरजी ने उद्धवजी को प्रणाम किया।

संतो का मिलान भी कैसा मधुर होता है -
चार मिले चौंसठ  खिले,बीस रहे  कर जोड़। हरिजन से हरिजन मिले,बिहसे सात करोड़।
चार-चार आँखे,चौंसठ -चौंसठ  दाँत। बीस-हाथ-पैर की उँगलियाँ,सात करोड़ -सात कोटि रोम -शरीर में सात करोड  रोम (रोंगटे)होते है। हरिजन का अर्थ है हरि  के लाडले।

विदुरजी और उद्धवजी का दिव्य  सत्संग हुआ। दोनों भक्तों ने प्रथम बाललीला,फिर पौगंडलीला, प्रौढ़लीला आदि  लीलाओं का वर्णन संक्षेप में किया।
उद्धवजी कहते है -मुझे  प्रभु ने प्रभास मे भागवतधर्म उपदेश देकर बद्रिकाश्रम जाने की आज्ञा दी थी।
आपके दर्शन से मुझे बहुत आनन्द  हुआ है।

विदुरजी कहते है -जिस भागवत धर्म का उपदेश आपको भगवान ने दिया था,वह मै  सुनना  चाहता हूँ।
मै  जातिहीन  और कर्महीन हूँ किन्तु आप जैसे वैष्णव तो दया के सागर होते है।
भगवान ने थोड़ी सी कृपा मुझ पर भी की थी। आप मेरी इच्छा पूर्ण करे। मै  अधम हूँ। फिर भी जो उपदेश
आपको प्रभु ने दिया था,वह आपसे श्रवण करने की इच्छा रखता हूँ। आप कृपया मुझे सुनाइए।

उद्धवजी कहते है कि आप साधारण मानव नहीं है,आप तो प्रभु के महान भक्त हो।
विदुरजी आपसे और तो क्या कहुँ ?जब मुझे उपदेश दिया था,तब मैत्रेयजी वहाँ  बैठे थे।
भगवान ने जब स्वधागमन किया,उस समय उन्होंने वासुदेव,देवकी,रुक्मणी,सत्यभामा आदि किसी को भी याद नहीं किया किन्तु आपको तीन बार याद किया था। वे मुझसे कहते थे कि मुझे अपने विदुर की याद आ रही है। वह मुझे नहीं मिला। एक बार जो भाजी मैंने उसके घर खाई थी,उसका स्वाद मै  अभी तक नहीं भूल पाया। वह भाजी मुझे आज भी याद आती है।

भगवान जिसको अपना कहे और अपना माने,उसका बेडा पार ही है। साधारण व्यव्हार में कोई किसी से नहीं कहता कि तू मेरा है। भगवान को वैसे तो कई मनुष्य कहते है कि  हम आपके है किन्तु ऐसा कोई नहीं कहता कि मै  केवल आपका ही हूँ और अन्य किसी का नहीं हूँ। भगवान जिसे अपना समझे,वह बन्धनों  से मुक्त हो जाता है। भगवान जब कहे कि तू मेरा है,तभी सच्चा ब्रह्म सम्बन्ध होता है।

तुलसीदासजी कहते है कि मुझ जैसे कामी को अपना कहने में रामजी को लज्जा होती है। आप राजाधिराज के आँगन में पड़ा हुआ कुत्ता हूँ मै। मुझे  में पड़ा रहने दीजिये। मुझे अपनाइए।
"तुलसी कुत्ता राम का ,मोतिया मेरा नाम,कण्ठे डोरी प्रेम की,जीत खींचो उत जान। "
मैंने आपकी पट्टी गले में बांध ली है। मै  पापी हूँ,फिर भी आपका हूँ।
मै  कुत्ता हूँ रामजी का। परमात्मा ने  मुझे अपनाया है।


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