तो मे कपिल भगवान से पूछू जिसका वे अवश्य उत्तर देंगे।
देवहुति ने कपिल भगवान के पास आकर उनसे कहा कि यदि आपकी अनुमति हो तो आपसे प्रश्न पूछना चाहती हूँ।
कपिल ने कहा - माता,संकोच मत करो। तुम जो पूछना चाहती हो वह पूछो।
माता देवहुति ने आरम्भ में ही शरणागति स्वीकार कर ली।
ईश्वर की शरणागति लिए बिना जीव का उध्धार नहीं हो सकता।
देवहूति ने पूछा - जग में सच्चा सुख कहाँ है? जगत में सच्चा आनंद कहाँ है?नित्य आनंद कहाँ है?
जिसका नाश न हो सके ऐसा आनंद बताओ।
अनेक बार इन्द्रियों का लालन-पालन करने से कोई सार नहीं है।
इन्द्रियों ने जो कुछ माँगा,वह सभी मैने दिया,फिर भी तृप्ति नहीं हुई है।
इन्द्रियाँ हर रोज नये -नये विषय मांगती है। जिह्वा रस सुख की ओर खींचती है।
आँखे रूप सुख की ओर त्वचा स्पर्श सुख की ओर खींचती है।
कई लोग याद करते है कि दो महीने से पकोड़े नहीं खाए है।
किन्तु वाही चीज़ आज तक कितनी बार खायी है,वह याद नहीं रखते।
जब खा-पीकर जीभ को संतोष दिया नहीं कि आँखे सताने लगेगी कि दो महीने से फ़िल्म नहीं देखी है।
रूपये पैसे खर्च करके फ़िल्म देखने के लिए अँधेरे में बैठते है। उन्हें सुधरा हुआ कहे या बिगड़ा हुआ?
कुछ तो कहते है कि हम तो धार्मिक फ़िल्म देखते है।
धार्मिक फ़िल्म भी नहीं देखनी चाहिए क्योंकि राम का अभिनय करने वाला राम तो नहीं होता है ।
शंकर स्वामी ने एक जगह पर कहा है कि इन्द्रियाँ चोर है। इन्द्रियाँ तो चोर से भी अधिक बुरी है।
चोर तो जिसके घर में,जिसके सहारे रहता है वहाँ चोरी नहीं करता,
जबकि इन्द्रियाँ तो अपने पति के समान आत्मा को ही धोखा देती है।
देवहुति कहती है कि इन चोर-सी इन्द्रियों से मै उक्त गई हूँ।
मुझे बताओ कि जगत में सच्चासुख,सच्चा आनंद कहाँ है और उसे पाने का साधन कौन सा है।
कपिल भगवान को आनन्द हुआ।
वे बोले- माताजी,किसी जड़में आनन्द नहीं रह सकता। आनन्द तो आत्मा का स्वरुप है।
अज्ञानवश जीव जड़ में आनन्द ढूँढता है। संसार के विषय सुख तो देते है किन्तु आनन्द नहीं देते।
जो तुम्हे सुख देगा,वही तुम्हे दुःख भी देगा। किन्तु भगवान तुम्हे हमेशा आनन्द ही देंगे।
आनन्द परमात्मा का स्वरुप है।
संसार का सुख खुजली (चमड़ी की बीमारी)जैसा है कि जब तक आप खुजलाते है,अच्छा लगता है।
किन्तु खुजालने से नाख़ून में रहे हुए ज़हर के कारण खुजली का रोग बढ़ जाता है।
सर्वोत्तम मिठाई का स्वाद भी गले तक ही रह जाता है।
जगत के पदार्थों में आनन्द नहीं है,उसका भासमात्र है। यह जगत दुःखरूप है।
गीता में भी भगवान कहते है -
हे अर्जुन,क्षणभंगुर और सुखरहित इस जगत को और मनुष्य शरीर को प्राप्त करके तू मेरा ही भजन कर।