Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-121



आरम्भ में जड़ वस्तु में सुख का अनुभव होता है किन्तु वह सुख विषमय ही है।
विषयों और इन्द्रियों के संयोग से जो सुख उत्पन्न होता है,वह आरम्भ में तो अमृत जैसा लगता है
किन्तु परिणाम की दृष्टी से तो वह विष-समान  ही है। इसी कारण से इस सुख को राजस कहा गया है।

इन्द्रियों को सुख से तृप्ति नहीं होती।
विवेकरूपी धन का हरण कर के इन्द्रियाँ जीव को संसाररूपी गर्त में फ़ेंक देती है।
बाहर के विषयों में न तो आनन्द है और न तो सुख। आनन्द  बाहर  नहीं ,अंदर है,आत्मा में है।
आनन्द अविनाशी अंतर्यामी का स्वरुप है।

कपिल आगे कहते है - हे माता,यदि शरीर में आनन्द  होता तो -
उसमे से प्राण के निकल जाने के बाद भी लोग उसे संजोकर अपने पास रखते।

विषय जड़ है। जड़ पदार्थ में आनन्द  नहीं रह सकता।
चैतन्य के स्पर्श कारण ही जड़ पदार्थ में आनन्द -सा प्रतीत होता है।
यदि दो प्राण के इकट्ठे होने पर सुख मिलता है तो -
जिसमे अनेक प्राण समाए  हुए है,ऐसे परमात्मा के मिलन  से कितना अधिक आनन्द होता होगा?

बाहर  के विषयों  में आनंद नहीं है,
किन्तु चित्त में,मन में आत्मा का प्रतिबिम्ब पड़ने से आनंद-सा अनुभव होता है।
इन्द्रियों को मनचाहा पदार्थ मिलने पर विषयों में तद्रूप हो जाती है,
अतः कुछ समय के लिए एकाग्र व एकाकार होता है।
उस समय चित्त में आत्मा का प्रतिबिम्ब पड़ता है,जिससे आनन्द का भास  होता है।
जगत के विषयों  में जब तक मन फंसा हुआ है,तब तक आनन्द नहीं मिल सकेगा।
आनन्द आत्मा का उसी प्रकार सहज स्वरुप है कि जिस प्रकार शीतलता जल का सहज स्वरुप है।
आनन्द आत्मा में ही है।

आत्मा और परमात्मा का मिलन ही परमानन्द है।
बार-बार अपने मन को समझाओ कि संसार के जड़ पदार्थो में सुख नहीं है।
सोने पर सब भूल जाने से ही आनन्द आता है। सारे संसार को भूलने के बाद अच्छी नींद आती है।

आत्मा तो नित्य,शुध्ध और आनंदस्वरूप है।
सुख-दुःख तो मन के धर्म है। मन के  निर्विषय होने  पर आनन्द  मिलता है।
दृश्य (जगत) में से दृष्टि  को हटाकर दृष्टा (परमात्मा) में स्थिर किया जाये तो आनन्द  मिलेगा।
आनंद परमात्मा का स्वरुप है।

कपिल कहते है -माताजी,यदि विषयों में ही आनन्द समाया हुआ हो तो -
सभी को सदा एक समान आनन्द मिलना चाहिए।
बीमार  व्यक्ति के आगे अगर श्रीखंड रखा जाये तो उसे अच्छा नहीं लगेगा।
अतः श्रीखंड में आनन्द अर्थात विषयों में जड़ पदार्थों में आनन्द नहीं है।
यदि श्रीखंड में आनन्द समाया हुआ होता बीमार को भी उसे खाने में आंनद मिलना चाहिए।
किन्तु उसे आनन्द नहीं मिलता,अतः आनन्द श्रीखंड (विषय) में नहीं है।
इसी प्रकार सभी विषयों के बारे में समझना चाहिए।


   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE