Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-119


कर्दम कहते है-हमने विलासी जीवन बिताया है-वह ठीक  नहीं है। विलासी जीवन से भगवान दूर रहते है।
सरस्वती के किनारे कन्दमूल  खाकर सात्विक जीवन बितायेगे  -तभी भगवान पधारेंगे।

कर्दम-देवहूति ने विकार का त्याग किया।
उन्होंने कई वर्ष तक परमात्मा की आराधना की,इसके बाद देवहूति के गर्भ में साक्षात नारायण ने वास किया।
नौ मास का समय समाप्त हुआ। आचार्यों,योगियों और साधुओं के -सांख्य-दर्शन के आचार्य प्रकट होने वाले थे।
कर्दम और देवहूति की तपश्चर्या और आतुरता से भगवान उनके यहाँ पुत्र रूप से आये।
कार्तिक मास,कृष्ण पक्ष और पंचमी के दिन कपिल भगवान प्रकट हुए है।
ब्रह्मादिदेव कर्दम के आश्रम में आये। ब्रह्माजी ने कर्दम से कहा कि तुम्हारा गृहस्थाश्रम सफल हुआ।
तुम अब जगत के पिताके (परमात्मा) के पिता  बन गए हो।
यह बालक जगत को दिव्य ज्ञान (सांख्य-दर्शन) का उपदेश देगा।

कर्दम कहते है कि मुझे इन नौ कन्याओं की चिन्ता सता  रही है।
ब्रह्माजी ने कहा - तुम क्यों चिंता करते हो?तुम्हारे घर तो स्वयं भगवान पधारे है।
तुम चिंता करने के बदले प्रभु का चिंतन करो।
ब्रह्माजी नौ ऋषियों को अपने साथ लाये थे। सभी ऋषियों को एक-एक कन्या दी।
अत्रि को अनसूया,वशिष्ठ को अरुन्धती  आदि।
कर्दम ऋषि ने सोचा की अब मेरे सर से भार उतर गया है।

कपिल धीरे धीरे बड़े हुए है। एक दिन कर्दम ने कपिल के पास आकर कहा -मुझे सन्यास  लेना है।
कपिल ने कहा कि आपकी इच्छा योग्य ही है। सन्यास लेने का बाद आप किसी प्रकार की चिंता  न करे।
आप अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर दे।आप माँ की चिंता मत करना। मै माँ का ध्यान रखूँगा।
कर्दम ऋषि ने गंगा किनारे सन्यास लिया। परमात्मा  के लिए सर्व सुख का त्याग वही सन्यास।
चिंतन करते-करते कर्दम ऋषि को भगवती मुक्ति मिली।

सन्यासकी बिधि  देखने से भी वैराग्य  होता है। सन्यास की क्रिया में विरजा होम करना पड़ता है।
देव,ब्राह्मण,सूर्य,अग्नि आदि की साक्षी में विरजा होम किया जाता है।
फिर नदी में स्नान करके,लंगोटी फेंककर नग्नावस्था  बाहर निकलना पड़ता है।
फिर उनकी स्त्री उनको नयी लंगोटी देकर,संसार से मुक्त करती है.

अब कपिल गीता का आरम्भ होता है।
यह प्रसंग दिव्य है। पुत्र माता को उपदेश दे रहा है।
भागवत के इस महत्व के  प्रकरण के नौ अध्याय है। कपिल गीता का प्रारम्भ २५वे अध्याय से है।
इसमें सांख्य शास्त्र का उपदेश है।
तीन अध्यायों में पहले वेदांत का ज्ञान आता है और अंत में अंत में भक्ति वर्णन किया गया है।

फिर उसके बाद संसार चक्र का वर्णन है।


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