Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-118


देवहूति ने कहा - आप जैसे ज्ञानी पति मुझे मिले है,वही वरदान है।
मै तो पूजा करके बस इतना ही माँगती हूँ कि  मेरा सौभाग्य अखंडित रहे।
यह सुनकर कर्दम बोले- कुछ न कुछ तो तुम्हे माँगना ही होगा।
पति के आग्रह करने  देवहूति ने कहा कि आपने प्रतिज्ञा  की थी कि एक सन्तान के होने पर संन्यास लेंगे।
अब यदि इच्छा हो तो एक बालक का मुझे दान दो।

मनुष्य शरीर की रचना ही ऐसी है कि वह भोगो का मर्यादित प्रमाण में ही उपभोग कर सकता है।
मर्यादा का उलंघन करेगा तो वह रोगिष्ठ हो जायेगा।
कर्दम बोले- मै तुम्हे दिव्य शरीर अर्पित करूँगा।
देवहूति ने सरस्वती में स्नान किया और उनका शरीर बदल गया।
कर्दम  संकल्प के बल से विमान बनाया और दोनों उसमे बैठे।

कथा में शान्त और करुणरस प्रधान है। श्रृंगार और हास्य रस गौण है।
कथा में श्रृंगार रस का वर्णन करने की आज्ञा महात्माओं ने नहीं दी है।
श्रोताओ को संसार विषयों के प्रति अरुचि हो और ईश्वर के प्रति प्रेम हो,यह लक्ष्य में रखकर वक्ता को
कथा करनी चाहिए। कथा सुनकर वैराग्य  आता है।
भागवत  में ब्रह्माजी ने नारद को बताया है कि कथा किस प्रकार की जानी चाहिए।

इस सौ वर्षो में देवहूति को नौ कन्याये हुई,किन्तु पुत्र एक भी नहीं हुआ। नौ कन्याओं का अर्थ नवधा भक्ति। नवधा भक्ति के बिना ज्ञान नहीं सकता।
जो नौ कन्याओं का (नवधा भक्तिका )पिता होता है,उसके यहाँ कपिल आता आते है।
जिसकी नौ पुत्रियाँ (नवधा भक्ति) होती है,उसे ज्ञान मिलता है।
सामान्य अर्थ करे तो कह सकते है कि नौ कन्याओं का विवाह करते -करते
पिता की अक्ल ठिकाने आ जाती है कि मैने यह क्या कर दिया।

नवधाभक्ति  तक कपिल अर्थात ज्ञान नहीं आता।
श्रवण,कीर्तन,स्मरण,पादसेवन,अर्चन,वंदन,सख्य और आत्मनिवेदन-ये नौ अंग नवधाभक्ति में आते है। नवधाभक्ति के सिध्ध होने पर ही कपिल आते है।
भक्ति ही ज्ञानरूप में बदलती है। भक्ति की उत्तरावस्था ही ज्ञान है।अपरोक्ष ज्ञान की पूर्वस्था ही भक्ति है। भक्ति के बाद ज्ञान आता है। ज्ञान की माता  भक्ति है। जिसकी नवधाभक्ति सिध्ध नहीं होती उसे ज्ञान नहीं मिलता। भक्ति द्वारा ही ज्ञान मिलता है।
तात्विक दृष्टिसे ज्ञान और भक्ति में अन्तर नहीं है। भक्ति में पहले दासोहम और फिर सोहम है।

नौ कन्याओं के जन्म के बाद कर्दम सन्यास लेने के लिए तैयार हुए।
कर्दम ने सोचा कि एकांत में बैठकर मै तप करू। उन्होंने देवहूति को  कहा -मै  संसार त्याग करना चाहता  हूँ।
विवाह का अर्थ है-तन दो,किन्तु मन एक ही।

देवहुति बोली-नाथ,आपने वचन दिया था कि एक पुत्र के जन्म के बाद आप संन्यास लेंगे।
पुत्र का जन्म  तो अभी तक हो ही नहीं पाया है। फिर इन कन्याओं की और मेरी देखभाल कौन करेगा?
इन कन्याओं की व्यवस्था करने के बाद  सन्यास लीजिये।
कर्दम कहते है - मुझे भगवान ने वचन दिया है -मै  तुम्हारे घर पुत्र के रूप में जन्म लूँगा।
पर अभी तक क्यों पधारते नहीं है?

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