Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-116


नारदजी मनु महाराज के पास आये और उनसे कहा कि -तुम कर्दम को कन्यादान दो।
मनु महाराज शतरूपा और देवहुति,तीनों कर्दम ऋषि के आश्रम में आये।

कर्दम ने देवहुति के विवेक की परीक्षा की। उन्होंने तीन आसन  बिछाये। सभी को बैठने के लिए  कहा तो मनु-शतरूपा तो बैठ गए किन्तु देवहुति नहीं बैठी।
तो कर्दम ने उससे कहा -देवी,यह तीसरा आसन तुम्हारे किये ही है -बैठो।

देवहुति ने सोचा कि भविष्य में यह मेरा पति होने वाले है। पति द्वारा बिछाये हुए आसन  पर बैठूँगी तो पाप होगा। इस आसान पर बैठना मेरा धर्म नहीं है और आसन पर न बैठने से आसन  देने वाले का अपमान होगा।
सो अपना दाहिना हाथ आसन  पर रखकर आसन  के पास बैठ गई।

आजकल के ज़माने की होती तो आसन पर पहले ही बैठ जाती।
आर्यनारी के सच्चे संस्कार आज भुलाये जा रहे है। आजकल तो कन्या परीक्षा की रीती भी बदल गई है।

कर्दम ने सोचा कि कन्या योग्य है,विवाह करने में कोई हर्ज़ नहीं है।
मनु महाराज ने कहा कि यह कन्या मै  आपको अर्पण करना चाहता हूँ।
कर्दम ऋषि ने कहा कि विवाह करने की इच्छा मेरी भी है,किन्तु पहले मेरी एक प्रतिज्ञा  सुनो ।
मेरा विवाह विलास के लिए नहीं,किन्तु काम का नाश करने के लिए होगा।

कर्दम ऋषि कहते है -मेरा विवाह काम के विनाश के लिए है। काम कृष्ण मिलन में विघ्नकर्ता है उसी काम को मुझे मारना है। एक पुत्र के होने तक लौकिक सम्बन्ध बनाये रखूँगा।
उसके बाद उसका त्याग करूँगा और संन्यास ले लूँगा।
कन्यादान के मंत्र में लिखा है -वंश की रक्षा करने के लिए एक ही पुत्र के लिए कन्या को अर्पित करता हूँ।
शास्त्र में पहले पुत्र को ही धर्मपुत्र कहा है। अन्य सभी पुत्र कामज पुत्र है। कामचरण के लिए  नहीं,धर्माचरण के लिए विवाह है। पिता पुत्र से कहता है कि तू मेरी आत्मा है। एक पुत्र होने के बाद पत्नी माता समान  होती है।

काम ईश्वर की भांति व्यापक होना चाहता है। जहाँ सुन्दरता दिखती है,वही  काम उत्पन्न होता है।
उस काम को  एक ही स्त्री में संजोकर,उस काम का नाश करने के लिए विवाह होता है।

विवाह के समय “सावधान”कहा जाता है क्योंकि सभी जानते है कि विवाह के बाद वह सावधान नहीं रहेगा।
विवाह के बाद जो सावधान रहे वही जीतता है अथवा जो पहले सावधान होता है वह जीतता है।

रामदास स्वामी विवाह के पहले ही सावधान हो गए थे। विवाह मंडप में पंडित ने सावधान -सावधान कहा
और वे सावधान होकर मंडप से भाग गए।

भोग के बिना रोग नहीं होता। पूर्वजन्म के पाप के कारण भी कुछ रोग होते है। कुछ रोग इस जन्म के भोग-विलास के कारण  होते है। भोग बढ़ने से आयुष्य का क्षय होता है।
हम भोग का उपभोग नहीं कर पाते,भोग ही हमारा उपभोग  कर जाता है।

जब से दूल्हा कार में बैठकए विवाह करने जाने लगा है,तब से घर संसार बिगड़ गया है।
आज के दूल्हे को घोड़े पर से गिर जाने का डर  लगता है।
उससे पूछो कि  एक ही घोडा तुझे गिरा देगा-ऐसा दर है  तो वे ग्यारह घोड़े तेरी क्या दशा करेंगे?
एक घोड़े को अंकुश में नहीं रख सकता तो फिर उन  ग्यारह घोड़ों को कैसे अंकुश में रखोगे?
ग्यारह इन्द्रियाँ  ही ग्यारह घोड़े है। जितेन्द्रिय होने के लिए विवाह करना है।

आज तो हम विवाह का हेतु ही भूल गए है।


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