क्षति का ज्ञान हुआ। वह पछताई। उसने शिवजीकी पूजा की और भगवान शिवजी से क्षमायाचना की।
शिवजीने कहा कि-उचित समयके पालन न करने से- तुम्हारे गर्भ से दो राक्षस उत्पन्न होंगे।
पति और पत्नी उचित समय का पालन न करे तो उनसे पापी प्रजा की उत्पति होती है।
दिति ने कामांध होने के कारण ही उन्होंने अपना सयानापन गँवा दिया था।
मनुष्य कभी - इस शरीर का ही विचार करेगा तो उसके ह्रदय में शरीर सुख के प्रति तिरस्कार उत्पन्न होगा
और वैराग्य के भावों की उत्पत्ति होगी।
यह शरीर कैसा है?इसमें हड्डियां टेढ़ी-तिरछी बिठाई दी गई है।
उस पर मांस रख दिया गया है और फिर त्वचा से सजा दिया गया है। अतः अंदर की चीजें नहीं दिखती।
अन्यथा रस्ते में पड़े हुए हड्डी के टुकड़े को कोई छुएगा भी नहीं। वह सोचेगा कि उसे छूने से शरीर अपवित्र हो जायेगा !! किन्तु वाही मनुष्य देह में छिपी हुई हड्डियों से प्रेम करता है। ऐसी मूर्खता दूसरी और क्या होगी?
भागवत में एक स्थान पर कहा गया है कि यह शरीर तो कुत्ते और लोमड़ी का भोजन है।
अग्नि संस्कार न हो तो इसे कुत्ते खा जायेंगे। ऐसे शरीर का मोह छोड़ो।
जब दिति ने जाना कि उसके गर्भ से राक्षस उत्पन्न होंगे तो वह घबरा गई।
तब कश्यप ने कहा कि उनका संहार करने के लिए भगवान नारायण आएंगे।
कश्यप ने दिति को ऐसा आश्वासन कि तेरा पौत्र महान भागवत-भक्त और महान वैष्णव होगा
और प्रह्लाद के नाम से जगत में विख्यात होगा।
जो ठाकोरजी की सेवा-स्मरण अकेला करे,वह साधारण वैष्णव है। किन्तु जिसके संग से दूसरो को भी
ईश्वर की सेवा और स्मरण करने की प्रेरणा मिले और इच्छा जागे वह महान वैष्णव है।
दिति गर्भवती हुई। उसने सोचा कि मेरे पुत्र देवों को कष्ट देंगे,अतः इनका जन्म शीघ्र न हो।
इस विचार से दिति ने सौ वर्षो तक गर्भ धारण किये रखा। सूर्य-चन्द्र का तेज क्षीण होने लगा। देव घबराए।
वे ब्रह्माजी के पास आए और उनसे पूछा कि दिति के गर्भ में कौन है?
ब्रह्माजी ने उनको दिति के गर्भ में जो थे उनकी कथा सुनाई।
ब्रह्माजी बोले -
एक बार मेरे मानसपुत्र सनकादि ऋषि घूमते-फिरते वैंकुंठ लोक में नारायण के दर्शन के लिए गए।