वह घर का नाम तो रखता है अशोक निवास,किन्तु वह अशोकभाई कब तक उसमे बने रहेंगे?
घर को ठाकुरजी का नाम दो। घर का मोह तो कभी छूटता है,किन्तु प्रतिष्ठा का मोह नहीं छूट पाता।
मनुष्य का मन नाम रूप में फँसा हुआ है। नाम और रूप का मोह जब तक न छूट पाये तब तक भक्ति नहीं हो सकती।मन श्रीकृष्ण के स्वरुप में फँस जाए,तभी मुक्ति मिलती है।
क्रोध करने से सनत्कुमारों को प्रभु के सातवें द्वार से वापस लौटना पड़ा किन्तु उनका क्रोध सात्विक था।
वे द्वारपाल भगवान के दर्शन में बाधा उपस्थित कर रहे थे,अतः वे क्रोधित हुए।
अतः भगवान अनुग्रह करके द्वार पर आये और सनत्कुमारों को दर्शन दिए,
किन्तु वे भगवान के राजमहल में तो प्रवेश पा ही नहीं सके।
महाप्रभु ने इस चरित्र की समाप्ति करते हुए कहा है -
ग्यानी के लिए ज्ञान-मार्ग में अभिमान विघ्नकर्ता है। अभिमान के मूल में यही क्रोध है।
कुछ अज्ञानवस्था में मरते है तो कुछ लोग ज्ञानी होकर अभिमानवश होकर मरते है।
कर्म-मार्ग में विघ्नकर्ता काम है। कश्यप और दिति के मार्ग में काम ने ही बाधा डाली थी।
काम से कर्म का नाश होता है।
भक्ति-मार्ग में क्रोध विघ्न करता है। सनत्कुमार के मार्ग में क्रोध ने ही बाधा डाली।
क्रोध से ज्ञान का नाश होता है।
देह से काम उत्पन्न होता है। ज्ञानी के मार्ग में काम बाधा नहीं डालता किन्तु क्रोध बाधा डालता है।
इन तीनों के कारण पुण्य का क्षय होता है ।
विवेक से काम नष्ट होता है,किन्तु क्रोध को नष्ट करना कठिन है।
एकनाथजी महाराज ने भावार्थ-रामायण है की कामी और लोभी को तो कुछ-न-कुछ तात्कलित लाभ हो ,किन्तु लोभ करने वाले को तो कभी कुछ लाभ नहीं हो सकता। इतना ही नहीं,उसके पुण्य का क्षय भी हो जाता है।
वल्लभाचार्यजी ने इस चरित्र के समाप्ति में कहा है -भक्ति-मार्ग में लोभ विघ्न रूप है।
मनुष्य भगवानके लिए अथवा दान देने के लिए घटिया-से घटिया वस्तुओं का उपयोग करता है।
पुत्र के लिए कपडे बनवाने हो तो सात या सत्रह रूपये मीटर वाला कपडा लाता है,
और ठाकोरजी के वस्त्र बनवाने हो तो दो-तीन रूपये मीटर वाला कपड़ा ढूँढता है।
एक गृहस्थ बाज़ार में ठाकुरजी के लिए फूल लेने जाता है।
माली कहता है कि गुलाब के फूल की कीमत चार आना है।
तो गृहस्थ कहता है कि कनेर के फूल ही दे दो,क्योंकि मेरे भगवान तो भावना के भूखे है,
किन्तु जब पत्नी कहती है कि मेरे लिए एक अच्छा सा गजरा ला दो तो बहुत सारे पैसे खर्च करके
उनके मनपसंदका गजरा ले आता है।
सत्यनारायण की कथा करनी हो तो वह दोसौ रूपये का पीताम्बर पहनकर बैठता है और जब ठाकुरजी का वस्त्र-परिधान करने का प्रसंग आता है तो वह कहेगा कि वह कलावा (डोरी विशेष)कहाँ है?वही लाओ।
भगवान कहते है कि बेटा मै सब समझता हूँ। मै भी तुझे एक दिन लंगोटी हो पहनाऊँगा।
मैने तेरी लंगोटी के लिए डोरी रख छोड़ी है।
ऐसा नहीं करना चाहिए। भगवान को उत्तमोत्तम वस्तु अर्पित करो।