Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-114


वराह भगवान यज्ञ के दृष्टान्तरूप है। यज्ञ करने से चित्तशुध्धि होती है। लोभ आदि का नाश करके चित्तशुध्धि करनी चाहिए। चित्तशुध्धि होने से कपिल-मुनि की अर्थात ब्रह्मविधधया की प्राप्ति  होती है।

यज्ञावतार जीवन जियोगे तो ज्ञान मिलेगा। यज्ञावतार के बिना मन की शुद्धि नहीं होती और मनशुद्धि या चित्तशुध्धि के बिना ज्ञान नहीं मिलता। ज्ञानवतार नहीं होता तो कपिलदेव भी नहीं आते। ज्ञान को दूर करने का काम वराह अवतार बताता है। यज्ञ करोगे तो कपिल भगवान की ब्रह्मविध्ध्या बुद्धि में स्थिर होगी।

कर्म चित्तशुद्धि के लिए है। भक्ति मन की एकाग्रता के लिए है। कर्म,उपासना और ज्ञान तीनों की जीवन में जरुरत है। कर्म से चित्तशुद्धि होने के बाद ब्रह्मजिज्ञासा जागती है।
श्री शंकराचार्य कहते है - लोग त्वचा की मीमांसा तो बहुत करते है परन्तु  ब्रह्म-मीमांसा कोई नहीं करता।

सभी पापों का मूल वाणी है। वाणी के उच्चार के बिना पाप नहीं होता।
वाणी के पहले -मन के द्वारा उच्चारे जाने पर भी  पाप होता है।

मनुष्य का धर्म है समाज को सुखी करना।
यह आदर्श वराह भगवान ने अपने ही आचरण द्वारा मनुष्यों  को सिखाया।
मनुष्य के जीवन में जब तक लोभ है,तब तक पाप है। और पाप जब तक है तब तक शाांति प्राप्ति हो नहीं सकती। जिसका जीवन निष्पाप है उसे शान्ति मिलती है।

मनुष्य के शरीर में नौ छेद है,जिनके द्वारा ज्ञान बाहर निकल जाता है। इन्द्रियों के द्वारा ज्ञान बाहर  न निकल शके  इसलिए इन्द्रियों का निरोध करो और उन्हें प्रभु के मार्ग की और मोड़ दो।
ज्ञान आता तो है किन्तु वह रह नहीं पाता। विकार वासना के वेग में वह कई बार बह जाता है।

वैसे तो सबकी आत्मा ज्ञानमय है ,अतः अज्ञानी तो कोई नहीं है किन्तु ज्ञान को हमेशा बनाये रखने के लिए इन्द्रियों  के द्वारा बही जाती हुई बुद्धि शक्ति को रोकना है।
ज्ञानी इन्द्रियों को विषय की और नहीं जाने देता,जब कि  वैष्णव इन्द्रियों को प्रभु के मार्ग की और मोड़ता है।

ज्ञान टिक नहीं पाता क्योंकि मनुष्य का जीवन विलासी हो गया है।
सारा का सारा ज्ञान पुस्तक में ही पड़ा रहता है।
जो पुस्तकों के पीछे दोड़े वह विद्वान  है और जो परमात्मा के पीछे दौड़े वह संत है।
विद्वान  शास्त्र के पीछे दौड़ता है जब कि शास्त्र संत के पीछे दौड़ता है।  पढ़कर बोले वह विध्वान  है।
प्रभु को प्रसन्न करके उसी में पागल होकर जो बोलता है,वह संत है।

मीराबाई ने अपने भजन में कही पर भी नहीं लिखा है कि उनका कोई गुरु था या किसी के घर वे शास्त्र पढ़ने के लिए गई थी। तुकाराम महाराज भी किसी के घर शास्त्र पढ़ने के लिए नहीं गए थे।
गीता में भगवान ने अर्जुन से कहा है -अर्जुन,ज्ञान तो तुझी में है। ह्रदय में सात्विक भाव जागे,
मन शुध्ध  हो जाये तो ह्रदय में से ज्ञान अपने आप हे प्रकट होता है।

स्थित हुए लोभ को मारने से कपिल भगवान अपने आप आये।
कपिल मुनि ज्ञान के अवतार है।

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