Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-125


बिना सत्संग के सुख नहीं मिलता। पर स्वयं संत बने बिना सच्चा संत नहीं मिलेगा।
जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि।

एकनाथ महाराज रामायण के सुंदरकांड की कथा कर रहे थे।
सुंदरकांड में सभी सुन्दर है। सुन्दरकांड का यह नाम इसलिए ही रखा गया है.
इसमें हनुमानजी को माता सीताजी की पराभक्ति के दर्शन हुए है।

एकनाथ महाराज कथा में कहते है कि
जब हनुमानजी अशोक वन में आये तब वहाँ अशोक वाटिका में सफ़ेद फूल खिल रहे थे।
जहॉ सीताजी वहाँ  अशोक वन। जहाँ भक्ति (सीताजी=पराभक्ति) वहाँ अ -शोक (शोक का अभाव).

हनुमानजी वहाँ  (एकनाथजी की कथामे) कथा सुनने के लिए आये थे।
उन्होंने प्रकट होकर विरोध करते हुए कहा कि महाराज,आप कह रहे है।
अशोक वन में उस समय लाल फूल खिले हुए थे,सफ़ेद नहीं। मैंने अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देखा था।
एकनाथ महाराज ने कहा कि मै तो अपने सीताराम  को मनाकर कथा कर रहा हूँ और मुझे जैसा दिखाई दे रहा है,वैसा कह रहा हूँ। अंत में झगडे को लेकर दोनों राम के पास गए।
रामचन्द्रजी ने कहा कि आप दोनों की बात सही है।
क्रोधवश से लाल आँखे होने के कारन हनुमानजी ने फूल लाल दिखे थे,अन्यथा फूल तो सफ़ेद ही थे।

जिसकी दृष्टी जैसी होगी उसे वैसी ही सृष्टि दिखाई देगी।
दुर्योधन को जगत में कोई संत न मिला,उसने सभी को दुर्जन ही पाया।
युधिष्ठिर को कोई दुर्जन नहीं मिला,उसने सभी सज्जन ही पाया।

संतो के धर्म में तितिक्षा को प्राधान्य दिया गया है। संतो के चरित्र पढ़ो। संतो को कई दुःख सहने पड़े है।
किन्तु उन दुःखो का संतो पर कुछ असर नहीं होता।

एकनाथ महाराज पैठण में रहते थे। गोदावरी नदी की ओर जाने वाले मार्ग पर एक पठान रहता था।
एकनाथ महाराज उसी रस्ते से स्नान करने के लिए जाते थे। वह पठान महाराज को बहुत सताता था।
महाराज सब सहन करते थे।
एक दिन पठान ने सोचा कि यह ब्राह्मण क्रोधित नहीं होता है तो आज मै उसे क्रोधित करके ही रहूँगा।
महाराज स्नान करके वापस आ रहे थे तो पठान ने उनपर थूका। महाराज दूसरी बार स्नान करने गए।
फिर पठान ने उनपर थूका। ऐसा कई बार हुआ किन्तु महाराज क्रोधित नहीं हुए।
गोदावरी से कहने लगे कि तेरी कृपा है कि तू मुझे स्नान करने के लिए बार -बार बुला रही है।

वह पठान चाहे दुर्जनता करता रहे,मै अपनी सज्जनता नहीं छोड़ना चाहता।
पठान ने एक सो आठ बार उन पर थूका और उतनी बार महाराज ने गोदावरी में स्नान किया।
अन्त में वह पठान लज्जित हुआ। उसने महाराज के पाँव छुए और क्षमा  मांगी।
उसने कहा -महाराज आप संत है,ईश्वर है। मै आपको पहचान न सका। महाराज ने उत्तर दिया कि क्षमा का
कोई सवाल  नहीं है। तुम्हारे कारण तो आज मुझे एक सौ आठ बार गोदावरी स्नान का पुण्य मिला।

शान्ति उसी की बनी रहती है जो अंदर से ईश्वर के साथ सम्बन्ध रहे।
जो ईश्वर से दूर है,उसे शान्ति कहाँ से मिलेगी?


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