Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-117


कर्दम ऋषि ने आदर्श बताया कि मेरा विवाह एक सतपुत्र के लिए है। उसके बाद मै सन्यास लूँगा।
मेरी यह प्रतिज्ञा तुम्हारी कन्या को मान्य हो तो मै विवाह करने के लिए तैयार हूँ।

देवहुति ने कहा-मुझे ऐसे ही पति के जरुरत थी। कामांध होकर संसार-सागर में डूबने के लिए गृहस्थाश्रम नहीं है। मेरी ऐसी ही इच्छा थी कि मुझे कोई जितेन्द्रिय पति मिले।

देव को बुलानेवाली शक्ति ही देवहूति है। निष्काम बुध्धि ही देव को बुला सकती है।

मनु महाराज ने विधिपूर्वक कन्यादान किया। देवहुति विवाह हो गया।
देवहुति कर्दम के साथ आश्रम में रहने लगी। उसने सोचा कि मेरे पति तपस्वी है,अतः मुझे भी तपस्वीनी होना होगा। वे दोनों बारह वर्ष एक ही घर में रहते हुए भी संयमी और निर्विकार रहे।

दक्षिण में आज से ग्यारह सौ वर्ष पहले वाचस्पति मिश्र नाम के ऋषि हो गए है।
षड्शास्त्रो पर उन्होंने टीकाएँ  लिखी है,जो आज भी प्रख्यात है।
वे सारा दिन तपश्चर्या और ग्रन्थ-लेखन में बिताते थे।
विवाह होने के छत्तीस वर्ष बीत  गए,किन्तु वे यह भी नहीं जानते थे कि उनकी पत्नी कौन है।

एक दिन ब्रह्मसूत्र के शांकरभाष्य पर टीका लिख रहे थे किन्तु एक पंक्ति कुछ ढंग से लिखी नहीं जा रही थी। दिया भी थी से नहीं चल रहा था,अतः ठीक से दीखता भी नहीं था। उनकी पत्नी दिए की लौ बढ़ा रही थी।
इतने में वाचस्पति की नज़र उस पर पड़ी तो उन्होंने पूछा-देवी,तुम कौन हो?
पत्नी ने कहा-कभी आपका विवाह हुआ था,वह याद आता है?
वाचस्पति ने कहा -हाँ,कुछ-कुछ याद आ रहा है।
पत्नी ने कहा-मेरे साथ आपका विवाह हुआ था। मै  आपकी दासी हूँ।
आज से छत्तीस साल पहले हमारा विवाह हुआ था।

वाचस्पति के मन का प्रकाश  जागा और उन्होंने पत्नी से कहा -छत्तीस वर्ष तूने मौन रहक र मेरी सेवा की।
तेरे उपकार अनंत है। तेरी क्या इच्छा है?
पत्नी भामती  ने कहा -नाथ,मेरी तो कोई इच्छा नहीं है। आप जगत के कल्याण के लिए शास्त्रों की टीकाएँ  
रचते है। मै आपकी सेवा करते कृतार्थ हुई हूँ। आपकी सेवा करते ही मेरी मृत्यु हो।

वाचस्पति का ह्रदय भर आया। पत्नी से एक और बार कुछ मांगने को कहा,किन्तु उसने कुछ भी नहीं माँगा।
वाचस्पति-देवी तुम्हारा नाम क्या है?
भामती -इस दासी का नाम भामती है।
वाचस्पति-मै शांकर-भाष्य पर जो टिका लिख रहा हूँ,उसका नाम मै “भामती -टिका” रखूँगा।
आज भी वाचस्पति की यह टीका “भामती -टिका के नाम से प्रसिध्ध  है।

ऐसा था हमारा भारतवर्ष। एक ही घर में छत्तीस वर्ष तक साथ रहकर भी संयम का उन्होंने पालन किया था।
ऐसे संयमी को ही ज्ञान मिलता है। आजकल पुस्तको के द्वारा ज्ञान का का प्रचार बहुत हो रहा है,
किन्तु किसी भी व्यक्ति के दिमाग में ज्ञान दिखाई नहीं देता।

कर्दम जीवात्मा है और देवहूति बुध्धि  है।
देवहूति देव को बुलाने वाली निष्काम बुध्धि है।
एक दिन कर्दम ने देखा कि देवहूति का शरीर बहुत दुर्बल हो गया है,उसने मेरे सेवा करते-करते अपना शरीर
सुखा दिया है। यह देखकर उनका दिल भर आया।

उन्होंने देवहूति से कहा कि देवी कुछ वरदान मांगों। तुम जो मांगोगी वह तुम्हें दूँगा।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE