Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-107


मांडव्य ऋषि कहते है - राजन,तुम्हे तो मै  क्षमा कर दूंगा,पर यमराज से पूछूंगा की मुझे दंड क्यों दिया?
मैंने कोई  पाप नहीं किया,फिर भी मुझे ऐसा दंड क्यों दिया?मै यमराज को क्षमा नहीं कर सकता।
वे कहते है कि- मुझ निष्पाप को सजा क्यों?मै  उस न्यायाधीश यमराज को दंड दूंगा।

यमराज की सभा में आकर ऋषि ने यमराज से पूछा कि जब मैंने कोई पाप नहीं किया है तो मुझे शूली पर क्यों चढ़ाया गया? शूली पर लटकाने की सजा मुझे मेरे कौन से पाप के लिए दी गई है?

यमराज घबरा गए। उन्होंने सोचा कि यदि कहूँगा कि भूल हो गई तो ये मुझे शाप दे देंगे। अतः उन्होंने ऋषि से कहा कि  जब आप तीन वर्ष के थे,तब आपने एक तितली को काँटा  चुभोया था,उसी पाप की यह सजा दी गई है।

मांडव्य ऋषि ने यमराज से कहा -शास्त्र की आज्ञा है कि यदि अज्ञानवस्था में कोई मनुष्य कुछ पाप कर दे तो,उसका उसे स्वप्न में दंड दिया जाये। मै बालक था अतः अबोध था। इसलिए उस समय किए  गए पाप की सजा तुम्हे मुझे स्वप्न में ही देनी चाहिए थी। तुमने मुझे अयोग्य प्रकार से दंड दिया है।
अतः मै तुम्हे शाप देता हूँ  कि तुम्हारा जन्म शूद्रयोनि में होगा।

इस प्रकार मांडव्य ऋषि के शाप के कारण यमराज को विदुरजी के रूप में दासी के घर जन्म लेना पड़ा।
विदुरजी कहते है कि - एक बार मुझसे भूल हो गई तो मुझे  मनुष्य बनना पड़ा और
अगर अब भी असावधान रहा तो मुझे पशु बनना पड़ेगा।

फिर इसके बाद विदुरजी ने मैत्रेयजी को अनेक प्रश्न पूछे- भगवान अकर्ता है, फिर भी कल्प के आरम्भ में इस सृष्टि  की रचना उन्होंने कैसे की? सन्सार में सभी लोग सुख के लिए प्रयत्न है,फिर भी न तो उनका दुःख दूर होता है और न तो  सुख मिलता है। ऐसा क्यों?
इन प्रश्नों  के उत्तर मिले,ऐसी कथा कीजिए  और भगवान की लीलाओं  का वर्णन कीजिये।

मैत्रेयजी ने कहा - सृष्टि की उत्पति की कथा भागवत में बार-बार आती है। तात्विक दृष्टि से जगत मिथ्या है। अतः साधुओं ने उसका अधिक विचार नहीं किया है किन्तु सृष्टि के कर्ता का बार-बार विचार किया है।

परमात्मा को माया का स्पर्श हुआ  सो उन्होंने संकल्प किया कि मै एक से अनेक बने। एकोहम् बहुस्याम।
पुरुष में से प्रकृति, प्रकृति में से महत तत्व, महत तत्व से अहंकार उत्पन्न हुआ। अहंकार के चार प्रकार है।
फिर पंच-तन्मात्रा से पंचमहाभूतों की उत्पत्ति हुई। किन्तु ये तत्व स्वयं कुछ भी क्रिया नहीं कर सकते थे,
अतः ईश्वर ने हरेक वस्तु  में प्रवेश किया।
उपनिषद में कहा है कि प्रत्येक वस्तु में प्रभु ने प्रवेश किया है अतः सारा जगत परमात्मा का मंगलमय स्वरुप है।

भगवान की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ। उसमे से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्माजी ने कमल का मुख खोजने का प्रयत्न किया तो चतुर्भुज नारायण के दर्शन हुए। भगवान ने ब्रह्माजी से कहा-तुम सृष्टि की रचना करो।
ब्रह्माजी ने कहा - रचना तो मे करू पर उसके बाद मैंने रचना की है ऐसा अभिमान मुझे न आ जाये ऐसा वरदान आप मुझे दो। प्रभु ने वरदान दिया।

ब्रह्माजीने सृष्टि की,सबसे पहले ऋषिओ पैदा हुए.,ब्रह्मा ने ऋषिओं  को कहा - तुम प्रजा उत्पन्न करो।
पर ऋषियों ने कहा कि हमे ध्यान में आनंद आता है।
ब्रहमाजी  सोचते है -ये संसार आगे कैसे बढे? मुझे जगत में कुछ आकर्षण रखना  चाहिए।
उन्होंने काम को जन्म दिया। काम- इधर-उधर देखने लगा और ऋषियों के हाथ से माला गिर गई।
ब्रह्माजी हँसने  लगे- अब किसी को कहना नहीं पड़ेगा कि  प्रजा उत्पन्न करो।
इस काम - से मोह - उत्पन्न हुआ।


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