प्रियव्रत और उत्तानपाद। तीन कन्याएँ भी थी-आकृति,देवहुति और प्रसूति।
आकृति का रूचि से,देवहुति का कर्दम से और प्रसूति का दक्ष से विवाह हुआ।
कर्दम ऋषि और देवहुति के घर कपिल भगवान प्रागट्य हुआ ।
विदुरजी प्रश्न करते है कि - मैत्रेयजी,आप कर्दम और देवहूति के वंश की कथा कहिए।
कपिल भगवान की इस कथा सुनने की मेरी इच्छा है।
मैत्रेयजी कहते है - कपिल ब्रह्मज्ञान के स्वरुप है। कर्दम बनोगे तो तुम्हारे घर कपिल आएंगे।
कर्दम अर्थात इन्द्रियों का दमन करने वाला। कर्दम अर्थात जितेन्द्रिय।
जब तक मनुष्य कर्दम नहीं बन पाता ,तब तक उसे कपिल नहीं मिलता।
शरीर में सत्वगुण की वृध्धि होने पर अपने आप ज्ञान का झरना फूट पड़ता है,ज्ञान प्रकट होता है।
शरीर में सत्वगुण की वृध्धि से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
शुध्ध आहार,शुध्ध आचार और शुध्ध विचार से सत्वगुण की वृध्धि होती है।सत्वगुण बढ़ेगा तो ज्ञान बढ़ेगा। सत्वगुण संयम और सदाचार से बढ़ता है। सत्वगुण बढ़ने से अंदर से ज्ञान का स्फुरण होता है।
शुकदेवजी राजर्षि को कहते है - राजन,कर्दम ऋषि सारा दिन सरस्वती नदी के किनारे तप करते थे।
सरस्वती सत्कर्म का किनारा है। उनके तप से भगवान प्रसन्न हुए। भगवान ऋषि के घर पधारे।
भगवान श्रीकृष्ण हर तरह से उदार है,किन्तु "समय" देने में उदार नहीं है।
सुवर्ण की अपेक्षा समय को अधिक मूल्यवान बनाओ। लक्ष्य को लक्षमें रखोगे तो जीवन सफल होगा।
लक्ष्य बिना का मनुष्य बिना पतवार की नाव जैसा है।
कर्दम जितेन्द्रिय महात्मा थे। उनकी तपश्चर्या सफल हो गई। उनके सामने भगवान प्रकट हुए।
सिद्धपुर के पास कर्दम ऋषि का आश्रम था। उन्होंने कठिन तपश्चर्या की। शरीर में केवल हड्डियाँ ही रह गई। ऐसी कठोर तपश्चर्या से प्रभु प्रसन्न हुए। आँखों में हर्षाश्रु निकल आये। उन्ही आँसुओ से बिंदु-सरोवर बना।
कर्दम कहते है -महाराज,आपके दर्शन से मेरी आँखे सफल हुई है। मुझे संसार सुख की कामना नहीं है।
परन्तु ब्रह्माजी ने मुझे शादी करने की आज्ञा की है। मै स्त्री-संग नहीं,सत्संग की इच्छा करता हूँ।
मुझे ऐसी स्त्री दीजिये कि जो मुझे प्रभु की ओर ले जाये। ऐसी पत्नी मुझे मिले कि जब कभी मेरे मन में पाप आ जाये तो वह मुझे उस पाप कर्म से रोके और प्रभु मार्ग में ले चले। मेरा विवाह संसार-सागर में डूबने के लिए नहीं,
किन्तु तैरने के लिए हो। मै पत्नी नहीं,घर में सत्संग चाहता हूँ।
भगवान ने कहा -दो दिन बाद मनु महाराज तुम्हारे पास आएंगे और अपनी पुत्री देवहुति तुम्हे देंगे।
परमात्मा ने आज्ञा दी कि मनु महाराज कन्या लेकर आये,तब नखरे मत करना।
पति-पत्नी पवित्र जीवन जीए तो उनके यहाँ जन्म लेने की भगवान को इच्छा होती है।
भगवान ने कहा कि मै पुत्ररूप में तुम्हारे यहाँ आऊँगा। जगत को मुझे सांख्यशास्त्र का उपदेश देना है।
ऐसा कहकर श्रीहरि वहाँ से विदा हो गए।